Chhattisgarh Me Kalchuri Rajvansh | छत्तीसगढ़ में कलचुरी राजवंश का इतिहास

Chhattisgarh Me Kalchuri Rajvansh छत्तीसगढ़ के इतिहास में आज आप छत्तीसगढ़ में कलचुरी राजवंश , छत्तीसगढ़ के कलचुरी शासक, छत्तीसगढ़ का इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

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11 FAQ

छत्तीसगढ़ में कलचुरी वंश 

Chhattisgarh Me Kalchuri Rajvansh
Chhattisgarh Me Kalchuri Rajvansh | छत्तीसगढ़ में कलचुरी राजवंश का इतिहास
  • भारत के इतिहास में भी कलचुरी राजवंश का महत्वपूर्ण स्थान है।
  • सन् 550 ई. से लेकर 1741 तक लगभग 1200 वर्षों की अवधि में कलचुरी नरेश भारत के किसी-न-किसी प्रदेश पर राज्य करते रहे।
  • 1000 में छत्तीसगढ़ में कलचुरी वंश की स्थापना हुई।
  • 1000 मे कोकल्लदेव द्वितीय के 18 पुत्रों में से एक छोटे पुत्र कलिंगराज ने कोसल पर विजय प्राप्त कर तुम्मान को अपनी राजधानी बनाया।
  • छत्तीसगढ़ कलचुरी का शासन तुम्मान से प्रारंभ होता है।
  • छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक समय तक शासन किया।
  • डॉ. मिराशी के अनुसार कलचुरी नरेश अपने को सहस्त्रर्जुन कहे जाने में गौरव का अनुभव करते थे। प्राचीन समय में कलचुरीयों को ‘कटच्चुरि’, प्रतिद्वंदी चालुक्यों द्वारा ‘कलत्सूरि’ तथा शिलालेख में ‘कलचुरी’ या ‘कालाचरि’ कहा गया है।
  • इस वंश की स्थापना को ही मध्यकालीन छत्तीसगढ़ का इतिहास का माना जाता है।
  • कलचुरी और हैहयवंशी एक ही थे। विद्वानों ने इन्हें चंद्रवंशी क्षत्रिय माना है।
  • ताम्रपत्र लेख का आरंभ ‘ऊ नमः शिवाय’ से होता था।
  • कालंजर, प्रयाग त्रिपुरी, काशी, तुम्माण, रतनपुर खल्लारी, रायपुर में कलचुरी  नरेशों ने अपनी राजधानी स्थापित की।
  • रतनपुर में शासन करने वाले कलचुरी का मूल स्थान माहिष्मती था।
  • राजा माहिष्मान ने नर्मदा नदी के किनारे माहिष्मति नगर बसाया था। उस समय माहिष्मती हैहयवंशियों की राजधानी थी, जो बाद में त्रिपुरी कहलाया ।
  • कलचुरीवंश का मूल पुरुष कृष्णराज था, जिसने इस वंश की स्थापना की और 500 से 575 ई. तक राज्य किया।
  • कोकल्ल प्रथम के 18 पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र शंकरगढ़ द्वित्तीय (मुग्धतुंग) था, जो 900-950 में त्रिपुरी की गद्दी पर बैठा।
  • बिलहरी ताम्रपत्र के अनुसार, मुग्धतुंग ने लगभग 900ई में कोसल के सोमवंशी राजाओं को पराजित कर उससे पाली क्षेत्र (कोरबा) को जीतकर अधिकार कर लिया था।
  • मुग्धतुंग ने इस क्षेत्र में स्वयं शासन नहीं किया, बल्कि अपने छोटे भाई को अधिपति बनाकर इस क्षेत्र का शासक नियुक्त किया। उसके भाई ने तुम्माण को राजधानी बनाकर शासन किया।
  • 950 के लगभग स्वर्णपुर (सोनपुर, उड़ीसा) के सोमवंशी राजा ने कलचुरियों की इस शाखा को तुम्माण से मार भगाया।
  • छत्तीसगढ़ कलचुरी का शासन तुम्माण से प्रारंभ होता है।

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छत्तीसगढ़ में शाशनकाल1000 ई. से -1741 ई. तक
क्षेत्रकोरबा -बिलासपुर
राजधानीतुम्माण (कलिंगराज के समय )
 रतनपुर (रत्नदेव प्रथम के समय )
 छुरी कोसगई (बाहरेन्द्र साय के समय )
वास्तविक संस्थापककलिंगराज
अंतिम शासकरघुनाथ सिंह
सर्वाधिक प्रतापी राजाजाजल्लदेव प्रथम
मराठा अधीन अंतिम शासकमोहन सिंह
पतनमराठा द्वारा
राजकीय धर्मशैव धर्म
कुलदेवीगजलक्ष्मी
राजकीय भाषासंस्कृत

छत्तीसगढ़ में शासन के समय कलचुरी वंश की दो शाखाओं में विभक्त था रतनपुर एवं रायपुर जिन्हे इस प्रकार समझा जा सकता है।

रतनपुर शाखा के कलचुरी शासक

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  1. कलिंगराज (1000 से 1020 ई.)
  2. कमलराज (1020 से 1045 ई.)
  3. रत्नदेव प्रथम (1045 से 1065 ई.)
  4. पृथ्वीदेव प्रथम (1065 से 1095 ई.)
  5. जाजल्यदेव प्रथम (1095 से 1120 ई.)
  6. रत्नदेव द्वितीय (1120 से 1135 ई.)
  7. पृथ्वीदेव द्वितीय (1135 से 1165 ई.)
  8. जाजल्यदेव द्वितीय (1165 से 1168 ई.)
  9. जगतदेव (1168 से 1178 ई.)
  10. रत्नदेव तृतीय (1178 से 1198 ई.)
  11. प्रतापमल्ल (1198 से 1222 ई.)
  12. बाहरेन्द्रसाय (1480 से 1525 ई.)
  13. कल्याणसाय (1544 से 1581 ई.)
  14. लक्ष्मणसाय (1000 से 1020 ई.)
  15. तख्तसिंह
  16. राजसिंह (1689 से 1712 ई.)
  17. सरदार सिंह (1712 से 1732 ई.)
  18. रघुनाथ सिंह (1732 से 1745 ई.)
  19. मोहन सिंह (1745 से 1757 ई.)

रायपुर शाखा के कलचुरी शासक

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  1. लक्ष्मीदेव – 1300 ई. से 1340 तक (प्रथम शासक (राजधानी- खल्लवाटिका)
  2. सिंघनदेव -1340 ई. से 1380 तक (18 गढ़ो के विजेता)
  3. रामचंद्र देव – 1380 ई. से 1400 तक (रायपुर नगर के संस्थापक)
  4. हरिब्रम्ह देव – 1400 ई. से 1420 तक (रायपुर को राजधानी बनाया )
  5. केशव देव – 1420 ई. से 1438 तक (रायपुर शाखा के संस्थापक)
  6. भुनेश्वर देव – 1438 ई. से 1463 तक (रायपुर किले का निर्माण करवाया )
  7. मानसिंह देव – 1463 ई. से 1478 तक
  8. संतोष सिंह देव – 1478 ई. से 1498 तक
  9. सूरत सिंह देव – 1498 ई. से 1518 तक
  10. सैनसिंह देव – 1518 ई. से 1528 तक
  11. चामुण्डासिंह देव – 1528 ई. से 1563 तक
  12. वंशीसिंह देव – 1563 ई. से 1582 तक
  13. धनसिंह देव – 1582 ई. से 1604 तक
  14. जैतसिंह देव – 1604 ई. से 1615 तक
  15. फत्तेसिंह देव – 1615 ई. से 1636 तक
  16. यादसिंह देव -1636 ई. से 1650 तक
  17. सोमदत्त देव -1650 ई. से 1663 तक
  18. बलदेवसिंग देव -1663 ई. से 1685 तक
  19. उमेंद सिंह देव -1685 ई. से 1705 तक
  20. बनवीरसिंह देव -1705 ई. से 1741 तक
  21. अमर सिंह देव -1741 ई. से 1753 तक (अंतिम कलचुरी शासक)
  22. शिवराज सिंह – 1753 ई. से 1757 तक (मराठा अधीन शासन )

कलचुरि सत्ता के पतन के कारण

  1. 18वीं शताब्दी के समय कलचुरि वंश के शासकों की शासन करने की कमजोर नीति तथा मोहन सिंह के षड्यन्त्र छत्तीसगढ़ में कलचुरियों के पतन के प्रमुख कारण बनें।
  2. भोंसला सेनापति भास्कर पन्त का 1741 ई. में रतनपुर में आक्रमण करना तथा तत्कालीन शासक रघुनाथ सिंह का आत्मसमर्पण कलचुरि सत्ता के पतन का प्रमुख कारण है।
  3. 1750 ई. में मराठों ने अमरसिंह को हराकर रायपुर, राजिम व पाटन की जमींदारी ले ली। अमरसिंह की मृत्यु के पश्चात् उसके बेटे शिवराज सिंह से जागीर छीन ली गई।
  4. 1757 ई. में जब मराठों का प्रत्यक्ष शासन आरम्भ हुआ, तब शिवराज सिंह को महासमुन्द के पास बड़गाँव एवं 4 अन्य गाँव दे दिए गए तथा रायपुर के प्रत्येक गाँव से 1-1 रुपये की वसूली का अधिकार भी दिया गया।
  5. इस प्रकार अमर सिंह के बेटे शिवराज सिंह से 1822 ई. में मराठों ने अधिकार छीन, छत्तीसगढ़ से कलचुरि वंश को समाप्त कर दिया।

कलचुरी शासक द्वारा प्रमुख स्थापत्य

कलचुरी शासक स्थान शताब्दीस्तापत्य
रत्नदेव प्रथमरतनपुर11वीं सदीमहामाया मंदिर
 लाफागढ़11वीं सदीमहिसासुरमर्दनी मंदिर
रत्नदेव तृतीयरतनपुर12 वीं सदीएकवीरा मंदिर
पृथ्वी प्रथमतुम्माण11वीं सदीपृथ्वीदेवेश्वर मंदिर
 रतनपुर11वीं सदीरतनपुर का विशाल तालाब
पृथ्वीदेव द्वितीयरतनपुर12 वीं सदीगजकीला
 रतनपुर12 वीं सदीखडग तालाब
जाजल्यदेवजांजगीर12 वीं सदीविष्णु मंदिर
जाजल्यदेव द्वितीयशिवरीनारायण12 वीं सदीचंद्रचूड़ मंदिर
बाहरेन्द्र सायचैतुरगढ़15 वीं सदीचैतुरगढ़ का किला
 कोसगई15 वीं सदीकोसगई मंदिर
तख़्त सिंहतख्तपुर17 वीं सदीशिव मंदिर
राजसिंहरतनपुर17 वीं सदीबादलमहल
ब्रम्हदेव सायखल्लारी15 वीं सदीविष्णु मंदिर (देवपाल )
जैतसिंह देवरायपुर15 वीं सदीदूधाधारी मठ (बलभद्र दास )

कलचुरीकालीन प्रमुख साहित्य एवं साहित्यकार

  • बाबूराम रेवाराम – तवारीख-ए-हैहयवंशीय, रामायण, दीपिकासार, रतनपुर का इतिहास, विक्रम विलास, गीता माधव, रामाश्वमेघ, नर्मदाकंटन, दोहावली, रतनपरीक्षा, लोकवाक्य
  • शिवदत्त शास्त्री – रतनपुर आख्यान, इतिहास समुच्चय
  • गोपाल मिश्र – खूब तमाशा, सुदामा चरित, जैमिनी, रामायण प्रताप (अपूर्ण), चिन्तामणि, अश्वमेघ
  • माखन मिश्रा – रामायण प्रताप (पूर्ण)
  • जाजल्यवदेव के राजगुरु रुद्रशिव ने बौद्ध ग्रन्थों का अध्ययन किया।
  • गोपाल मिश्र की ‘भक्ति चिन्तामणि’ श्रीमद् भागवत पुराण के दशम् स्कन्ध पर आधारित है।
  • ताम्रपत्र लिखने वालों की नियुक्ति वंशानुक्रम होती थी।
  • खल्लारी अभिलेख के लेखक दामोदर मिश्र थे।
  • नारायण कवि ने संस्कृत में रामाभ्युदय की रचना की।

कलचुरी कालीन धार्मिक व्यवस्था

  • कलचुरी वंश के शासक शैव धर्मावलम्बी थे तथा इनकी कुलदेवी “गजलक्ष्मी” थी।
  • इन्होंने अपने शासनकाल में शैव, वैष्णव, जैन एवं बौद्ध धर्मों को संरक्षण ही प्रदान नहीं किया था, अपितु उन्हें पुष्पित-पल्लवित भी किया था।
  • अधिकांश शासकों ने अपनी मुद्रा पर ‘ॐ नमः शिवाय’ उत्कीर्ण कराया। इस तथ्य को रतनपुर के महामाया मन्दिर के द्वार पर उत्कीर्ण ‘ॐ नमः शिवाय’ प्रमाणित करता है।
  • कल्चुरि काल में तामपत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ से प्रारम्भ होता था। रतनपुर (दुर्ग) में रावण यज्ञ का चित्रण तथा जांजगीर के विष्णु मन्दिर में 24 अवतारों का चित्रण किया गया है। तुम्माण की द्वारपट्टिका पर विष्णु के अवतारों का चित्रांकन किया गया है।
  • शिवरीनारायण व गतौरा से लक्ष्मीनारायण के रूप में विष्णु की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।

कल्चुरिकालीन गढ़ व्यवस्था (छत्तीसगढ़ के 36 गढ़ के नाम )

Chhattisgarh Me Kalchuri Rajvansh
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छत्तीसगढ़ में गढ़ व्यवस्था कल्चुरियों की दो शाखाओं में विभाजित थी, जिसमें छत्तीसगढ़ की शिवनाथ नदी के उत्तरी भाग पर रतनपुर के राजा के अधिकार क्षेत्र में आने वाले 18 गढ़ तथा शिवनाथ नदी के दक्षिणी भाग पर रायगढ़ के राजा के अधिकार क्षेत्र में आने वाले 18 गढ़ आते थे। दोनों भागों को मिलाकर गढ़ों की संख्या 36 होती थी। इसलिए यह अंचल छत्तीसगढ़ कहलाया। इन गढ़ों के नाम निम्नलिखित हैं.

शिवनाथ नदी के उत्तर में स्थित गढ़

बिलासपुर (4)
1. रतनपुर
2. विजयपुर
3. ओखर/ओखरगढ़
4. केन्दागढ़
कोरबा (4)
5. कोसगई (छुरा)
6 . लाफागढ़
7 . मातिन
8 . उपरोड़ा
जांजगीर-चाम्पा (4)
9 . मदनपुर (चाम्पा)
10 . खरौद
11 . कोटगढ़
12 . सोण्ठी
बलौदाबाजार (1)
13 . सेमरिया
बेमेतरा (2)
14 . मारो
15 . नवागढ़
अनुपपुर, मध्य प्रदेश (2)
16 . करकट्टी
17 . कण्डरी
गौरेला-पेण्ड्रा – मरवाही (1)
18. पण्डरभांटा

शिवनाथ नदी के दक्षिण में स्थित गढ़

बलौदाबाजार (2)
1. सिमगा
2. लवन
बेमेतरा (2)
3 . सारथागढ़ / सारदागढ़
4 . सिरसा
दुर्ग (2)
5 . पाटन
6 . दुर्ग
बालोद (1)
7 . अकलवाड़ा/एकलवार
रायपुर (2)
8 . रामपुर
9 . अमोरा / अमीरा
गरियाबन्द (2)
10 . फिंगेश्वर/फिगेसर
11 . राजिम
महासमुन्द (4)
12 . खल्लारी
13 . सिरपुर
14 . सुअरमाल
15 . मोंहदी
धमतरी (1)
16 . टेगनागढ़
राजनान्दगाँव (1)
17 . सिंगारपुर
अज्ञात जिले (1)
18 . सिंगारगढ़/ सिंघनगढ़

इसे भी जरूर पढ़े – छत्तीसगढ़ का इतिहास – प्रागैतिहासिक काल

कलचुरी कालीन अन्य तथ्य

  • इस वंश के काल में महाप्रभु वल्लभाचार्य हुए, जिनके नाम पर दूधाधारी मठ (रामानन्दी परम्परा का) का निर्माण ब्रह्मदेव ने रायपुर में कराया।
  • रत्नसिंह (कायस्थ) नामक व्यक्ति ने मल्हार के शिव मन्दिर का निर्माण कराया था।
  • इस वंश के काल में चतुर्भजाधारी विष्णु मन्दिर का निर्माण हुआ।

FAQ

छत्तीसगढ़ का मध्यकालीन इतिहास किस वंश से प्रारम्भ हुआ?

1000ई. में कलचुरी वंश से प्रारम्भ हुआ

कलचुरियों ने आरम्भ में सत्ता का केन्द्र किस नगर को बनाया था?

महिष्मती

बिलहरी लेख में किसकी विजय का उल्लेख किया गया है?

कोकल्ल प्रथम

त्रिपुरी के कलचुरी वंश का संस्थापक कौन था?

वामराज देव

छत्तीसगढ़ में कलचुरी राजवंश का वास्तविक संस्थापक कौन था?

कलिंगराज

कलचुरी वंश की राजकीय भाषा थी?

संस्कृत

निम्न में किससे कलचुरी नरेश ने कोसल के सोमवंशी शासक से पाली जीता था?

शंकरगण द्वितीय मुग्धतुंग

छत्तीसगढ़ में कलचुरियों का प्रादुर्भाव किस शताब्दी में प्रारम्भ हुआ माना जाता है?

9वीं शताब्दी

कलिंगराज का कार्यकाल कब तक था?

1020 ई.

छत्तीसगढ़ राज्य में कलचुरी वंश की प्रथम राजधानी क्या थी?

तुम्माण

चैतुरगढ़ के महामाया मन्दिर का निर्माण किस शासक ने करवाया था?

कलिंगराज

रत्नदेव प्रथम ने कब-से-कब तक छत्तीसगढ़ में शासन किया?

1045-1065 ई.

कल्चुरि वंशीय शासक रत्नदेव ने रतनपुर शहर किस वर्ष बसाया था?

1050 ई.

किस कलचुरी शासक ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाया था?

रत्नराज

रतनपुर को कलचुरी शासनकाल में क्या कहा जाता था?

कुबेरपुर

तुम्माण से शासन करने वाला अन्तिम कलचुरी शासक कौन था ?

रत्नराज प्रथम

1065 ई. में कलचुरी शासक रत्नदेव के पश्चात् कौन राजा बना?

पृथ्वीदेव प्रथम

रतनपुर के कलचुरी शासक जाजल्यदेव प्रथम का शासनकाल था?

1095-1120 ई.

 

आज के इस पोस्ट Chhattisgarh Me Kalchuri Rajvansh में अपने जाना कलचुरी राजवंश के महत्वपूर्ण जानकारी को आगे आने वाले पोस्ट में छत्तीसगढ़ के इतिहास से जुड़े सभी जानकारी आपको प्राप्त होगी, जानकारी अच्छी लगी है तो कमेंट्स जरूर करें और त्रुटि हो तो भी कमेंट्स जरूर करें ताकि सुधार हो सके।

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