आज का विषय है Chhattisgarh Ke Loknatya लोकनाट्य अपने आप में एक समग्र लोक विधा है जिसमें लोकसाहित्य की सभी विधाओं का समावेश होता है, पारम्परिक संगीत, नृत्य, अभिनय और कथानक से मिलकर लोकनाट्य का सृजन होता है. लोकनाट्य लोकजीवन का सम्पूर्ण प्रतिबिम्ब होते हैं, लोकनाट्य सामाजिक अभिव्यक्ति का सबसे बड़ा साधन है.
छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य में अपने मनोरंजन की मौलिक परम्पराएँ हैं. हर अंचल में अपने-अपने ढंग की लोकरंग शैलियों का पारम्परिक विकास हुआ है, जिन्हें हम लोकनाट्य कहते हैं. लोकांचलों में लोकनाट्यों के अपने स्थानीय नाम और पहचान हैं.
सवाल देखने के पहले आप इस जानकारी को पहले पढ़ लीजिये तो आपको सवालों के जवाब देने में आसानी होगी।
गम्मत नाचा क्या है ?
- गम्मत का नाचा के अन्तर्गत विशेष महत्व होता है. इसमें हास्य व्यंग का पुट पाया जाता है.
- गम्मत लोकनाट्य की वह विधा है, जिसमें सामाजिक बुराईयों, रूढ़ियों के खिलाफ संघ का आह्वान, व्यंग तथा नए उभरते समाज में शिक्षा आदि होती है.
- इन प्रहसनों में प्रसंगानुसार छत्तीसगढ़ के जातीय संस्कार, जन्म, विवाह, मरण, धार्मिक विश्वास, देवी-देवता, जादू टोना, उत्सव, भोजली, जवारा, धार्मिक अनुष्ठान, उल्लास आदि का जीवंत चित्रण होता है,
- अंचल में गम्मत गायकी के दो रूप देखने को मिलते हैं.
- प्रथम खड़ी गायकी और द्वितीय बेटकर गाने की शैली बैठकर गम्मत गायकी का प्रचलन रतनपुर के आस-पास था, इसे ‘स्तनपुरिहा गम्मत’ कहते हैं.
- जबकि खड़ी गम्मत शेष अंचल में प्रचलित थी किन्तु आजकल इसका स्वरूप बदल गया है एवं उसका स्थान नाचा पार्टियों ने ले लिया है.
रहस क्या है ?
- छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा का प्रतीक
- ‘रहस’, रास या रासलीला. रहस, रास का छत्तीसगढ़ी रूपांतरण है.
- संगीत, नृत्य प्रधान कृष्ण का विविध लीलाभिनय. रहस छत्तीसगढ़ की अनुष्ठानिक नाट्य विधा है, जो यहाँ के समृद्ध लोकरंग का सम्पूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करती हैं.
- ‘रहस’ छत्तीसगढ़ के बिलासपुर संभाग विशेषकर बिलासपुर, रतनपुर, मुंगेली, जांजगीर व बिल्हा में बेहद लोकप्रिय है और इसी क्षेत्र ने इसे जीवंत बनाए रखा है. नृत्य, अभिनय और रंगमंच के वर्तमान स्वरूप का विकास बाद में हुआ.
- रहस का उद्गम श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध, रास बिहार व ब्रज विलास से हुआ है.
- रहस के दो स्वरूप छत्तीसगढ़ में प्राप्त होते हैं। एक खड़े साज तथा दूसरा बैठे साज
- बैठे साज – का रहस अंचल में कम ही होता है. वैयक्तिक आयोजन होता है और इसमें व्रज भाषा की शुद्धता पर ध्यान दिया जाता है यह रहस केवल रतनपुर में होता है.
- खड़े साज – ज्यादा लोकप्रिय और प्रचलित है, यह सामूहिक आयोजन होता है और आमतौर पर पूरा गाँव इसका मंच होता है.
- रहस को कई लीलाओं में विभाजित करके खेला जाता है राजा भोज की वंशावली से उग्रसेन को कृष्ण द्वारा राजगद्दी सौंपने तक कथा चलती है.
- कंस जन्म, कंस का अत्याचार देवकी विवाह, देवकी पर कंस का आक्रमण, कृष्ण का गोकुल पहुंचना पूतना मरण, कृष्ण का नामकरण, अन्नप्रासन सखियों द्वारा कृष्ण को गाली, बकासुर वध, यशोदा विरह चीरहरण, गोवर्धन लीला रास लीला, महारास मंगल लीला, राधा विलाप सुदामा माली लीला जैसे अनेक प्रसंग रहस के आकर्षण होते हैं.
- रहस के आयोजन का आरम्भ थुन्ह (एक प्रतीक खम्भ) गाड़ने से होता है और मूर्तिकार द्वारा मूर्तियों का निर्माण किया जाता है.
- रहस के रंग मंच को ‘बेड़ा’ कहा जाता है.
- आजकल नाचा या छैला पार्टी भी रहस का अंग बन गई है.
नाचा क्या है ?
- छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य की लोकप्रिय विधा।
- छत्तीसगढ़ में रहस के अतिरिक्त गम्मत और नाचा लोक मनोरंजन की नाटय विधा है.
- नाचा छत्तीसगढ़ का एक अन्तर-जातीय लोक नृत्य है. यह महाराष्ट्र के तमाशा से प्रभावित है गीत, प्रहसन, संवाद तथा व्यंग का समावेश इसके महत्वपूर्ण पहलू हैं.
- समूचे छत्तीसगढ़ में नाचा सर्वप्रसिद्ध हैं. छोटे से छोटे गाँव में नाचा के कलाकार और मंडलियां मिलती है.
- आज नाचा छत्तीसगढ़ की पहचान बन गया है, क्योंकि नाथा के कलाकार और नाचा की विशिष्ट छत्तीसगढ़ी लोक शैली अपने अंचल की सीमाओं को लांघ कर प्रदेश, देश और अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक मंचों तक पहुँच गई है.
- यह दुर्ग, रायपुर और राजनांदगांव जिलों में अधिक प्रचलित है.
- नाचा का मंच किसी भी स्थान पर बनाया जा सकता है वादक बैठकर संगत करते हैं. सामान्यतः हारमोनियम, मंजीरा, बेंजो, तबला और ढोलक आदि वाद्यों का उपयोग होता है इसमे परी (नर्तक) वादकों के सामने गीत गाते हुए नृत्य करता है,
- गीतों पर कोई पाबन्दी नहीं होती. ये लोक शैली में गाए जाते हैं, किन्तु आजकल फिल्मी गीतों के तर्ज पर गाए जाने लगे हैं.
- गीतों की एकरसता को तोड़ने के लिए बीच बीच में प्रहसन प्रदर्शित किया जाता है, प्रहसन को तमाशा भी कहते हैं.
- इसके द्वारा किसी भी घटना को तुरन्त प्रस्तुत किया जा सकता है. सामाजिक कुरीतियों, विषमताओं, दूषित राजनीति, ढोंग और आडम्बरों पर तीखी चोट नाचा द्वारा की जाती है.
- नाचा के अन्तर्गत गम्मत का विशेष महत्व होता है.
- इनमें हास्य व्यंग्य का पुट पाया जाता है. इसमें जोकर की अहम् भूमिका होती है. जीवन के किसी भी मार्मिक प्रसंग को इसका आधार बनाया जाता है. सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक सभी स्तर पर लोकमानस जिस बात को स्वीकार नहीं कर पाता उसका मखौल वह नाचा द्वारा करता है.
- विवाह, मड़ई, गणेशोत्सव, दुर्गोत्सव, जवांरा तथा खुशी के किसी भी अवसर पर नाचा के प्रति लोगों में उत्साह आश्चर्यजनक होता है.
भतरा नाट क्या है ?
- बस्तर की जनजाति में नाट्य का एक पूर्ण विकसित एवं सशक्त स्वरूप पाया जाता है, इसे बस्तर में भतरा नाट’ के नाम से जाना जाता है.
- ‘भतरा नाट’ बस्तर में ओडिशा से आया है, इसलिए कुछ लोग इसे उड़ीया नाट भी कहते हैं.
- यह बस्तर के भतरा जनजाति के लोगों द्वारा किया जाने वाला नृत्य नाट्य है. अतः इस नाट की बोली भतरी होती है.
- भतरा नाट की कथावस्तु के उद्गम पौराणिक प्रसंग ही है. इसमें अभिमन्यु वध कीचक वध, जरासंध वध, हिरण्यकश्यप वध, दुर्योधन वध, रावण वध, लक्ष्मीपुराण नाट, मेघनाथ शक्ति, रुक्मिणी रमण, लंकादहन और कस का वध बहुत ही प्रसिद्ध है.
- जहाँ एक ओर इनमें हास्य और व्यंग्य होता है, वहीं किसी-न-किसी कृत्य पर तीखा प्रहार भी होता है.
- नाटक का मंचन खुले मैदान में किया जाता है, चारों किनारों पर लकड़ी के खम्भे गाड़कर ऊपर मण्डप (चंदोवा) तान दिया जाता है.
- नाट्य के साथ में मृदंग, नंगाड़ा, मंजीरा, कभी-कभी प्रसंगानुसार मोहरी का भी प्रयोग किया जाता है. अधिकांश नाट युद्ध प्रधान होते हैं.
- भतरा के सभी कलाकार पुरुष होते है. मंडली में 25 से 40 कलाकार होते हैं. सूत्रधार के माध्यम से नाट की शुरूआत होती है.
- नाट की वेशभूषा अत्यंत भव्य एवं कीमती होती है, साटन, मखमल के चमकदार रंगीन वस्त्रों पर काँच के रंग-बिरंगे मोतियों एवं रंगीन रेशमी धागे के कसीदे से परिधान तैयार किए जाते हैं.
- हनुमान, गणेश, जामवंत, ताड़का, बालि, सुग्रीव, नरसिंह आदि पात्रों के लिए मुखौटा प्रयोग में लाए जाते हैं.
- बस्तर में इस नाट की वर्तमान स्थिति एक पूर्ण विकसित नाट्य विधा के रूप में है.
- भतरा नाट में भारतवर्ष की प्रतिष्ठित एवं पारम्परिक अन्य नाटक शैलियों के सभी तत्व पाए जाते हैं.
माओपाटा क्या है ?
- माओपाटा मुरिया जनजाति की एक शिकार नाटिका है.
- इसमें बड़ी खूबी से नकल की जाती है. चेहरे पर काजल, मिट्टी और राख का प्रयोग मेकअप के रूप में किया जाता है, मंच पर शिकार कथा को उसकी पारम्परिकता के साथ दिखाया जाता है.
- कथा यह है – कि एक गाँव है. गाय या भैंस का शिकार पाकर सभी नाचते-गाते हैं. गाय या भैंस को घेरकर शिकार करते हैं. इसी बीच एक शिकारी घायल होकर बेहोश हो जाता है. उसे ‘सिरहा मंत्रोच्चारण करता हुआ झड़ने का अभिनय करता है. बेहोश शिकारी होश में आता है. फिर गाय या भैंस का शिकार कर लिया जाता है. सभी शिकारी नाचते है और नाट्य पूर्ण होता है.
Chhattisgarh Ke Loknatya Quiz
तो चलिए शुरू करते है आज के सवाल
#1. इस राज्य का नाटक चंदैनी गोंदा के संस्थापक थे ?
#2. इस राज्य का यह लोकनाट्य नहीं है ?
#3. निम्न में से क्या बस्तर संभाग से संबंधित नहीं है ?
#4. छ.ग. में इनमें से किस आयोजन में पौराणिक चरित्रों की मानवाकार प्रतिमाएं बनाते हैं?
#5. …..लोकनृत्य का केंद्रीय विषय कृष्ण और राधा की रासलीला है?
#6. निम्नलिखित में से कौन सा नाट्य संगठन हबीब तनवीर द्वारा स्थापित है ?
#7. इस राज्य के लोकनाट्य से निम्नलिखित में से किसका संबंध नहीं है?
#8. इस राज्य का निम्नलिखित में से कौन-सा लोकनाट्य उत्तरप्रदेश की रासलीला’ से अधिक प्रभावित है ?
#9. इस राज्य की संस्कृति की निम्नलिखित में से क्या विशेषताएँ हैं ?
#10. रवेली नाचा पार्टी के संस्थापक थे ?
#11. छत्तीसगढ़ नाचा के प्रवर्तक कौन थे?
#12. छत्तीसगढ़ राज्य की समृध्द सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक निम्नलिखित में से कौन-सा है?
#13. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य नाचा के संबंध में असत्य है?
#14. छत्तीसगढ़ राज्य का लोकनाट्य “रहस” का कथानक होते हैं?
#15. सोनहा बिहान छत्तीसगढ़ के —–जिले के लोकनाट्य का एक सामान्य रूप है।
#16. छत्तीसगढ़ी नाटक राजा फोकलवा के लेखक निर्देशक कौन हैं ?
#17. इस राज्य की निम्नलिखित में से किस विधा में हबीब तनवीर ने विशिष्ट योगदान दिया?
#18. छत्तीसगढ़ में “रहस” नृत्य किस त्यौहार में करते हैं ?
#19. इस राज्य में दुलारसिंह मंदराजी निम्नलिखित में से किस लोकनृत्य के पुरोधा के रूप में जाने जाते हैं ?
#20. नया थिएटर के संस्थापक इस राज्य के निम्नलिखित में से कौन से कलाकार थे ?
Results
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