Chhattisgarh Ki Mittiyan | छत्तीसगढ़ की मिट्टियाँ

राज्य की भौतिक संरचना में भिन्नता के कारण सभी क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं। छत्तीसगढ़ भारत के प्रायद्वीपीय पठार का भाग है, जहाँ पर अवशिष्ट मिट्टियाँ पाई जाती हैं। देश में सबसे प्रौढ़ मिट्टी छत्तीसगढ़ में पाई जाती है।
आज के इस पोस्ट Chhattisgarh Ki Mittiyan में हम छत्तीसगढ़ में पाये जाने वाली मिट्टियों की जानकारी प्राप्त करेंगे।

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मिट्टियों का वर्गीकरण

राज्य में पाई जाने वाली चट्टानों के संगठन, संरचना व गुण के आधार पर मिट्टियों को 5 भागों में विभाजित किया गया है, जो निम्नलिखित हैं।

  1. लाल-पीली मिट्टी
  2. लाल बलुई (रेतीली मिट्टी)
  3. लाल दोमट मिट्टी
  4. लैटेराइट मिट्टी
  5. काली मिट्टी

लाल-पीली मिट्टी

Chhattisgarh Ki Mittiyan
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  • विस्तार – छत्तीसगढ़ के उत्तरी एवं मध्य भाग में अपरदित गोण्डवाना एवं कडप्पा क्रम की चट्टानों से
  • निर्माण – अपरदित गोंडवाना एवं कडप्पा क्रम चट्टानों से
  • प्राप्ति स्थल – जशपुर-समारीपाट प्रदेश, पूर्वी बघेल का पठार व महानदी बेसिन के अधिकांश भाग में
  • स्थानीय नाम – मटासी मिट्टी
  • मुख्य क्षेत्र – सरगुजा, जशपुर, कोरिया, जांजगीर, रायगढ़, महासमुन्द, रायपुर, कवर्धा, कोरबा, दुर्ग, बिलासपुर, धमतरी इत्यादि ।
  • pH मान – 5.5 से 8.5
  • मिट्टी का लाल रंग – फेरस ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण
  • मिट्टी का पीला रंग – फेरिक ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण
  • जलधारण क्षमता – बालू की मात्रा अधिक होने के कारण अत्यन्त कम
  • प्रमुख फसलें – अलसी, धान, तिल, मक्का, ज्वार, कोदो और कुटकी, कपास आदि।
  • मिट्टी की प्रकृति – अम्लीय एवं क्षारीय
  • छत्तीसगढ़ में यह मृदा सबसे अधिक पाई जाती है।
  • इस मृदा का विस्तार राज्य के 50 से 55% भौगोलिक क्षेत्र पर है।
  • चूने की मात्रा इस मिट्टी में अधिक होती है।
  • इस मिट्टी में आयरन ऑक्साइड की अधिकता होती है।
  • यह मिट्टी धान की खेती के लिए उपयुक्त होती है। इसे चावल की मिट्टी भी कहा जाता है।
  • इस मिट्टी में बालू की मात्रा अधिक तथा एल्युमिना की मात्रा कम होती है, जिसके कारण इसकी प्रकृति रेतीली होती है।
  • इसमें ह्यूमस (जीवाश्म) एवं नाइट्रोजन की कमी होती है, जिसके कारण इसकी उर्वरता अधिक नहीं होती है।

लाल बलुई (रेतीली मिट्टी)

Chhattisgarh Ki Mittiyan
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  • विस्तार – पाट प्रदेश एवं बस्तर के उच्च भूमि के ढलानों में आर्कियन्स एवं धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपक्षय से
  • निर्माण – आर्कियन्स एवं धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपक्षय से
  • स्थानीय नाम – टिकरा मिट्टी व रेतीली मिट्टी
  • मुख्य क्षेत्र – बस्तर, दन्तेवाड़ा, रायपुर, कांकेर, दुर्ग, धमतरी, राजनान्दगाँव, बालौद (दक्षिणी भाग), कोण्डागाँव, नारायणपुर तथा बीजापुर
  • pH मान – 7 से कम
  • मिट्टी का लाल रंग – लौह-अयस्क की मात्रा अधिक होने के कारण
  • प्रमुख फसलें – मोटे अनाज, जैसे- ज्वार, बाजरा, कोदो और कुटकी आदि
  • मिट्टी की प्रकृति – अम्लीय
  • राज्य के 25 से 30% भौगोलिक क्षेत्रफल पर इस मृदा का विस्तार पाया जाता है।
  • यह मिट्टी वनीकरण के लिए सर्वोत्तम होती है।
  • बस्तर जिले के उच्च भूमि वाले ढालों पर पाई जाने वाली मिट्टी स्थानीय भाषा में टिकरा कहलाती है।
  • इस मिट्टी में रेत, कंकड़, क्ले आदि की मात्रा अधिक होती है तथा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश एवं ह्यूमस की मात्रा भी कम होती है। इसी कारण इस मिट्टी की उर्वरक क्षमता बहुत कम होती है।
  • दण्डकारण्य पठार पर लाल रेतीली मिट्टी पाई जाती है, इसलिए इसकी नमी धारण क्षमता कम होती है।

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लाल दोमट मिट्टी

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  • विस्तार – दन्तेवाड़ा व सुकमा जिलों में अधिक नीस, डायोराइट आदि चीका प्रधान व अम्ल रहित चट्टानों से
  • निर्माण – नीस, डयोराइट आदि चिका प्रधान व अम्ल रहित चट्टानों से
  • संरचना – छिद्रमय एवं भंगुर
  • pH मान – 7 से कम
  • मिट्टी का लाल रंग – लौह-अयस्क की मात्रा अधिक होने के कारण
  • जलधारण क्षमता – अत्यन्त कम
  • प्रमुख फसलें – बाजरा, तीसी, तम्बाकू, गेहूँ इत्यादि
  • मिट्टी की प्रकृति – अम्लीय
  • छत्तीसगढ़ के 10 से 15% भौगोलिक क्षेत्रफल पर इस मिट्टी का विस्तार पाया जाता है।
  • यह मिट्टी जल के अभाव में पत्थर की तरह शुष्क व कठोर हो जाती है, इसलिए इस मिट्टी में कृषि कार्य के लिए सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है।
  • इस मिट्टी में खरीफ के मौसम में इसमें धान की खेती तथा रबी के मौसम में मोटे अनाजों, दलहन व तिलहन फसलों की खेती की जाती है।
  • इस मिट्टी में रेत के अनुपात में क्ले की मात्रा अधिक होने के कारण इसे दोमट मिट्टी कहा जाता है।
  • दन्तेवाड़ा व सुकमा के अतिरिक्त यह मिट्टी बस्तर व बीजापुर के कुछ क्षेत्रों में पाई जाती है।

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लैटेराइट मिट्टी

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  • विस्तार – पाट प्रदेशों में (जगदलपुर एवं सरगुजा सम्भाग)
  • निर्माण – निक्षालन (Litching) विधि द्वारा
  • स्थानीय नाम – मरुमी अथवा भाठा
  • मुख्य क्षेत्र – बस्तर (जगदलपुर), रायपुर, बिलासपुर, राजनन्दगाँव (छुईखदान), बलौदाबाजार (भाटापारा), सरगुजा, (अम्बिकापुर, सीतापुर), बलरामपुर (सामरी), जशपुर (बगीचा), दुर्ग (साजा) आदि।
  • मिट्टी का रंग – कत्थई अथवा लाल
  • pH मान – 7
  • प्रमुख फसलें – बागवानी फसलें; जैसे- आलू, टमाटर, लीची, चाय आदि के अतिरिक्त मोटे अनाज वाली फसले; जैसे- ज्वार, बाजरा, कोदो-कुटकी आदि।
  • मिट्टी की प्रकृति – सामान्य एवं उदासीन
  • यह मिट्टी मोटे कणों एवं गोल पत्थरों से युक्त होती है।
  • इसमें रेतीली मिट्टी, कंकड़, पत्थर आदि होते हैं, जिस कारण यह मिट्टी बहुत कम उपजाऊ होती है।
  • एल्युमीनियम तथा लौह की अधिकता के कारण यह मिट्टी सूखने पर कठोर हो जाती है।
  • जल का बहाव लगातार होने के कारण इस मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है।
  • कठोर होने के कारण यह मिट्टी ईंट निर्माण में उपयोगी होती है तथा इस मिट्टी को भवन निर्माण के लिए उत्तम माना जाता है।

काली मिट्टी

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  • विस्तार – मैकाल श्रेणी, गरियाबन्द, बालोद एवं दुर्ग
  • निर्माण – बेसाल्टयुक्त चट्टानों के अपरदन से कन्हार, भर्री व रेगुर
  • स्थानीय नाम – कन्हार, भर्री व रेगुर
  • मुख्य क्षेत्र – मुंगेली, कवर्धा, रायपुर, राजिम, महासमुन्द, पण्डरिया, धमतरी आदि
  • pH मान – 7 से 8
  • मिट्टी का काला रंग – फेरिक टाइटेनियम की उपस्थिति के कारण
  • जलधारण क्षमता – सभी मिट्टियों से अधिक
  • प्रमुख फसलें – कपास, गन्ना, गेहूँ, चना, मूंगफली, सोयाबीन, दलहन फसलें आदि ।
  • मिट्टी की प्रकृति – क्षारीय
  • यह बारीक कणों वाली काली (रेगुर) या गहरी भूरी मिट्टी होती है।
  • राज्य के उच्च भू-भाग से प्राप्त होने वाली मिट्टी भर्री कहलाती है।
  • इस मिट्टी में चीका (Clay) की मात्रा अधिक होती है।
  • यह मिट्टी पानी मिल जाने पर चिपचिपी हो जाती हैं तथा सूखने पर इसमें बड़ी मात्रा में दरारें पड़ जाती है।
  • इस मिट्टी में एल्युमीनियम, सिलिका, लौह-ऑक्साइड, चूना तथा पोटाश की अधिकता होती है।
  • इसमें नाइट्रोजन, जीवाश्म एवं फॉस्फोरस की कमी होती है।
  • इस मिट्टी की जलधारण क्षमता अधिक होने के कारण इसे कृषि के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
  • इस मिट्टी में कृषि के लिए सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं पड़ती है।

छत्तीसगढ़ की क्षेत्रीय मिट्टियाँ

मिट्टियाँ विशेषता
डोरसा मिट्टी यह लाल-पीली मिट्टी व काली मिट्टी के मिश्रण से बनती है।
वनीय मिट्टी यह मिट्टी उच्च क्षेत्रों में पाई जाती है तथा यह मिट्टी वृक्षों के लिए अच्छी होती है।
कछारी मिट्टी यह सिल्ट युक्त दोमट मिट्टी होती है। यह नदी घाटियों के पास मुख्य रूप से पाई जाती है। इसे जलोढ़ मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
मरहान, टिकरा, माल व गभार मिट्टी ये मिट्टियाँ बस्तर के पठार (दक्षिण छत्तीसगढ़) में पाई जाती हैं।
पहाड़ी मिट्टी यह मिट्टी भाठा तथा टिकरा मिट्टियों के मिश्रण से बनती है। यह मिट्टी बघेलखण्ड एवं जशपुर पाट के ऊपरी भागों तथा बस्तर के ऊँचे पठार पर पाई जाती हैं।
टिकरा , छावर , बाहरा एवं गाद छावर
ये मिट्टियाँ सरगुजा क्षेत्र (उत्तर छत्तीसगढ़) में पाई जाती है।
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छत्तीसगढ़ में मृदा अपरदन

  • छत्तीसगढ़ राज्य का सम्पूर्ण दण्डकारण्य, जशपुर-समरीपाट प्रदेश मृदा अपरदन की समस्या से ग्रसित है।
  • जिसमें मुख्यतः जल एवं वायु जैसे प्राकृतिक बल भूमि की ऊपरी मृदा के कणों को अलग कर बहा ले जाते हैं।

मृदा अपरदन के प्रभाव

  • मृदा अपरदन से ऊपरी उपजाऊ मृदा के आवरण को क्षति पहुँचती है। जिसके कारण मृदा उर्वरता और कृषि उत्पादकता घटती जाती है।
  • आप्लावन (Inundation) और निक्षालन (Leaching) से मृदा के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
  • मृदा अपरदन के कारण वनस्पति आवरण नष्ट हो जाता है, जिससे इमारती और जलावन लकड़ी की कमी होने लगती है तथा वन्य जीवन दुष्प्रभावित होता है।
  • मृदा अपरदन भूमि की उर्वरा शक्ति को नष्ट करता है। अतः यह कृषि उत्पादकता को प्रभावित कर खाद्य सुरक्षा पर खतरा उत्पन्न करता है।

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मृदा अपरदन (क्षरण) के प्रकार

मृदा अपरदन के दो प्रकार होते है

1 . जल अपरदन

2 . पवन अपरदन

जल अपरदन

जल अपरदन का मतलब जल के द्वारा मृदा का ह्रास। ये कई प्रकार के होते हैं, जिन्हें निम्न प्रकार से समझा जा सकता है

  • वर्षा जल अपरदन – वर्षा जल की बूँदों के सीधे सतह से टकराने के कारण मृदा कण पृथक् होकर स्थानान्तरित हो जाते हैं, जिसे वर्षा जल अपरदन कहते हैं।
  • परत अपरदन – वर्षा जल की बूँदों एवं जल बहाव के कारण ऊपरी मृदा से एकसमान रूप से पतली परतों के रूप में मृदा का कटाव एवं अलगाव परत अपरदन कहलाता है।
  • रिल अपरदन – अत्यधिक वर्षा के कारण जब जल पतली-पतली नालियों से होकर प्रवाहित होने लगता है, तो अपरदन द्वारा कम गहरी नालियों का निर्माण ही रिल अपरदन कहलाता है।
  • बड़ी अवनलिका अपरदन – अत्यधिक सतही जल प्रवाह के कारण गहरी नालियों का निर्माण होता है, जिसे बड़ी अवनालिका या गली कहते हैं, ऐसा अपरदन बड़ी अवनलिका अपरदन कहलाता है।
  • धारा तट अपरदन – धाराएँ एवं नदियाँ एक किनारे को काटकर और दूसरे किनारे पर गाद भार को निक्षेपित करके अपने प्रवाह मार्ग को बदलती रहती हैं, तो यह धारा तट अपरदन कहलाता है।

पवन अपरदन

  • इस प्रकार का अपरदन वहाँ होता है, जहाँ की भूमि मुख्यतः समतल, अनावृत्त, शुष्क एवं रेतीली तथा मृदा ढीली, शुष्क एवं बारीक दानेदार होती है।
  • साथ ही वर्षा की कमी (रेगिस्तानी क्षेत्रों में) तथा हवा की गति अधिक होने के कारण पवन अपरदन होता है।

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छत्तीसगढ़ की मिट्टी का स्थानीय नाम

मिट्टी स्थानीय नाम
लाल-पीली मिट्टी मटासी
लाल-रेतीली मिट्टी टिकरा / रेतीली
लेटेराइट मिट्टी मुरुमी /भाठा
काली मिट्टी कन्हार /भर्री /रेगुर
लाल -पीली और काली मिट्टी डोरसा

मृदा संरक्षण या मृदा अपरदन रोकने के उपाय

मृदा संरक्षण से तात्पर्य मृदा को अपने स्थान से हटने से रोकने के लिए अपनाई गई विधियों से है, जिससे मृदा अपरदन को रोका जा सके। राज्य में मृदा अपरदन रोकने के लिए निम्नलिखित गतिविधियां अपनाई जा रही है।

  • छत्तीसगढ़ में मृदा संरक्षण के अन्तर्गत वृक्षारोपण, वनों की रक्षा, भूमि उद्धार, बाढ़-नियन्त्रण, बाँध बनाना, पट्टीदार व सीढ़ीदार कृषि, समोच्चरेखीय जुताई तथा अत्यधिक चराई पर रोक आदि के द्वारा मृदा अपरदन को कम किया जा रहा है।
  • जल के वेग को कम करने तथा बहते हुए जल की मात्रा व भारीपन में कमी करने के लिए मेड़बन्दी की प्रक्रिया को अपनाया जा रहा है।

FAQ

छत्तीसगढ़ में मुख्य रूप में कितने प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती है ?

पांच

लाल पीली मिट्टी हेतु स्थानीय नाम क्या है ?

मटासी मिट्टी

कौन सी मिट्टी छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक पाई जाती है ?

लाल-पीली मिट्टी

बागवानी फसलों के लिए उत्तम होता है ?

लैटेराइट मिट्टी

काली मिट्टी को स्थानीय लोग क्या कहते है ?

कन्हार मिट्टी

आज आपने इस पोस्ट Chhattisgarh Ki Mittiyan में छत्तीसगढ़ की मिट्टियों के बारे में जाना जानकारी सरल भाषा में पॉइंट वाइस दिया गया है। आपको यह जानकारी कैसी लगी कमेंट जरूर करे।

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