Electoral Bond Kya Hota Hai इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है ?

आज हम Electoral Bond Kya Hota Hai विषय पर एक सक्षिप्त जानकारी प्राप्त करेंगे इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा फैसला आने के बाद यह फिर से चर्चा में है. आइये जाने क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?

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Electoral Bond क्या है ?

इलेक्टोरल बॉन्ड भारत में राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक तरीका है। यह योजना 2018 में शुरू की गई थी। इस योजना के तहत, कोई भी व्यक्ति या कंपनी चुनावी बांड खरीद सकता है और अपनी पसंद के राजनीतिक दल को दान कर सकता है।

Electoral Bond का इतिहास:

इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश की थी। यह योजना 2018 में शुरू हुई थी।

Electoral Bond उद्देश्य:

इस योजना का उद्देश्य राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता बढ़ाना और काले धन के इस्तेमाल को कम करना है।

आलोचनाएं:

  • इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना की आलोचना इस बात के लिए की गई है कि यह काले धन को राजनीति में लाने का एक तरीका है।
  • यह भी आलोचना की गई है कि यह योजना राजनीतिक दलों पर बड़े उद्योगपतियों और कंपनियों का अनुचित प्रभाव बढ़ाएगी।

समर्थन:

  • इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना का समर्थन इस बात के लिए किया गया है कि यह राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता बढ़ाएगी।
  • यह भी समर्थन किया गया है कि यह योजना राजनीतिक दलों को धन जुटाने का एक आसान तरीका प्रदान करेगी।

इलेक्टोरल बॉन्ड के फायदे:

पारदर्शिता:

इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की जानकारी सार्वजनिक होती है। इससे राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता बढ़ने की उम्मीद है।

काला धन:

इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में काले धन का इस्तेमाल कम होने की उम्मीद है।

इलेक्टोरल बॉन्ड के नुकसान:

गुमनामी:

इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले का नाम सार्वजनिक नहीं होता है। इससे राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में गुमनामी बनी रहती है।

अनुचित प्रभाव:

इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए बड़े उद्योगपतियों और कंपनियों का राजनीतिक दलों पर अनुचित प्रभाव बढ़ने की आशंका है।

इलेक्टोरल बॉन्ड पर बहस:

इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत के बाद से ही इस पर बहस जारी है। कुछ लोगों का मानना ​​है कि यह योजना राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता बढ़ाने में मदद करेगी, जबकि अन्य का मानना ​​है कि यह योजना काले धन को राजनीति में लाने का एक तरीका है।

इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें:

  • इलेक्टोरल बॉन्ड केवल भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ही खरीदे जा सकते हैं।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड 1000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में उपलब्ध हैं।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले का नाम सार्वजनिक नहीं होता है।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले को अपनी पसंद के राजनीतिक दल को दान करने के लिए 15 दिन का समय होता है।
  • राजनीतिक दल इलेक्टोरल बॉन्ड को केवल अपने बैंक खाते में जमा कर सकते हैं।
  • राजनीतिक दल इलेक्टोरल बॉन्ड को नकद में नहीं बदल सकते हैं।

इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा फैसला:

  • 15 फरवरी 2024 को, सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंबंधित घोषित कर दिया।
  • यह फैसला कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया, जिनमें आरोप लगाया गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता को कम करती है और काले धन को राजनीति में लाने का एक तरीका है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा:

  • इलेक्टोरल बॉन्ड योजना सूचना के अधिकार (RTI) का उल्लंघन करती है क्योंकि यह चंदा देने वाले का नाम सार्वजनिक नहीं करती है।
  • यह योजना राजनीतिक दलों पर बड़े उद्योगपतियों और कंपनियों का अनुचित प्रभाव बढ़ा सकती है।
  • यह योजना राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता नहीं लाती है और काले धन को राजनीति में लाने का एक तरीका हो सकती है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को बदलने के लिए एक नई योजना तैयार करे जो पारदर्शी हो और सूचना के अधिकार का उल्लंघन न करे।

यहां कुछ महत्वपूर्ण बिंदु दिए गए हैं:

  • सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंबंधित घोषित कर दिया है।
  • यह फैसला सूचना के अधिकार (RTI) और राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता के लिए महत्वपूर्ण है।
  • यह देखना बाकी है कि सरकार इस फैसले को कैसे लागू करती है और क्या यह राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने में मदद करता है।

इलेक्टोरल बॉन्ड से सम्बंधित FAQs :

इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है?

इलेक्टोरल बॉन्ड भारत में राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक नया तरीका है।

इलेक्टोरल बॉन्ड कैसे काम करते हैं?

इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की जानकारी सार्वजनिक होती है। इससे राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता बढ़ने की उम्मीद थी।

इलेक्टोरल बॉन्ड के क्या नुकसान हैं?

इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले का नाम सार्वजनिक नहीं होता है। इससे राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में गुमनामी बनी रहती है।

सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर क्या फैसला सुनाया?

सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी 2024 को इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंबंधित घोषित कर दिया।

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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को बदलने के लिए एक नई योजना तैयार करे जो पारदर्शी हो और सूचना के अधिकार का उल्लंघन न करे।

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