Chhattisgarh Ke Devi Devta | Deities Of Chhattisgarh | छत्तीसगढ़ के लोक देवी देवता  

आज के इस पोस्ट में हम Chhattisgarh Ke Devi Devta  के बारे में जानेंगे, छत्तीसगढ़ के वनवासी बहुत से देवी-देवताओं की पूजा करते है सब की अलग अलग मान्यताएँ है किवदंतिया है रोचकता से परिपूर्ण इन जानकारी को जब आप पढ़ेंगे तो छत्तीसगढ़ के आदिवासी परिवेश को जानने में मदद मिलेगी। यह परीक्षाओं को ध्यान में रखकर ही नहीं वरन सभी की जानकारी स्वरुप तैयार किया गया है।
अक्सर हम जिस परिवेश में रहते है वहां की बहुत सी मान्यताओ को हम जान नहीं पाते अगर आप इस पोस्ट को पढ़ रहे है तो छत्तीसगढ़ के वनवासी मान्यताओं को समझने में आसानी होगी। तो चलिए शुरू करते है आज का ज्ञान

छत्तीसगढ़ के आदिवासी देवी देवता

ठाकुर देव –

  • इन्हें ग्राम देवता का दर्जा है।
  • छत्तीसगढ़ के प्रत्येक गांव में इनका निवास गांव की चौहदी के भीतर किसी इमली या पीपल के वृक्ष पर माना जाता है।
  • मान्यता है की ये रात्रि को घोड़े पर सवार होकर गांव का निरीक्षण करते हैं।
  • गांव में आने वाली बाधाओं की पूर्व सूचना ग्राम प्रमुख या बैगा को देते हैं, ऐसी गांव के निवासियों की मान्यता है।
  • प्रत्येक वर्ष हरियाली के अवसर पर इनकी पूजा मुर्गी और बकरे से की जाती है।
  • ठाकुर देव प्रत्येक गांव में रहता है, जो ग्राम देवता का प्रतीक माना जाता है।
  • प्रत्येक शुभ और मांगलिक कार्य में इसकी पूजा का विधान है।

संहड़ा देव –

  • बस्तर क्षेत्र में संहड़ा देव की पूजा ग्राम देवता की तरह की जाती है।
  • मुख्य रूप से गोठान में इसकी स्थापना की जाती है।
  • इसमें नंदी की ही स्थापना की जाती है।
  • यह बैल की प्रस्तर प्रतिमा रहती है।
  • पहली जनी हुई गाय या भैंस का दूध इस पर चढ़ाते हैं।
  • दीपावली के अवसर पर इस देव स्थान पर दिये जलाये जाते हैं और गोवर्धन पूजा की जाती है।
  • गांव में जब बीमारी हो जाती है और कारण अज्ञात रहता है, तो बैगा बुलाकर उसके द्वारा खरिया डांड़ कराया जाता है।

माता देवाला –

  • शीतला मंदिर को ही माता देवाला कहते हैं।
  • यह प्रायः गांव के दोनों छोरों पर स्थापित किया जाता है।
  • मंदिर के बाहर चबूतरे पर घोड़ा, बैल आदि भी त्रिशूलों और बड़े पताकों के साथ स्थापित किए जाते हैं।
  • विवाह के अवसर पर चुलमाटी वाले दिन कलश स्थापना के लिए इसी मंदिर से मिट्टी को मंडप में ले जाया जाता है।

महामाई –

  • इन्हें देवी का दर्जा प्राप्त है।
  • चैत्र और क्वांर दोनों नवरात्रियों में इनकी विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

शीतला देव –

  • शीतला के मंदिर प्रायः सभी गांवों में देखने को मिल जाते हैं।
  • इन्हें गांवों में माता देवाला कहा जाता है।
  • इनका निवास नीम वृक्ष पर माना जाता है।
  • शीतला का प्रकोप चेचक के रूप से मनुष्यों पर होता है।
  • इनके प्रकोप से रक्षा करने एवं उन्हें प्रसन्न करने के लिए माता सेवा गीत गाया जाता है।
  • शीतला देव की पूजा अर्चना करने वाले पुजारी को बैगा संबोधित किया जाता है।

ठाकुरदइंया –

  • गांवों में नदी या तालाब किनारे चबूतरे पर पत्थर रखकर नियमित रूप से ठाकुरदइयां की पूजा की जाती है।
  • इन्हें बुरी नजर से गांव को बचाने वाला देवता माना गया है।

Deities Of Chhattisgarh

गौरैया देव –

  • बालोद जिले के पैरी नामक स्थान पर प्रतिवर्ष गौरैया मड़ई का आयोजन किया जाता है।
  • इसमें बहुत सारे देवी-देवताओं की पूजा सुख-शांति की कामना के साथ हजारों लोग पुरातन काल से करते आ रहे हैं।
  • वृक्षों की पूजा गौरैया देव के रूप में की जाती है।

दूल्हा देव –

  • इन्हें कुल देवता माना जाता है।
  • ये अपने अधीनस्थ कुल एवं परिवार की रक्षा करते हैं। इनकी पूजा भी ठाकुरदेव की भांति रक्त से की जाती है।
  • विवाह आदि के अवसरों पर दूल्हा देव की पूजा पहले की जाती है।
  • ऐसी मान्यता है कि कुल देवता के अप्रसन्न होने पर परिवार एवं कुल का विनाश हो जाता है।

चितावर –

  • आदिवासी इलाकों में चितावर देव की पूजा ग्राम रक्षक की भांति ही किया जाता है।

गौरी गौरा –

  • गणेश और पार्वती के प्रतीक स्वरूप इन्हें पूजा जाता है।
  • गोबर को गोलाकार कर उस पर हल्दी लगा कपड़ा लपेट दिया जाता है और उस पर अन्न आदि चिपका दिये जाते हैं।
  • किसी भी कार्य प्रारंभ करने के पहले सर्वप्रथम इन्ही की पूजा की जाती है।

लंगुरुवा –

  • इसमें बंदरों की पूजा की जाती है।
  • वानर को हनुमान का प्रतीक माना गया है।
  • पत्थर को बंदन और घी का लेप लगाकर लंगुरूवा देव बना कर किसी विशेष कार्य प्रारंभ करने के अवसर पर इसको पूजा जाता है.

चुरैतीन –

  • गांव को प्रेत आत्माओं से बचाने के लिए चुरैतीन की पूजा अर्चना कर खुश करने का रिवाज सदियों से प्रचलित है।

गोबर धन –

  • गोबर से पहाड़ जैसी आकृति बनाकर उसमें अनेक प्रकार के वनस्पतियों को लगा दिया जाता है।
  • विधि-विधान से इसकी पूजा दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर की जाती है।
  • गोठान पर इसकी पूजा कर गायों को इसके ऊपर से चलाते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में गोबर धन खुंदाना कहते हैं।

जंवारा-

  • नवरात्रि के अवसर पर गेहूं को अंकुरित कराकर नौ दिन तक हल्दी पानी डालते हुए पौधों की पूजा की जाती है।
  • नौवें दिन इसे विसर्जित कर दिया जाता है।

भोजली –

  • बांस की टोकरियों में गेहूं या धान के दानों को उगा दिया जाता है और उनके उगने के बाद उस पर हल्दी पानी का छिड़काव किया जाता है।
  • प्रत्येक संध्या को ग्राम कन्याएं पूजा स्थान पर एकत्रित होकर भोजली की सेवा गीत गाती हैं।
  • यह कार्यक्रम सावन पूर्णिमा तक चलता है, तत्पश्चात् भोजली को तालाब या नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।

अखरा देव –

  • ग्राम की सुरक्षा करने वाला देवता के रूप में इसकी पूजा की जाती है।

बमलाई –

  • इन्हें विमला माता भी कहते हैं।
  • किंवदंती है कि यह देवी विक्रमादित्य के काल से भी पूर्व यहां स्थापित है।

कृष्ण –

  • यादवों द्वारा मुख्य रूप से पूजनीय है।
  • छत्तीसगढ़ में इसे समृद्धि के देवता के रूप में भी पूजते हैं।
  • सामूहिक भोज के अवसरों पर जय श्री कृष्ण का उद्घोष कर ही सभी लोग भोजन ग्रहण करते हैं।

तुलसी –

  • तुलसी को माता का दर्जा प्राप्त है।
  • हर घर के आंगन में तुलसी एक चबूतरे के भीतर स्थापित मिलती है, जिसे तुलसी चौरा कहा जाता है।
  • देवउठनी के दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

इंद्र –

  • वर्षा के देवता के रूप में प्रतिष्ठित है। कृषि प्रधान होने के कारण
  • छत्तीसगढ़ में इंद्र की विशेष रूप से पूजा की जाती है।

हनुमान –

  • गांवों में हनुमान के मंदिर पर्याप्त रूप से विद्यमान हैं।
  • पत्थर पर घी मिश्रित सिंदूर लगाकर उसे हनुमान के रूप में पूजा करते हैं।
  • इसे जिसचबूतरे पर रखते हैं, उसे बजरंग पाट भी कहते हैं।
  • इन्हें रोट, एक प्रकार का मोटा रोटी का भोग लगाया जाता है।

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बूढ़ा देव –

  • यह भी दूल्हा देव की तरह कुल देवता हैं।
  • इनकी पूजा भी रक्त से की जाती है।

लक्ष्मी –

  • समृद्धि की देवी के रूप में इसकी पूजा की जाती है।
  • दीपावली पर इनका विषेश रूप से पूजन किया जाता है।

महादेव –

  • इन्हें देवों का देव मानकर पूजा करते हैं।
  • छत्तीसगढ़ के प्रत्येक तालाब के बीचों-बीच या किनारे शिव लिंग जरूर स्थापित किया जाता है।
  • तालाब में स्नान करने के बाद व्यक्ति लिंग पर जल जरूर चढ़ाते हैं।
  • शिवलिंग के साथ शिव की सवारी नंदी भी हमेशा विराजित रहती है।

कंकालीन –

  • काली माता की कंकालीन दाई के रूप में पूजा की जाती है।
  • शक्ति की उपासना करने वाले इस देवी की पूजा विशेष रूप से करते हैं।

आँगन पाट-

  • यह रास्ते का काला पत्थर होता है, जिस पर बैलगाड़ी के चक्के का तेल डालते हैं।

चूरा पाट –

  • बेर वृक्ष की शाखाओं से चूड़ी और फुंदरे अपनी मन्नत पूरी होने के आस में बांध देते हैं।
  • मन्नत पूरी होने के बाद बेर वृक्ष को नारियल का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

चिथड़ा देव –

  • रिंगनी वृक्ष (भटकटैया, कटेरी, रेंगनी ) की शाखाओं पर चिथड़े चढ़ाकर अपनी सुख समृद्धि की कामना करते हैं।

शालिगराम –

  • छोटे-छोटे पत्थरों को देव मानकर निश्चित स्थान पर धरती में दबा दिया जाता है।
  • तीन या पांच साल बाद इन्हें धरती से निकाला जाता है।
  • ऐसा माना जाता है कि इतने वर्षों में इनकी संख्या दुगुनी हो जाती है।
  • इस अवसर पर उत्सव मनाया जाता है।
  • बैगा होम धूप तथा बकरा की बलि दिया जाता था, बलि देने की प्रथा अब बंद हो गयी है। आजकल श्रीफल चढ़ाया जाता है।

चिथरई देवी –

  • एक देवी जिस पुराने वस्त्र अर्पित करके बदले में नए वस्त्रों की प्राप्ति हेतु कामना की जाती है।

जैतखाम –

  • प्रत्येक सतनामी जाति के लोगों के गांव में जैतखाम रहता है।
  • यह लकड़ी का स्तम्भ होता है, जिस पर सफेद कपड़े का झंडा फहराता रहता है।
  • सतनामी समाज के लोग प्रत्येक शुभ कार्य आरंभ करने से पहले जैत खाम की पूजा करते हैं।

मेड़ो देव –

  • यह ग्राम रक्षक देव माना जाता है।
  • यह प्रायः गांव की सरहद पर स्थापित किया जाता है और इसकी पूजा विधि-विधान से की जाती है।

सौंरा मिरगा –

  • शादी के अवसर पर एक स्थान से दूसरे स्थान को जाने वाला प्रेत या उत्पाती देवता ।

भवानी चौतरा –

  • मां भवानी के शक्ति स्वरूप को पत्थर में केंद्रित मानकर गांव के लोग इसकी पूजा करते हैं।
  • महामारियों और बीमारियों से ग्राम की रक्षा करने वाले देव के रूप में इसकी पूजा बड़े मनोयोग से सारे ग्रामवासी सामूहिक रूप से करते हैं।
  • महामारियों से ग्राम की रक्षा करने वाले देव के रूप में इसकी छत्तीसगढ़ के हर ग्राम में प्रतिष्ठा है।
  • छोटे-छोटे शालिग्राम के आकार के पत्थरों को देव मानकर निश्चित स्थान पर धरती में गड़ा दिया जाता है।
  • लोगों में ऐसा विश्वास है कि यदि इसकी अवधि तीन से पांच वर्ष पूर्ण होने पर इसे धरती से निकाला जाए तो इनकी संख्या में वृद्धि हो जाती है।
  • दीपावली के अवसर पर उत्सव मनाया जाता है।

इस प्रकार से अपने Chhattisgarh Ke Devi Devta  के बारे में जाना, जानकारी में कोई त्रुटि हो या आपको इसके अलावा और कोई जानकारी हो तो हमें जरूर बताये। यह पोस्ट आपको जानकारी पूर्ण लगा तो शेयर जरूर करें ताकि छत्तीसगढ़ की संस्कृति से अवगत हो सके, विविधताओं से भरा छत्तीसगढ़ इसके बारे में जितना जाने उतना कम है।

फिर मिलते है एक नए विषय के साथ, खुश रहें स्वस्थ रहें।

जय जोहर

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