आज का विषय Chhattisgarhi Vyanjan इस शृंखला में हम छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की जानकारी प्राप्त करेंगे प्रतियोगी परीक्षाओं में इससे सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते है. सभ्यता के विकास के साथ स्वाद की दुनिया बदलती चली गई। मध्य भारत के पांच प्रमुख लोकांचल हैं, बुंदेलखण्ड, बघेलखण्ड, निमाड़, मालवा और हमारा अपना छत्तीसगढ़। अपनी-अपनी रस विशिष्टता के साथ। ऐसे में हमें याद आती हैं हमारी परंपराएं इस मामले में छत्तीसगढ़ संभवतः सबसे अनूठा है।
अन्य राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ में भी खान-पान की विशिष्ट और दुर्लभ परंपराएं हैं। निःसंदेह दूसरे देशो के लोकांचलों के मुकाबले छत्तीसगढ़ स्वाद के मामले मे बेजोड़ है। नमकीन, मीठे व्यंजनों की इन श्रृंखला में भुने हुए, भाप में पकाए और तले प्रकार तो है और इनसे अलग हटकर भी व्यंजन बनाने की रिवाज है। इन खाद्य पदार्थों में उन्हीं वस्तुओं का इस्तेमाल होता है, जिनकी जरूरत रोजमर्रा की रसोई में हम किया करते है।
कलेवा – छत्तीसगढ़ी में कलेवा का अर्थ
छत्तीसगढ़ी में कलेवा का अर्थ होता है ” व्यंजन” । भारतीय संस्कृति में छप्पन भोग की विशिष्ट परंपरा है। देवी-देवताओं को प्रसाद चढ़ाने से लेकर तीज-त्यौहार व पर्वों पर विशेष पकवान बनाने की परंपरा छत्तीसगढ़ में है। इन व्यंजनों को बनाये जाने के पीछे कई महत्वपूर्ण बातें व उद्देश्य समाहित है, जो इसकी विशिष्टिताओं को विकसित करते हैं।
Chhattisgarh Ke Pramukh Vyanjan
- तसमई – खीर जैसा व्यंजन दूध और चांवल का यह पकवान मीठा होता है। इसे हर खुशी के मौकों पर परोसा जाता है।
- खुरमी – गेहूं तथा चांवल के आटे के मिश्रण से निर्मित मीठी प्रकृति का लोकप्रिय व्यंजन है। गुड़, चिरौंजी और नारियल इसका स्वाद बढ़ा देते हैं। इसमें बांस की बनी टोकरी से हथेली की सहायता से दबाकर आकृतियां उकेरते हैं।
- करी – बेसन का मोटा सेव है, इसे नमक डालकर नमकीन करते हैं। बिहाव जोरा का एक प्रमुख व्यंजन है। बगैर नमक डाले बेसन से बनाई जाने वाली करी से मीठा लड्डू बनता है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में करी काफी लोकप्रिय व्यजंन माना जाता है।
- बरा – उड़द दाल से बने इस व्यजंन का शादी-ब्याह तथा पितर में विशेष चलन है। इस खुशी के मौके पर बरा जरूर बनाया जाता है।
- बघारे भात – बचे पके हुए चांवल को हरी मिर्च, सरसों, जीरा, प्याज के साथ छोंक दिया जाता है। मजदूर वर्ग इसे नाश्ते के बतौर खाते हैं। वैसे देखा जाए तो रात के बचे चावल को उपयोग करने का एक तरीका भी है।
- सूजी पकवा – सूजी आटा में शक्कर और घी डालकर हलवा बनायी है। हिन्दी भाषी क्षेत्रों में इसे सूजी का हलवा भी कहते हैं।
- कतरा – गेहूं आटा या मैदा से बना नमकीन या मीठा पेठा।
- बूंदी लाडू – बेसन के बने मीठे बूंदी को शक्कर की चासनी में डुबोकर बनाया जाता है।
- मुर्रा लाडू – मुर्रा को गुड़ की चासनी में डुबोकर लड्डू बनाया जाता है।
- तिली लाडू – तिल और गुड़ की वासनी से बने इस व्यंजन में मूंगफल्ली डालकर स्वाद बढ़ाया जाता है
- करी लाडू – बेसन से बने बिना नमक वाले मोटे सेव को गुड़ की चासनी में डुबोकर करी लड्डू बनाया जाता है। इसे दुःख और सुःख दोनों अवसरों पर परोसा जाता है।
- चिंवरा – पोहा को मीठी नीम और लहसुन के साथ अत्यधिक कम तेल में छौंककर हल्का गरम करके बनाया जाता है।
- पताल के फदका – अत्यधिक पके टमाटर को मसलकर तेल में छौंक दिया जाता है।
- सोंहारी – शादी और भोज में पतली और बड़ी पूरी सोहारी परोसी जाती है।
- चौसेला – हरियाली अमावस्या, पोरा, छेरछेरा त्यौहारों में विषेष रूप से तलकर तैयार किया जाने वाला यह व्यंजन चांवल के आटे से बनाया जाता है। घी में तलकर बनाया जाता है। तीज के अवसर पर इसे विशेष तौर पर बनाया
- दूध फर्रा – उबले हुए दूध में चांवल आटे का फरा।
- देहरौरी – दरदरे चांवल से बनी देहरौरी अपनी अलग पहचान रखती है। चासनी में भीगी देहरौरी को रसगुल्ले का छत्तीसगढ़ी स्वरूप भी कह सकते हैं।
- कटवा रोटी – मैदे आटे का मीठा या नमकीन रोटी जैसा व्यंजन ।
- महेरी – भात और मट्ठा से बना व्यजंन ।
- चाउंर कुसली – चांवल आटे की गुझिया।
Chhattisgarhi Vyanjan
- गुलगुला भजिया – नये चांवल आटे में गुड़ की चासनी से बना पकोड़ा।
- बतासा – गोल आकर का शक्कर से बना व्यंजन, होली के अवसर पर इसे माला में पिरोकर लोग एक दूसरे को पहनाते हैं और होली की बधाई देते हैं।
- बोईर मुठिया – बेर को पीस कर बनाया गया तीखा लड्डू।
- बफोरी – अरबी या बेसन को भाप में पकाकर पकौड़ा समान बनाया गया व्यजंन ।
- पाना रोटी – केले या पलाश के पत्ते में लपेटकर सीधे ही अंगार पर बनाया गया गेंहू आटे की रोटी।
- पपची – गेहूं और चांवल के आटे से बनी पपची बालूशाही को भी मात कर सकती है। मीठी पपची मंद आंच में सेकें जाने से कुरमुरी और स्वादिष्ट बन जाती है।
- मढा पीठा – इसे चांवल आटे से बनाया जाता
- जोंधरा लाडू – मक्के का मीठा लड्डू ।
- चना लाडू – चना दाल से बना मीठा लड्डू ।
- भोक्का लाडू – लाई की लड्डू।
- चीला -चीले के दो रूप प्रचलन में है मीठा और नमकीन चांवल के आटे में नमक डालने से नुनहा चीला बनता है। घोल में गुड़ डाल देने से गुरहा चीला बनता है। इन दोनों चीला का स्वाद पताल की चटनी से बढ़ जाता है।
- ठेठरी – लम्बी और गोल आकृति वाला यह व्यंजन बेसन से बनता है।
- अइरसा – अइरसा चांवल आटा और गुड़ की चासनी से बना छत्तीसगढ़ी व्यंजन है। इसे पकवानों में स्वादिष्ट माना जाता है। छत्तीसगढ़ी व्यंजनों में इसे बादशाही व्यंजन माना गया है।
- चांउर भजिया – चांवल आटे का बना नमकीन पकौड़ा। वस्तुतः यह चांवल आटे का भजिया ही है।
- फरा – फरा दो तरह से बनता है। मीठा, जिसमें गुड़ का घोल डाल देते हैं। दूसरा भाप में पकाया हुआ जिसको बघार लगाकर स्वादिष्ट किया जाता है।
- नूनछूर मही – मट्ठा। मही में काला नमक, पुदीना पत्ती और अदरक को डालकर बनाया जाता है। इसे छाछ भी कहते हैं।
- बासी – रात को बचे पके हुए चांवल में पानी और माड़ मिलाकर बनाया गया छत्तीसगढी लोगों का मुख्य खाद्य पदार्थ ।
- पेज – मांड़ के साथ, बना पसाया हुआ चांवल, जिसे गर्मी के दिनों में खाया जाता है।
- तिखुर – एक प्रकार के जंगली कंद का हलवा । सामान्यतः इसे उपवास में या फलाहार के रूप में ग्रहण किया जाता है।
- हथफोड़वा – चांवल आटे से बनी मोटी रोटी।
- कसार लाडू – मगज की लड्डू।
- कथिला – खिचड़ी। रोगी को सामान्यतः इसका सेवन कराया जाता है।
- धुस्का रोटी – चांवल आटा और बेसन को मिलाकर तवे में बनाया जाता है।
- चीला – चांवल आटे के घोल में नमक डालकर बनाया जाता है। सामान्यतः चीले को मिर्च और पताल की चटनी के साथ खाया जाता है। आधुनिक समय में प्रचलित दक्षिण भारतीय व्यंजन दोसा का कुछ कम छत्तीसगढ़ी प्रचलन है चीला ।
- अइरसा/अरसा रोटी – चांवल आटा और गुड़ की चासनी से बना छत्तीसगढ़ का प्रमुख व्यंजन | यह व्यंजन अधिक दिनों तक संरक्षित रखा जा सकता है। खराब नहीं होता, इस कारण आज भी और पहले के जमाने में किसी व्यक्ति को तीर्थटन या लंबी यात्रा करनी होती थी, तो इस व्यंजन को साथ ले जाते थे।
- बोबरा – इसे चांवल के आटे और गुड़ की चासनी को मिलाकर घी या तेल में तलकर बनाया जाता है।
- खपुरी रोटी – चांवल आटे और बचे भात को मिलाकर तवे पर सेंककर यह रोटी बनाई जाती है। इसे सुबह के नाश्ते में ज्यादातर उपयोग किया जाता है।
- गुरहा चीला – चांवल के आटे में गुड़ डालकर मीठा चीला बनाया जाता है। हरेली के त्यौहार पर विशेष रूप से इस व्यंजन को बनाया जाता है और इसी व्यंजन का भोग भी लगाया जाता है।
- रखिया बरी – उड़द दाल और सफेद कुम्हड़ा से बनी बड़ी ।
- बिजौरी – तिल, उड़द दाल और कुम्हड़े के बीज को मिलाकर बनाया गया छोटी रोटी जैसा इसे सुखा दिया जाता है। सूखने के बाद बासी या खाने के साथ इसे तेल में तलकर परोसा जाता है। सामान्यतः बरसात और ठंड के दिनों में इसका सेवन जरूर किया जाता है।
- लाई बरी – उड़द दाल और लाई से बनी बड़ी।
- अदौरी बरी – उड़द और मूंग दाल से बनी बड़ी।
- ननकी बड़ी – उड़द दाल की बनी बहुत ही छोटे आकार की बड़ी ।
- मुदंगा बड़ी – उड़द दाल और मुनगा की बनी बड़ी।
- मुरई बड़ी – मूली और उड़द दाल की बनी बड़ी ।
- जिमी कांदा बड़ी – उड़द दाल और जिमीकंद से बनी बड़ी ।
- ढेखरा बरी/लेड़गा बड़ी – उड़द दाल और जिमीकंद के तने से बनी बड़ी
- भात बड़ी – पके हुए चांवल से बनी बड़ी ।
- इंडहर कढ़ी – उड़द दाल और बेसन से बनी कढ़ी।
- डूबकी कढ़ी – उड़द दाल से बनी कढ़ी। पिसे हुए उड़द दाल के आटे को गरम होते कढ़ी में भजिया स्वरूप डाल देते हैं। उबाल आने पर उतार लिया जाता है।
- फोकट कढ़ी – सादा बेसन से बनी कढ़ी। यह कढ़ी का विशुद्ध रूप है।
- चीला कढ़ी – बेसन के चीला से बनी कढ़ी। बेसन के घोल से तवे पर चीला बनाया जाता है, फिर इसे तोड़-तोड़कर कढ़ी में डाल दिया जाता है।
- गोंदली कढ़ी – प्याज से बनी कढ़ी। सामान्य बोलचाल में इसे प्याजी कढ़ी भी आजकल लोग कहते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो इस प्रकार की कढ़ी में प्याज का तड़का बहुत ज्यादा मात्रा में दिया जाता है।
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Chhattisgarhi Vyanjan के इस लेख में हमने लगभग सभी व्यंजनों को समाहित किया है और उनका संक्षेप में विवरण दिया है आपको यह लेख जानकारी पूर्ण लगा हो तो कमेंट जरूर करे और कुछ त्रुटि हो तो जरूर अवगत करें।
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