Madhyapradesh Ke Pramukh Swatantrata Senani के बारे में संक्षिप्त में जानकारी जिसे आप आसानी से याद रख सकते है। अगर आप MPPSC व्यापम या PEB की तैयारी कर रहे हैं तो आपको मध्य प्रदेश के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी के बारे में जानना चाहिए, क्योंकि यहां से एक से दो प्रश्न जरूर आते है।
मध्य प्रदेश के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी
रानी लक्ष्मी बाई
- रानी लक्ष्मीबाई का जन्म बनारस में हुआ तथा इनका विवाह झाँसी के महाराजा गंगाधर राव से हुआ।
- उत्तराधिकार के मसले पर रानी लक्ष्मीबाई का ब्रिटिशों के साथ संघर्ष आरंभ हुआ।
- लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे के सहयोग से ग्वालियर पर अधिकार कर लिया, किंतु ब्रिटिश सेनापति ह्यूरोज ने ग्वालियर के किले को घेर लिया।
- 8 जून, 1858 को लक्ष्मीबाई साहसपूर्ण संघर्ष करती हुई वीरगति को प्राप्त हुईं।
टंट्या भील
- निमाड़ क्षेत्र के गौरव तथा आदिवासियों के मसीहा |
- टंट्या भील का जन्म पूर्वी निमाड़ के खंडवा जिले में 1842 में हुआ।
- टंट्या वनवासी क्षेत्र के एक ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आदिवासियों को एकत्र कर क्रांति का बिगुल बजाया था।
- ‘द न्यूयार्क टाइम्स’ के 10 नवंबर, 1889 के अंक में टंट्या भील की गिरफ्तारी की खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी, जिसमें इन्हें इंडिया का ‘रॉबिन हुड’ बताया गया था।
- वे अंग्रेज़ों से धन लूटकर गरीब आदिवासियों में बाँट दिया करते थे।
- टंट्या, गरीबों के लिये टंट्या मामा या जननायक बन चुके थे।
- अंतत: होल्कर पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर अंग्रेज़ों को सौंप दिया।
- 10 अक्तूबर, 1889 को टंट्या को फाँसी पर लटका दिया गया।
झलकारी बाई
- झलकारी बाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की महिला सेना ‘दुर्गादल’ की सेनापति थीं।
- उनका जन्म 22 नवंबर, 1830 को झाँसी के पास भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था।
- झलकारी बाई, लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थीं इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिये वे रानी के वेश में लड़ती थीं।
- 1857 की लड़ाई में झाँसी पर अंग्रेजों ने हमला कर दिया।
- झाँसी का किला अभेद्य था, पर रानी का एक सेनानायक गद्दार निकला। नतीजतन अंग्रेज़ किले तक पहुँच गए।
- जब रानी लक्ष्मीबाई शत्रुओं से घिर गई तब झलकारी ने कहा आप यहाँ से जाइये, मैं आपकी जगह लड़ती हूँ।
- इस युद्ध में झलकारी बाई अंग्रेजो से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुई।
- झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगीतों में और लोककथाओं में सुनी जा सकती है।
रानी अवंतीबाई
- रानी अवंतीबाई भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली वीरांगना थीं।
- रानी अवंतीबाई मध्य प्रदेश के रामगढ़ (वर्तमान मंडला जिला) की रानी थीं।
- रामगढ़ के राजा विक्रमजीत सिंह को विक्षिप्त तथा अमान सिंह और शेर सिंह को नाबालिग घोषित कर रामगढ़ राज्य को हड़पने की दृष्टि से अंग्रेज़ों ने ‘कोर्ट ऑफ वार्ड्स’ के तहत | कार्यवाही कर राज्य के प्रशासन के लिये सरबराहकार नियुक्त कर रामगढ़ भेजा।
- 1857 की क्रांति का बिगुल बजा तो वह अपने स्वाभिमान एवं राज्य की स्वतंत्रता के लिये अपने देशभक्त सिपाहियों के साथ स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ीं।
- 20 मार्च, 1858 को इस वीरांगना ने रानी दुर्गावती का अनुकरण करते हुए युद्ध लड़ते हुए अपने आप को चारों तरफ से घिरा देख स्वयं तलवार घोंप कर देश के लिए बलिदान दे दिया।
भीमा नायक
- 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मालवा-निमाड़ क्षेत्र में भीमा नायक ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध संघर्ष किया था।
- बहादुर, संवेदनशील तथा प्रारंभ से ही पहाड़ व जंगलों की गोद में पले-बढ़े भील, कंपनी के सरकार के लिये मालवा-निमाड़ क्षेत्र में भीषण संकट बन गए।
- भीमा नायक व उनके साथियों ने कई बार सरकारी खजानों को लूटा।
- भीमा नायक इस क्षेत्र में इतने प्रभावी और लोकप्रिय थे कि अनेक युवक बिना वेतन के उनके फौज टुकड़ी में शामिल हो गए थे।
- भीमा नायक को जब अंग्रेज़ नहीं पकड़ पाए तब उनके रिश्तेदारों एवं जानने वालों को दंड एवं प्रलोभन दिये गए उनके विश्वासघात के कारण बाद में भीमा नायक को पकड़ लिया गया।
- आजीवन कारावास की सज़ा देकर बाद में उन्हें अंडमान जेल भेज दिया गया।
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तात्या टोपे
- तात्या टोपे भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख सेनानायक थे।
- इनका जन्म महाराष्ट्र के नासिक जिले में ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
- तात्या टोपे का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग था।
- इन्होंने कुछ समय तक ईस्ट इंडिया कंपनी में बंगाल आर्मी की तोपखाना रेजीमेंट में काम किया था, परंतु स्वतंत्रता की चेतना से युक्त तात्या ने शीघ्र ही यह
- नौकरी छोड़ दी।
- 1857 के विद्रोह की लपटें जब कानपुर पहुँचीं तब वहाँ के सैनिकों ने नाना साहब को पेशवा और अपना नेता घोषित किया।
- तात्या टोपे को नाना साहब ने अपना सैनिक सलाहकार घोषित किया।
- कानपुर के विद्रोह के बाद तात्या टोपे ने मध्य भारत में झाँसी की रानी के साथ मिलकर मोर्चा सँभाला।
- अंतत: सिंधिया के सामंत मानसिंह ने विश्वासघात करके उन्हें पकड़वा दिया, और अंत में 18 अप्रैल, 1859 को शिवपुरी में इन्हें फाँसी दे दी गई।
- आधुनिक अंग्रेज़ी साहित्यकार पर्सीक्रॉस स्टेडिंग ने सैनिक क्रांति की ओर से उत्पन्न विशाल मस्तिष्क कहकर उनका सम्मान किया।
- उसने कहा कि वह ‘विश्व के सर्वश्रेष्ठ छापामार नेताओं में से एक था।
शंकरशाह एवं रघुनाथ शाह
- गढ़ मंडला के प्रतापी राजा शंकरशाह को तलवार एवं कलम दोनों पर समान अधिकार था।
- 1857 की क्रांति के दौरान देशभक्ति की कविताओं की रचना कर अपनी जनता में स्वतंत्रता के लिये संघर्ष का भाव भरा।
- इसी कारण ब्रिटिश नौकरशाही के कारिंदों द्वारा शंकरशाह व उनके बेटे रघुनाथ शाह को बंदी बनाकर 18 दिसंबर, 1858 को तोप के मुँह में बाँधकर उड़ा दिया गया।
खाज्या नायक
- खाज्या नायक अंग्रेजों के भील पल्टन के एक सामान्य सिपाही थे।
- बाद में उन्हें किसी गलती के कारण 10 साल की कैद हुई, जिस कारण से खाज्या के मन में अंग्रेज शासन के प्रति घृणा के बीज अंकुरित हो गए।
- जब 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह भड़का तब खाज्या नायक बाड़वानी क्षेत्र के क्रांतिकारी नेता भीमा नायक से मिल गए।
- यहीं से इन दोनों की जोड़ी बनी, जिसने भीलों की सेना बनाकर निमाड़ क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूँका।
- अप्रैल 1858 को बड़वानी के पास आमल्यापानी गाँव में अंग्रेज सेना और भील सेना की मुठभेड़ हो गई, जिसमें, खाज्या नायक के वीर पुत्र दौलतसिंह व अनेक योद्ध शहीद हो गए।
कुंवर चैन सिंह
- नरसिंहगढ़ के राजकुमार कुंवर चैन सिंह को मध्य प्रदेश का प्रथम शहीद कहलाने का गौरव प्राप्त है।
- यह जून 1824 में सिहोर के दशहराबाग मैदान में शहीद हुए थे।
विजयराघवगढ़ के सरयू प्रसाद सिंह
- मध्य प्रदेश के कटनी जिले का एक कस्बा है विजयराघवगढ़।
- विजयराघवगढ़ के राजा सरयू प्रसाद ने मात्र 17 वर्ष की उम्र में 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत शुरू की थी।
- वास्तव में युवराज सरयू प्रसाद सिंह क्रांतिकारी विचारधारा के एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे।
- 1857 के क्रांतिकारी ने जब बहादुर शाह जफर को अपना सम्राट घोषित किया और दिल्ली पर अधिकार कर लिया तब विजयराघवगढ़ एकमात्र ऐसा राज्य था जिसने तोपें दागकर क्रांति का अभिनंदन किया था और विदेशी सत्ता को चुनौती दी थी।
- सन् 1865 में सशस्त्र सैनिकों के पहरे पर काले पानी की सजा के लिये ‘रंगून’ जाते समय यह वीरात्मा पहरेदार की कटार छीनकर अपने सीने में भोंककर शहीद हो गए।
- उन्होंने कहा था कि ‘मैं काला पानी से मौत को अधिक पसंद करता हूँ। मेरी प्रजा में तुच्छ से तुच्छ व्यक्ति भी जेल में रहना पसंद नहीं करता फिर मैं तो उनका राजा हूँ।’
मनकहरी के ठाकुर रणमत सिंह
- विंध्य के जिन सपूतों ने देश की आज़ादी में भाग लिया उनमें मनकहरी के रणमत सिंह का विशेष स्थान है।
- रणमत सिंह पन्ना रियासत की सेना से जुड़े थे, बाद में उन्होंने पन्ना रियासत की नौकरी छोड़कर अपने साहस व कौशल के बल पर सागर की ब्रिटिश
- छावनी में लेफ्टीनेंट का पद प्राप्त किया।
- रणमत सिंह को आदेश दिया गया कि बुंदेलखंड के क्रांतिकारी बख्तबली व मर्दन सिंह को कैद करें।
- रणमत सिंह ने ऐसा करने से मना कर दिया, जिससे उन्हें सेना से निकालकर उनकी गिरफ्तारी के आदेश जारी कर दिये गए। जैसे ही रणमत सिंह को पता चला तो वह 300 देशभक्त सैनिकों को लेकर निकल पड़े व अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह में शामिल हो गए।
- इन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को विस्तृत करते हुए बघेलखंड तथा बुंदेलखंड के बाहर छत्तीसगढ़, छोटानागपुर तथा नर्मदा अँचल के सलीमनाबाद तक फैला दिया।
- रीवा राज्य के कुछ अधिकारियों ने अंग्रेज़ों से मिलकर रणमत सिंह से विश्वासघात कर उन्हें पकड़वा दिया।
- ब्रिटिश सेना ने उन्हें पकड़कर बाँदा जेल भेद दिया, जहाँ अगस्त 1859 में उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
चंद्रशेखर आज़ाद
- 23 जुलाई, 1906 को चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म अलीराजपुर ज़िले के भाबरा ग्राम में हुआ था।
- 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में इनकी पुलिस के साथ मुठभेड़ हुई जिसमें वह आखिरी गोली खुद को मारकर शहीद हो गए।
गुलाब सिंह पटेल
- महाकौशल क्षेत्र के वीर गुलाब सिंह पटेल का नाम मध्य प्रदेश के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में लिया जाता है।
- गुलाब सिंह के नेतृत्व में अगस्त 1942 में गिरफ्तार किये गए कॉन्ग्रेस नेताओं के विरोध में जबलपुर में एक आंदोलन चलाया गया।
- आंदोलन में पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किये जाने के परिणामस्वरूप गुलाब सिंह शहीद हो गए।
- इस घटना ने संस्कारधानी सहित पूर महाकौशल क्षेत्र में ‘करो या मरो’ की भावना को और प्रबल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।
सआदत खान
- 1857 की क्रांति के समय इंदौर में तुकोजीराव होल्कर (द्वितीय) का शासन था तथा इन्होंने गोपनीय तरीके से आंदोलनकारियों की सहायता की।
- 1 जुलाई, 1857 को इनके तोपखाने के प्रमुख तोपची सआदत खाँ ने भारतीय जवानों को संबोधित करते हुए कहा “तैयार हो जाओ आगे बढ़ो और अंग्रेज़ों को मार डालो” यह महाराजा का हुक्म है।
- इंदौर में इन्होंने क्रांति का बीड़ा उठाया और मुल्क को आजाद करने की जिम्मेदारी ली।
- अक्तूबर 1874 की सुबह इस महान क्रांतिकारी को फाँसी दे दी गई।
राजा बख्तावार सिंह
- महाराजा बख्तावर सिंह मध्य प्रदेश के धार जिले के अंतर्गत अमझेरा के शासक थे।
- सन् 1857 के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के समय यहाँ के शासक बख्तावार सिंह ही थे।
- वे मालवा की धरती में जन्में ऐसे वीर थे जिन्होंने इस क्षेत्र में अंग्रेज़ों की सत्ता की नींव हिला डाली।
- उन्होंने राजशाही में जीने वाले लोगों को भी देश के लिये बलिदान देने की प्रेरणा दी।
- लंबे समय के बाद अंग्रेज़ों ने छलपूर्वक उन्हें कैद कर लिया।
- 10 फरवरी, 1858 में इंदौर के महाराजा यशवंत चिकित्सालय परिसर में एक नीम के पेड़ पर उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया।
शहीद किशोर सिंह
- 1857 की क्रांति में बुंदेलखंड के अनेक जाँबाज़ों ने अंग्रेज़ी सेना से टक्कर लेकर उन्हें नाकों चने चबबाया था।
- इन्हीं में से एक अमर सेनानी क्रांति के सूत्रधार नायक हिंडोरिया रियासत के राजा किशोर सिंह लोधी थे, जिन्होंने अंग्रेजी सेना का विद्रोह करते हुए अपने प्राण मातृभूमि को न्योछावर कर दिये।
बख्तबली शाह जूदेव
- सागर जिले में 1857 का जो विद्रोह हुआ उसमें शाहगढ़ के राजा बख्तबली शाह जूदेव की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी।
शेख रमजान
- मेरठ से भड़की 1857 की क्रांति की आग ने बहुत जल्द ही मध्य प्रदेश के सागर को भी अपनी चपेट में ले लिया।
- सागर गजेटियर में दर्ज जानकारी के अनुसार यहाँ 1 जुलाई से क्रांति का आरंभ हुआ।
- 42वीं पैदल सेना के वरिष्ठ सूबेदार शेख रमजान ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। इन्होंने सदर बाज़ार के लोगों की मदद से अंग्रेज़ अफसरों को लूटना
- शुरू कर दिया।
- बाद में ये सैनिकों को साथ लेकर शाहगढ़ के राजा बख्तबली से जा मिले।
FAQ
झलकारी बाई का जन्म कहां हुआ था ?
उनका जन्म 22 नवंबर, 1830 को झाँसी के पास भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था।
तात्या टोपे का वास्तविक नाम क्या था?
रामचंद्र पांडुरंग
रानी लक्ष्मीबाई का झलकारी बाई से क्या संबंध था?
झलकारी बाई, लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थीं इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिये वे रानी के वेश में लड़ती थीं। साथ ही रानी लक्ष्मीबाई की महिला सेना ‘दुर्गादल’ की सेनापति भी थीं।
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