Chhattisgarh Rajya Ke Pramukh Parv Evam Tyohar | छत्तीसगढ़ राज्य के प्रमुख पर्व एवं त्यौहार

आज हम इस पोस्ट में Chhattisgarh Rajya Ke Pramukh Parv Evam Tyohar के बारे में point wise जानकारी प्राप्त करेंगे, नोट्स जरूर बना के रखिये, छत्तीसगढ़ में त्योहारों का विशेष महत्व होता है यहाँ के लोग बहुत ही श्रद्धा पूर्वक हर त्यौहार को मानते है. सभी की अलग अलग परंपरा और रीति रिवाज होते है, सबका त्यौहार मानाने का तरीका अलग होता है, बहुत सारी विविधता आपको इन पर्वो के बारे में जानने को मिलेगी, तो चलिए शुरू करते है आज का ज्ञान।

छत्तीसगढ़ में मनाए जाने वाले त्योहारों के नाम और महीना

जंवारा

  • पुरूषों के प्रधान पर्व के रूप में जंवारा का पर्व चैत्र और क्वांर माह में मनाया जाता है।
  • इस पर्व में प्रत्येक रात्रि को देवी की पूजा-अर्चना की जाती और उसकी प्रार्थना में अनके गीत गाए जाते हैं।
  • उस समय गाए जाने वाले गीतों में देवी को प्रार्थना, स्तुति, पराक्रम और उसकी शोभा का यशोगान निहित होता है।
  • इस त्यौहार का प्रारंभ देव स्थान में जंवारा बोकर किया जाता है।
  • जंवारे अन्न के नन्हें बिरवें में नित्य प्रति हल्दी पानी का छिड़काव किया जाता है और माता की स्तुति का गान किया जाता है।
  • पर्व के नौवें दिन एक भव्य शोभायात्रा के साथ सरोवर या नदी में जंवारे का विसर्जन किया जाता है।
  • शोभायात्रा में महिलाएं सिर पर जंवारा या कलश रखकर सफेद साड़ी पहनकर शामिल होती हैं।
  • पुरे जवांरा को तालाब में नहीं छोड़ा जाता, बल्कि कुछ हिस्सों को टोकरी में रखकर वापस ले आते हैं।
  • इसे मित्रों एवं परिजनों को वितरित करते हैं।
  • जंवारा बदकर मित्रता की परंपरा छत्तीसगढ़ में बहुत पुरानी है।

हरेली

  • श्रावण मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह त्यौहार।
  • किसानों का प्रमुख त्यौहार है। कृषि कार्य के समापन होने के साथ ही मनाया।
  • हरेली त्यौहार में किसान अपने सारे कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं।
  • भोग के रूप में गुड़ से बने चीला को चढ़ाया जाता है।
  • इस दिन पशुओं के सीगों या खुरों में तेल लगाकर एरंड के पत्तों पर रखकर उन्हें भोजन कराया जाता है।
  • इसी दिन पशुओं के रक्षक देवता गोरइंया की पूजा भी मुर्गी-बकरे से की जाती है।
  • केवट या निषाद अपनी नाव के मांधी में त्रिशूल का चिन्ह सिंदूर से अंकित कर उसकी पूजा करते हैं।
  • इस दिन लुहार अपने मालिकों के द्वार में कील ठोंकते हैं। यहां के लोगों की मान्यता है कि जिस घर में लुहार का कील गड़ा हो, वहां दुष्ट आत्माएं प्रविष्ट नहीं करती।
  • इस दिन से बालकों का गेंड़ी में चढ़ना प्रारंभ हो जाता है।
  • हरेली के दिन गांवों में कबड्डी या बैल दौड़ या अन्य प्रकार की प्रतिस्पर्धा आयोजित की जाती है।

भोजली

  • छत्तीसगढ़ की बेटियों का पुनीत पर्व सावन शुक्ल नवमीं के दिन से प्रारंभ होता है।
  • जन्माष्टमी के दूसरे दिन उपवास रखकर यहां की कन्याएं एक निश्चित स्थल पर भोजली की स्थापना करती हैं।
  • उस स्थान में बांस की टोकरियों में गेहूं या धान के दानों को बो दिया जाता है और उनके उगने के बाद उन पर पर्व पर्यंत हल्दी पानी का छिड़काव किया जाता है।
  • प्रत्येक संध्या को ग्राम कन्याएं पूजा स्थल पर एकत्रित होकर भोजली की सेवा गीत गाती हैं।
  • यह कार्यक्रम सावन पूर्णिमा तक चलता है, तत्पश्चात् भोजली को तालाब या नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।
  • विसर्जन के बाद ग्राम कन्याएं परस्पर भोजली को एक दूसरे के हाथ में देकर या एक दूसरे के कान में खोंसकर स्नेह प्रदर्शित करती हैं।
  • इस क्रिया से उनमें एक दूसरे के प्रति सखी संबंध स्थापित हो जाता है।

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Chhattisgarh Rajya Ke Pramukh Parv Evam Tyohar

पोरा

  • भाद्रपद अमावस्या को मनाया जाने वाला पोरा का त्यौहार शंकर-पार्वती के प्रतीक स्वरूप बैलों की पूजा का त्यौहार है।
  • इस दिन कृषक अपने बैलों की पूजा करते हैं और उन्हें अनेक रंगों से रंग देते हैं।
  • बैलों की झांकी भी निकाली जाती है। घर के आंगन को रंगोली से सजाकर उस स्थान पर मिट्टी से बने या काठ के बैलों को नये वस्त्रों में ढंका जाता है।
  • उन्हें मिट्टी के पतीले में रखी रोटी का भोग लगाने के बाद पूजा-अर्चना की जाती है।
  • प्रतीक के उपरांत बच्चे पोरा बैलों की झांकी सामूहिक रूप से निकालते हैं।

आठे

  • भादो मास की अष्टमी तिथि को आठे मनाया जाता है।
  • इस दिन उपवास रखते हैं। रसोई घर की दीवारों पर आठे कन्हैया का चित्र बनाकर पूजा करके फलाहार करते हैं।
  • दूसरे दिन रामधुनी दल के साथ दही लूट, नारियल फेंक, राम सप्ताह झूला आदि का आयोजन किया जाता है।

छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्योहार

बसंत पंचमी

  • माघ के पंचमी के दिन मां शारदा की पूजा की जाती है।
  • इसी दिन से अरंडी की डाली गाड़कर होली के लिए लकड़ी एकत्र करना प्रारंभ करते हैं, साथ ही अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किये जाते हैं।

अगहन बिरसपत

  • अगहन मास के प्रत्येक बृहस्पतिवार को मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है।
  • इस अवसर पर महिलाओं द्वारा मांगलिक एवं ज्यामिति आकृति में चौक पूरे जाते हैं।

जेउठनी

  • कार्तिक एकादशी के दिन मनाये जाने वाले इस पर्व के दिन तुलसी का विष्णु के साथ विवाह उत्सव मनाया जाता है।
  • इसी दिन से विवाह के शुभ मुर्हृत आरंभ होते हैं।
  • ग्वाले अपने मालिकों के पशुधन को सोहाई बांधकर सुख समृद्धि की कामना करते हैं।

मातर

  • यह पर्व राउत व ठेठवार समुदाय द्वारा दीपावली और पूर्णिमा के बीच गोवर्धन पूजा के रूप में आयोजित किया जाता है।
  • इस दिन ग्वालों द्वारा किसानों को आमंत्रित कर दूध, खीर आदि का वितरण कर अपने उत्साह का प्रदर्शन करते हैं ।
  • पशुधन को सोहाई बांधते हैं और दोहा पढ़कर नृत्य करते हैं।

गउरी-गउरा पर्व

  • इसे दीपावली के एक सप्ताह पूर्व गोंड़ एवं आदिवासियों द्वारा शिव व गौरी की विवाह के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
  • महिलाएं गौरी-गौरा में फूल कुचर कर गौरा जगाने, विवाह विर्सजन आदि के गीत गाते हैं।
  • गौरा-गौरी की मूर्ति की शोभा यात्रा बाजा-गाजा के साथ निकाली जाती है।
  • मूर्तियों पर उलगे पना को निकालकर लोग मित्रता बंधन बांधते हैं।
  • कुंवरी मिट्टी लाकर शाम तक गौरी और गौरा का निर्माण कर लिया जाता है।
  • गायक-वादक महिलाएं रात भर सेवा में लगी रहती हैं।
  • सुबह होते ही ग्राम भ्रमण के बाद नदी या तालाब में इसे विसर्जित कर दिया जाता है।

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पीतर पाख

  • कंवार माह के प्रथम पक्ष में पीतर पाख मनाया जाता है, जो पैतृक पूर्वजों एवं परिवार की मृत आत्माओं को समर्पित होता है।
  • लोग पूर्वजों की पसंद के अनुरूप पकवान बनाते हैं और इन पकवानों को वे ब्राम्हणों, गायों और कौओं को खिलाते हैं।
  • पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु जल स्थल पर तर्पण भी किया जाता है।

देवारी

  • यह कार्तिक तेरस से प्रारंभ होकर द्वितीया तक मनाते हैं।
  • यह स्वच्छता, उजाला एवं उत्साह का पर्व है।
  • इसके पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन नरक चतुर्दशी, तीसरे दिन दीपावली ‘सुरहुति’ चौथे दिन गोवर्धन पूजा एवं पांचवे दिन भाई दूज मनाया जाता है।
  • मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है।
  • भगवान श्रीराम के लंका विजय के पश्चात अयोध्या आगमन पर दीप प्रज्वलित कर खुशियां मनाई गई थी।
  • यह पर्व समस्त परंपराओं व हिन्दू धर्म के संस्कारों का संवाहक है। यह एक त्यौहार न होकर लगातार पांच दिनों तक चलने वाले त्यौहारों का समूह है।

तीजा

  • भाद्रपद मास को गणेश चतुर्थी के एक दिन पूर्व तीजा का उपवास है। यह सुहाग का सबसे बड़ा व्रत है।
  • उस दिन महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं।
  • रात्रि में पंडित द्वारा गौरी की प्रतिमा का पूजन किया जाता है।
  • शंकर पार्वती की पूजा-अर्चना के पश्चात् मंगल कलश पर दीप जलाया है और प्रतिमा को खीर अर्पित किया जाता है।
  • प्रतिमा पर चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, फल आदि समर्पित कर महिलाएं रात्रि को जागरण करती हैं।
  • रात भर भजन-कीर्तन का कार्यक्रम चलता रहता है ।
  • व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए भोजन और शयन दोनों वर्जित रहता है।
  • प्रातःकाल महिलाएं स्नान आदि कर्म से निर्वित होकर प्रसाद के रूप में सिंदूर और चूड़ी को धारण करती हैं।
  • छत्तीसगढ़ में यह त्यौहार महिलाएं मायके में मनाती हैं।
  • इस दिन उन्हें मायके की तरफ से नये परिधान भी भेंट किए जाते हैं।
  • तीजा उपवास रखने के बाद महिलाएं सफर नहीं करती हैं।
Chhattisgarh Rajya Ke Pramukh Parv Evam Tyohar

कमरछठ

  • भाद्रपद मास में हलषष्ठी का व्रत होता है।
  • संतानवती महिलाएं ही इस व्रत का पालन करती हैं।
  • इस दिन उपवास रखने वाली महिलाएं डोरी की खली में अपने बालों को धोती हैं।
  • उस दिन बिना हल जुते जमीन से उत्पन्न उपज का फलाहार किया जाता है।
  • इसमें दूध, दही, घी आदि का समावेश होता है।
  • इसी दिन दोपहर में आंगन में छोटा सा कुंड खोद कर उसके कगारों पर कांसे का फूल, बैर के कांटे और पलास के पत्ते आदि खोंस दिए जाते हैं।
  • महिलाएं उसका पूजन कर उसमें बांटी, गिल्ली, डंडा, भौरें, कीचड़, धूल तथा लड्डू आदि चढ़ाती हैं।
  • इस व्रत का पाठ पंडित द्वारा कराया जाता है।
  • स्त्रियां छह पत्तों में रक्त चंदन से देवी की मूर्ति चित्रित कर छठ चढ़ाती हैं।
  • छठ में लाई, दूध, दही, महुवा, मेवा एवं भुट्टे आदि भरकर चढ़ाया जाता है।
  • छठ में सिंदूर का टीका भी लगाया जाता है।
  • उस दिन महुए के पत्तों से बने दोने पत्तल पर पसहर चांवल का भात खाती हैं।
  • भोजन में नमक के स्थान पर सेंधा नमक तथा मिर्च के स्थान पर धन मिर्ची या ठड़ मिर्ची का उपयोग किया जाता है।
  • उस दिन भोजन भाजी का विशेष उपयोग किया जाता है।

छेरछेरा

  • पौष पूर्णिमा के दिन छेरछेरा पुन्नी का त्यौहार मनाया जाता है।
  • इस दिन तक प्रायः फसल को कृषक घर ले आते हैं।
  • इसी कार्यगत पूर्णता के उपलक्ष्य में इस त्यौहार को मनाया जाता है।
  • इस दिन बालक सामूहिक रूप, छेरछेरा छेरछेरा, माई कोठी के धान ल हेर हेरा, का गान करते हुए एक घर से दूसरे घर जाकर अन्न की याचना करते हैं।
  • इस त्यौहार में पूरी रोटी का बनाया जाना विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
  • इस पर्व में नर्तक को नकटा और नर्तकी को नकटी कहा जाता है।
  • बच्चे भी इस त्यौहार में गायन करते हैं।
Chhattisgarh Rajya Ke Pramukh Parv Evam Tyohar

मड़ई

  • विजय का प्रतीक स्वरूप मनाया जाने वाला यह त्यौहार माघ मास से प्रारंभ होकर फाल्गुन तक चलता रहता है। पूर्व के निर्धारित तिथि को मड़ई होता है।
  • इसमें आस-पास के व्यापारी हाट बाजार लगाते हैं।
  • इसकी अगुवाई राउत लोग करते हैं। सबसे पहले स्थानीय केंवट लोगों द्वारा मड़ई बनाई जाती है।
  • एक पूरे बांस को रंगीन कागजों, आम पत्तों या कंदई से सजाया जाता है।
  • गांव में केंवट जाति के लोगों के न रहने पर राउत लोग ही ये काम करते हैं।
  • शाम को विजय जुलूस के रूप में राउत इसे हाथों में लेकर नाचते-गाते व दोहा गाते हैं।
  • पूरे ग्राम भरण के बाद बीच बाजार में मंड़ई को गाड़ दिया जाता है।
  • रात भर नाच का कार्यक्रम होता है।

सरहुल

  • प्रकृति पूजन के इस पर्व को आदिवासी चैत्र पूर्णिमा को मनाते हैं।
  • आदिवासी संस्कृति में इस पर्व को संथाल, मुंडा और उरांव जन-जातियां सामूहिक रूप से बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं।
  • लोक कथा के अनुसार गांव में एक बार बच्चों पर एक राक्षस ने हमला कर दिया, बच्चे डर कर साल वृक्ष में छिप गए। बच्चों की रक्षा करने के लिए साल वृक्ष से माता प्रकट हुई और बच्चों की रक्षा उस राक्षस से की और उस राक्षस को मार गिराया।
  • उसके बाद बच्चे साल वृक्ष के उतों को कानों में खोंचकर अपने-अपने घर की ओर लौट गए।
  • मान्यता अनुसार तभी से साल वृक्ष से प्रकट होने वाली माता के कारण उस माता का नाम सरना रखकर सरहुल त्यौहार मनाया जाने लगा।
  • इस त्यौहार में गांव के बाहर साल वृक्ष के झुंड के आसपास की जमीन को गोबर से लीप कर पूजा अर्चना की जाती है।
  • घरों में साल वृक्ष के पत्ते लटकाए जाते हैं।
  • प्रसाद के रूप में साल वृक्ष के पत्ते ही दिए जाते हैं, जिसे गांव वाले कानों में खोंस लेते हैं।
  • शोभा यात्रा के बाद सामूहिक भोज की भी प्रथा है।

आमाखायी

  • यह धुरवा एवं परजा जनजातियों का प्रमुख त्यौहार है।
  • यह पर्व आम के वृक्ष में बौर आने के समय अत्यंत उत्साह से मनाया जाने वाला पर्व है।
  • आम वृक्ष के नीचे पूजा अर्चना कर जनजाति समूह ढोल की थाप पर नृत्य करते हुए पूजा-पाठ करते हैं।

करमा

  • उरांव, बिंझवार, बैगा व गोंड जनजाति का प्रमुख त्यौहारों में से एक है।
  • यह पर्व धान रोपने से लेकर फसल कटाई के मध्य अवकाश काल का पर्व है जो कि भाद्र माह में मनाया जाता है।
  • इसी पर्व के अवसर पर करमा नृत्य का आयोजन भी किया जाता है।
  • देखा जाए तो यह पर्व वन्य जीवन व कृषि आधारित पर्व है।

करसाड़

  • बस्तर की अबूझमाड़ जनजाति माटी तिहार के बाद हर वर्ष गर्मी और बरसात के मध्य में करसाड़ का त्यौहार मनाते हैं।
  • इसे वैसे तो अबूझमाड़ जनजाति ही मनाती है, लेकिन दोरला, दंडामी और माड़िया जनजाति के लोग भी इस त्यौहार में शामिल रहते हैं।
  • इस त्यौहार को मनाने का प्रमुख ध्येय अच्छी फसल के लिए गोत्र देव से मनौती मांगना है।
  • कहा जा सकता है कि यह गोत्र देव को प्रसन्न करने का एक पर्व है।
  • पूजा अर्चना के बाद नृत्य का भी आयोजन होता है।

बासी तिहार

  • यह त्यौहार वर्ष का अंतिम पर्व होता है। इस दिन लोग मौज करते हैं।
  • यह पर्व अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार अप्रेल महीने में मनाया जाता है।
  • इस दिन सारे लोग पहले दिन बने हुए भोजन को दूसरे दिन खाकर नाचते गाते हैं।

बाली बरब

  • तीन माह तक लगातर चलने वाले इस पर्व को हल्बा और भतरा जनजाति के लोग मनाते हैं।
  • भीमादेव को प्रसन्न करने के लिए इस त्यौहार को मनाया जाता है।
  • इसे ग्राम के भीमादेव गुडी परिसर में ही मनाया जाता है।
  • देखा जाए तो इस त्यौहार को मनाने का निश्चित समय नहीं है।
  • ग्रामवासी अपनी सुविधा के अनुसार इस त्यौहार को मनाते हैं।
  • इस त्यौहार में धन का खर्च भी अधिक होता है, इसे ग्रामवासी आपसी चंदे से पूर्ति करते हैं।
  • धन खर्च होने के कारण यह है कि पूजा-पाठ के बाद सामूहिक ग्राम भोज का भी आयोजन किया जाता है।
  • इस पर्व में दिन-रात नाच गान होता है।
  • इस पर्व में सेमल का एक विशेष स्तंभ स्थापित किया जाता है।

गोबर बोहरानी

  • दक्षिण बस्तर के कुछ जगहों पर मनाया जाने वाला त्यौहार है।
  • यह प्रतिवर्ष चैत्र मास में मनाया जाता है ।
  • इस त्यौहार की खासियत यह है कि यह दस दिनों तक चलता है।
  • ग्रामीण ग्राम से लगे मैदान में ग्राम देवी की स्थापना करते हैं और शस्त्र पूजा करते हैं।
  • पूजा के बाद जंगल में शिकार करने चले जाते हैं। शिकार करने के बाद नाच गान का आयोजन होता है और भोज का।
  • मैदान में एक विशेष प्रकार का गड्डा बना रहता है, जिसमें समस्त ग्रामीण थोड़ा-थोड़ा गोबर प्रतिदिन डालते रहते हैं।
  • दसवें दिन ग्रामीण एक-दूसरे पर इसी गोबर को छिड़ककर गाली-गलौच करते हैं।
  • थोड़ा सा गोबर अपने खेतों में भी डालते हैं।

दियारी तिहार

  • उस स्थान की पूजा का पर्व है, जिसमें चरवाहा प्रतिदिन पशुओं को इकट्ठा कर जंगल चराने ले जाता है।

लक्ष्मी जगार

  • धान की बाली को खेत से जगार घर या दूल्हा घर में धूमधाम से लाया जाता है।
  • धान की बाली को लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।
  • इस प्रकार से लक्ष्मी की प्रतीक बाली और विष्णु के प्रतीक जगार घर में स्थापित नारियल का विवाह होता है।

अमूंस तिहार

  • हरेली अमावस्या को मनाया जाने वाला त्यौहार है।
  • इसमें पशु औषधियों की पूजा की जाती है।
  • विशेष रूप से रसना और शतावरी वनौषधि की पूजा की जाती है।
  • देखा जाए तो ये दोनों औषधियां पशु चिकित्सा में प्रमुख भूमिका निभाती हैं ।

नवाखानी

  • भादो माह में शुक्ल पक्ष में मनाया जाने वाला त्यौहार है।
  • खेत की नयी फसल का नया अन्न ग्रहण करने से पूर्व ग्राम देवी देवताओं व कुल देवियों की पूजा अर्चना कर नया धान चढ़ाया जाता है।
  • नवाखानी के बाद ही नयी फसल का उपयोग करते हैं।

गोंचा पर्व

  • राज्य के आदिवासी बहुल इलाकों में आषाढ़ माह में मनाया जाने वाला त्यौहार है।
  • यह पर्व काकतीय नरेश की एक तीर्थ यात्रा है।
  • इस पर्व में ग्रामीण जगदलपुर में आकर श्री जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों को सम्मनपूर्वक रथ में स्थापित करते हैं और रथ को चलाते हैं।
  • नौ दिनों तक रथ में रखी मूर्तियां दसवें दिन मंदिर में जब लौटती हैं, उस दिन आदिवासी विशेष रूप से तुपकिया चलाते हैं।
  • यह रथ यात्रा का प्रतिरूप है।

चरू जातरा

  • बिना महिलाओं के मनाया जाने वाला पर्व है।
  • इसमें कृषि भूमि की पूजा की जाती है।
  • पुरूष वर्ग मुर्गा, बकरा, कबूतर, हांसा आदि की बलि भी दे देता है।

माटी तिहार

  • प्रति वर्ष चैत्र मास में मिट्टी के वास्वविक स्वरूप की पूजा कर मनाया जाने वाला त्यौहार है।
  • माटी देवगुड़ी के परिसर में कुएं की तरह एक छोटे से गड्डे में सियाड़ी रस्सी से बंधी बीजधान मिट्टी को अर्पित किया जाता है।
  • प्रसाद के रूप में बीज धान ही लिया जाता है।
  • कई जगहों पर इस पर्व को बीज पुटनी भी कहते हैं।

अकती

  • अक्षय तृतीया का त्यौहार परशुराम जयंती के रूप में पूरे भारत में मनाया जाता है, पर छत्तीसगढ़ में यह कृषि आधारित त्यौहार है।
  • छत्तीसगढ़ अंचल में मिट्टी से बने पुतरा-पुतरी का विवाह संपन्न कराया जाता है।
  • इस विवाह में पूरे गांव के लोग शामिल होते हैं।
  • बच्चे या तो पुतरा-पुतरी को खरीदते हैं या कपड़े से स्वयं बना लेते हैं। बच्चें भी अपने स्तर ही पुतरा-पुतरी का विवाह संपन्न कराते हैं।
  • किसान इसी दिन खेत की पूजा कर अगले दिन से कृषि कार्य का शुभारंभ कर देते हैं।
  • खेत की पूजा भी विशेष पद्धति से की जाती है, खेत की थोड़ी सी जमीन को कुदाली से खोदकर उसमें धान बो दिया जाता है।
  • नारियल फोड़कर विधिवत पूजा संपन्न की जाती है।

चैत्रई

  • परजा और धुरवा जनजाति यह पर्व मनाते हैं, जिसमें सुअर अथवा मुर्गे के बलि देने की परंपरा है।

दियारी

  • वस्तुतः यह दीपावली का त्यौहार ही है।
  • बस्तर अंचल में बस्तर के जनजाति बंधु अपने तरीके से दीपावली का त्यौहार मनाते हैं।
  • यह दीपावली के दूसरे दिन सुबह बैलों को खिचड़ी खिलाकर मनाया जाता है।

धेरसा

  • यह त्यौहार कोरवाओं द्वारा जनवरी में मनाया जाता हैI
  • सरसों, दाल आदि की फसल कटने पर मनाया जाने वाला त्यौहार है I

कोरा

  • माह सितंबर में कोरवा आदिवासी कुटकी, गोंदली की फसल काटने के बाद यह उत्सव मनाते हैं।

लारूकाज

  • इस उत्सव में सुअर की बलि दी जाती है। यह उत्सव गोंड नाराण देव के सम्मान में मनाते हैं।

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मेघनाद

  • फाल्गुन माह में गोंड़ आदिवासियों द्वारा यह पर्व मनाया जाता है।
  • रावण पुत्र मेघनाद को गोंड़ सर्वोच्च देवता मानते हैं और इसकी पूजा करते हैं।
  • आदिवासी मेघनाद के प्रतीक के रूप में पांच खंभों के मेघनाद खंभ की पूजा करते है।
  • पांचवे खंभे में बल्ली बांधकर, उस पर लटक कर चारों दिशाओं में घूमते हैं।

तो आज आपने लगभग सभी Chhattisgarh Rajya Ke Pramukh Parv Evam Tyohar के बारे में संक्षिप्त में जानकारी हासिल की छत्तीसगढ़ के सभी त्यौहार अपने आप में विभिन्नता लिए हुए है जिसे पढ़ने के साथ साथ जिज्ञासा भी बढ़ता है, यह संकलन डॉक्टर गीतेश अमरोहित जी की किताब से लिया गया है.

जानकारी ज्ञानपूर्वक लगे तो कमेंट जरूर किया कीजिये ताकि हम फिर एक नए विषय के साथ आपसे फिर मिल सके तब तक के लिए जय जोहर।

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