आज हम इस ब्लॉग Sonakhan Vidroh में छत्तीसगढ़ स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद के बारे में संक्षिप्त जानकारी एवं सोनाखान विद्रोह के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम में छत्तीसगढ़ अंचल के प्रथम शहीद क्रांतिवीर नारायण सिंह का जन्म सन् 1795 ई. में सोनाखान के जमींदार श्री रामराय जी के परिवार में हुआ था। सोनाखान वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य के बलौदा बाजार जिले में स्थित है।
नारायण सिंह के पिता श्री रामराय जी स्वतंत्र प्रकृति के स्वाभिमानी पुरुष थे। वे तत्कालीन ब्रिटिश शासन से कई बार टक्कर ले चुके थे। रामराय ने सन् 1818-19 ई. के दौरान अंग्रेजों तथा भोंसलों के विरुद्ध तलवार उठाई थी, जिसे कैप्टन मैक्सन ने दबा दिया।
Sonakhan Vidroh
क्षेत्र | सोनाखान, जिला बलौदाबाजार |
नेतृत्व | वीरनारायण सिंह (जनजाति विंझवार ) |
विद्रोह का कारण | अकाल पीड़ितों को अनाज उपलब्ध कराना |
कहां से अनाज बांटा | कसडोल व्यपारी माखन के गोदान से |
डिप्टी कमिश्नर | चार्ल्स सी इलियट |
पुलिस अधीक्षक | लेफ्टिनेंट स्मिथ |
गिरफ्तार हुए | 24 अक्टूबर 1856 |
जेल से फरार | 27 अगस्त 1857 को जेल से सुरंग बनाकर |
सेना का गठन | नारायण सिंह ने 500 सैनिकों की सेना गठित |
आत्मसमर्पण किया | 2 दिसम्बर 1857 को |
अधिकारी | ले. स्मिथ के समक्ष आत्मसमर्पण किया |
इलियट के सम्मुख पेश | 5 दिसम्बर 1857 को |
फाँसी की सजा | 10 दिसम्बर 1857 को रायपुर के जयस्तंभ चौक में |
उपाधि | छत्तीसगढ़ स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद |
- सोनाखान के जमींदार बिंझवार राजपूत थे। 1490 में इस जमींदारी की स्थापना कलचुरि शासक बाहरसाय के समय बिसई ठाकुर बिंझवार ने सैन्य सेवाओं के बदले प्राप्त भू-भाग से की थी।
- 1818 में सोनाखान जमींदारी पर अंग्रेजो का प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित हुआ।
- 1819 में तत्कालीन जमींदार रामाराम ने अंग्रेजी प्रशासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया। कैप्टन मैक्सन की सेना ने रामराय के विद्रोह को कुचल दिया। किन्तु एक संधि के तहत् पुनः रामराय को सोनाखान की जमींदारी सौंप दी।
- 1855ई. में अंग्रेजी शासन के आरंभ के समय यहाँ के जमींदार नारायण सिंह थे।
- सन् 1856 में इस क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ा, लोग भूख से मरने लगे। लोगों की जान की रक्षा के लिए नारायण सिंह ने कसडोल के एक व्यापारी माखन के गोदाम का अनाज निकालकर अपनी भूखी प्रजा में बाँट दिया।
- नारायण सिंह के इस कृत्य को कानून विरोधी समझा गया तथा उसकी गिरफ्तारी का वारण्ट जारी किया गया। नारायण सिंह को पकड़ने हेतु एक सैनिक टुकड़ी दी गई, जिसने 24 अक्टूबर 1856 को सम्बलपुर में काफी कठिनाइयों के बाद बंदी बनाकर रायपुर लाया गया।
- जमींदार नारायण सिंह पर लूटपाट और डकैती का आरोप लगाकर रायपुर जेल में डाल दिया गया। वीरनारायण सिंह 10 माह 4 दिन तक जेल में रहे।
- जेल के कुछ सैनिकों ने वीरनारायण सिंह को स्वतंत्रता संग्राम का नेता मान कर उसे जेल से मुक्त करने की योजना बनाई। इस योजना के अंतर्गत जेल की दीवार में सुरंग बनाई गई और 27 अगस्त 1857 की रात वीरनारायण सिंह जेल से फरार हो गए।
छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद – वीरनारायण सिंह
- वीरनारायण सिंह सोनाखान पहुंचकर शांत नहीं बैठे। उसने अंग्रेजों से लड़ने के लिए आदिवासियों को संगठित किया तथा आदिवासियों के सहयोग से 500 हथियार बंद सैनिकों का दल गठित किया।
- नारायण सिंह के जेल से भाग जाने की सूचना मिलते ही डिप्टी कमिश्नर ने इस घटना की छानबीन की जिम्मेदारी रायपुर में नियुक्त तीसरी टुकड़ी को सौपी।
- नारायण सिंह की खोज के लिए लेफ्टीनेंट नेपियर के साथ लेफ्टिनेंट स्मिथ सेना सहित निकल पड़े।
- लेफ्टिनेंट स्मिथ के सोनाखान पहुंचने पर नारायण सिंह ने गुरिल्ला युद्ध पद्धति से स्मिथ की सेना पर आक्रमण कर दिया। स्मिथ को भटगाँव, बिलाईगढ़, देवरी, कटंगी, शिवरीनारायण जमीदारियों का सहयोग प्राप्त हुआ।
- अंत में वीर नारायण सिंह ने 2 दिसम्बर 1857 को लेफ्टिनेंट स्मिथ के समक्ष आत्समर्पण कर दिया। उन्हें गिरफ्तार कर पुनः रायपुर जेल में डाल दिया गया।
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- 5 दिसम्बर को डिप्टी कमिश्नर के सम्मुख पेश किया गया। उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया।
- जिसके फलस्वरूप 10 दिसम्बर 1857 को रायपुर के जयस्तम्भ चौक में उन्हें सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई। और उनके पार्थिव शरीर को तोप से उड़ा दिया गया.
- वीर नारायण सिंह भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ‘छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद’ थे।
- नारायण सिंह के पुत्र गोविन्द सिंह ने संबलपुर के सुरेन्द्र साय के साथ मिलकर देवरी जमींदार महाराज साय की हत्या की और प्रतिशोध लिया।
- 1857 की क्रांति के समय रायपुर के डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स सी इलियट थे।
FAQ
शहीद वीर नारायण सिंह का जन्म कहां हुआ था ?
सन् 1795 ई. में सोनाखान के जमींदार श्री रामराय जी के परिवार में हुआ था
सोनाखान वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य के किस जिले में स्थित है ?
सोनाखान वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य के बलौदा बाजार जिले में स्थित है
शहीद वीर नारायण सिंह को “वीर” की पदवी कैसे मिली ?
सोनाखान क्षेत्र में एक नरभक्षी शेर का आतंक मचा हुआ था, जिसके चलते प्रजा बहुत भयभीत थी । प्रजा की सेवा करने में तत्पर नारायण सिंह तत्काल तलवार हाथ में लिए नरभक्षी शेर की खोज में निकल पड़े और कुछ ही पल में शेर को खोजकर उसे ढेर कर दिए। इस प्रकार उन्होंने शेर का काम तमाम कर भयभीत प्रजा को निःशंक बनाया। उनकी इस बहादुरी से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें वीर की पदवी से सम्मानित किया। इस सम्मान के बाद से वे वीर नारायण सिंह के नाम से प्रसिद्ध हुए।
शहीद वीर नारायण सिंह के पिता का नाम क्या था ?
शहीद वीर नारायण सिंह के पिता का नाम रामराय, रामराय जी स्वतंत्र प्रकृति के स्वाभिमानी पुरुष थे। वे तत्कालीन ब्रिटिश शासन से कई बार टक्कर ले चुके थे।
सोनाखान विद्रोह का मुख्य कारण क्या था ?
अकाल – सन् 1856 ई. का वर्ष सोनाखान जमींदारी के लिए अभिशाप का वर्ष बनकर आया क्योंकि इस वर्ष धान का कटोरा कहा जाने वाला क्षेत्र भयंकर सूखे का शिकार होकर अकालग्रस्त हो गया। लोग दाने-दाने के लिए तरसने लगे।
क्रांतिवीर नारायण सिंह भारत की आजादी की लड़ाई में इस क्षेत्र में युवाओं के प्रेरणास्रोत रहे । अत्याचार एवं अन्याय के विरुद्ध लगातार संघर्ष का आह्वान, निर्भीकता, चेतना जगाने और ग्रामीणों में उनके मूलभूत अधिकारों के प्रति जागृति उत्पन्न करने के प्रेरक कार्यों को दृष्टिगत रखते हुए नवीन राज्य की स्थापना के बाद छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में अनुसूचित जाति एवं जनजाति और पिछड़ा वर्ग में उत्थान के क्षेत्र में एक राज्य स्तरीय वीर नारायण सिंह सम्मान स्थापित किया है। इस सम्मान के अंतर्गत दो लाख रुपए के नगद पुरस्कार साथ प्रशस्ति पत्र प्रदाय की जाती है। इसी प्रकार रायपुर के अंतरास्ट्रीय स्टेड़ियम का नाम भी शहीद वीर नारायण सिंह के नाम पर रखा गया।
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