Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh | छत्तीसगढ़ में जनजातीय विद्रोह 1774 ई. से लेकर 1918 ई.

Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh – छत्तीसगढ़ राज्य में बस्तर के आदिवासियों ने 1774 ई. से लेकर 1918 ई. के मध्य तक अनेक आदिवासी विद्रोह हुए। इन सभी विद्रोहों का विशेष कारण आदिवासियों की सांस्कृतिक एवं उनकी परम्परोओं में काकतिय वंश के शासक, मराठा शासक एवं अंग्रेजो का हस्तक्षेप करना था।

Table of Contents hide
14 FAQ

राज्य में हुये सभी जनजातीय/आदिवासी विद्रोह काकतीय वंश के शासनकाल में हुए थे। इन विद्रोहों में गैर आदिवासियों ने भी भाग लिया था। अधिकांश आदिवासी विद्रोह बस्तर क्षेत्र में हुए । आदिवासियों ने अपने शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई जिसे अंग्रेजों और मराठों ने विद्रोह का नाम दिया था।

जनजातीय विद्रोह के प्रमुख कारण

  • आदिवासियों ने ब्रिटिश राज द्वारा किए गए नियम /कानूनों व नई शासन व्यवस्था के विरोध में विद्रोह किए।
  • निवास क्षेत्र, भूमि व वन में प्राप्त परंपरागत अधिकारों के छीने जाने के विरोध में जनजातीय विद्रोह किया।
  • आदिवासी समाज में अपनी जीवन शैली, संस्कृति एवं जीवन निर्वाह में बाहरी जगत के शासन व नियम के प्रवेश के कारण भी विद्रोह किए।

Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh

वर्ष विद्रोह शासक नेतृत्वकर्ता स्थान
1774 हल्बा विद्रोह अजमेर सिंह अजमेर सिंह बस्तर
1795 भोपालपट्नम संघर्ष दरिया देव राजपूतआदिवासियों द्वारा बस्तर
1824 परलकोट विद्रोह महिपाल देव गेंदसिंह नारायणपुर
1842 मेरिया विद्रोह भूपालदेव हिड़मा मांझी बस्तर
1842 तारापुर विद्रोह भूपालदेव दलगंजन सिंह दंतेवाड़ा
1856 लिंगागिरी विद्रोह भैरमदेव धुरवा राम माड़िया बीजापुर
1859 कोई विद्रोह भैरमदेव नागुल दोरला बीजापुर
1876 मुरिया विद्रोह भैरमदेव झाड़ा सिरहा बस्तर ,बीजापुर
1878 रानी चोरिस का विद्रोह भैरमदेव जुगराज कुँवर (बस्तर की रानी )बस्तर
1910 भूमकाल विद्रोह रूद्रप्रताप देव गुण्डाधुर बस्तर
1918 किसान उराँव विद्रोह राजा रामानुज सिंह बुध्दो भगतगोपाल ग्राम , सरगुजा
जनजातीय /आदिवासी विद्रोह की जानकारी वर्ष के क्रमानुसार

हल्बा विद्रोह

halba vidroh - Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh
Halba Vidroh – Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh
  • यह छत्तीसगढ़ का प्रथम आदिवासी विद्रोह माना जाता है।
  • राजा दलपतदेव 1774 ई. की मृत्यु के पश्चात् पटरानी के पुत्र अजमेर सिंह एवं बड़ी रानी के पुत्र बड़े भाई दरियादेव के मध्य उत्तराधिकार के लिए संघर्ष हुआ जिसमे अजमेर सिंह विजय हुआ तथा 1774 में राज सिहासन पर बैठा।
  • अंग्रेजों , मराठा और रायपुर राज्य को न संभाल पाने के कारण दरियावदेव ने 1778 ई. में कोटपाड़ की संधि कर भोंसलों की अधीनता स्वीकार कर ली और उनका करद राज्य बन गया।
  • अजमेर सिंह की मृत्यु और हल्बा क्रांति के पतन को बस्तर में चालुक्य राज का पतन माना गया है। इससे मराठों को प्रवेश का अवसर मिल गया।
  • विद्रोह का कारण – अजमेर सिंह एवं दरियाव देव के मध्य उत्तराधिकार का संघर्ष
  • विद्रोह का परिणाम – 1777 ई. में अजमेर सिंह की मृत्यु के पश्चात् हल्बा विद्रोहियों का अत्यंत क्रूरता से नरसंहार किया गया, इतना बड़ा नरसंहार पुरे विश्व में कहीं नहीं हुआ, जिसमें पूरी जाती का सफाया कर दिया गया था।

भोपालपट्नम संघर्ष

Bhopalptnam Sangharsh
Bhopalptnam Sangharsh – Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh
  • भोपालपट्नम संघर्ष कोई युद्ध अथवा विद्रोह नहीं था , बल्कि यह दक्षिण बस्तर के गोंड़ों द्वारा अप्रैल 1795 ई. में कैप्टन जे टी ब्लंट के बस्तर में इंद्रावती पारकर भोपालपट्नम जाने के प्रयास में उन्हें रोकने हेतु हमला था।
  • आदिवासियों ने वार्तालाप के बाद भी कॅप्टन जे टी ब्लंट को इंद्रावती नहीं पार कर बस्तर में प्रवेश नहीं करने दिया , जिस कारण ब्लंट को वापस जाना पड़ा।
  • संघर्ष का कारण – दक्षिण बस्तर में ब्रिटिश कैप्टन जे टी ब्लंट का प्रवेश के विद्रोह में
  • संघर्ष का परिणाम – कैप्टन जे टी ब्लंट की वापसी

इसे भी जरूर पढ़े – छत्तीसगढ़ में कलचुरी राजवंश का इतिहास

परलकोट विद्रोह

paralkot vidroh -cgbigul
Paralkot Vidroh – Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh
  • बस्तर राज्य के उत्तर-पश्चिम में स्थित परलकोट सबसे पुरानी जमींदारी थी।
  • परलकोट तीन नदियों कोटरी, निबरा और गुडरा के संगम पर स्थित है।
  • परलकोट के जमींदार अपने को सूर्यवंशी राजपूत मानते थे और उनकी उपाधि भूमिया राजा की थी।
  • अबुझमाड़िया अपने लिए ऐसा संसार चाहते थे , जहाँ पर ब्रिटिशों एवं जमीदारों द्वारा किसी प्रकार का शोषण न किया जा सके।
  • विद्रोह के दमन का मुख्य कारण ब्रिटिशों के आधुनिक शस्त्र थे।
  • विद्रोह का परिणाम – 20 जनवरी 1825 को गेंदसिंह को फांसी दी गई।
  • गेंदसिंह को बस्तर का प्रथम शहीद भी कहा जाता है।

मेरिया विद्रोह

meriya vidroh -cgbigul
Meriya Vidroh – Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh
  • दंतेश्वरी मंदिर (दंतेवाड़ा ) में दी जाने वाली नरबलि प्रथा को मेरिया कहते थे।
  • दंतेवाड़ा की आदिम जातियों ने 1842 ई. में आंग्ल-मराठा शासन के खिलाफ आत्मरक्षा के निमित्त अपनी परम्परा और रीति-रिवाजों पर होने वाले आक्रमणों के विरूद्ध विद्रोह किया था।
  • दंतेवाड़ा बस्तर का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ नागों और काकतियों की अल्पकालीन राजधानी थी।
  • यहाँ दंतेश्वरी मंदिर में प्रचलित नरबलि का एक जघन्य संस्कार इस विद्रोह का प्रमुख कारण था।
  • इस संदर्भ में मैकफर्सन का कहना है- ताड़ीपेन्नु या माटीदेव की पूजा में प्रमुख संस्कार नरबलि है।
  • ब्रिटिश सरकार ने बस्तर में मेरिया या नरबलि को समाप्त करने के लिए बस्तर के राजा भूपालदेव को आदेश दिया था।
  • नागपुर के भोंसला राजा ने एक सुरक्षा टुकड़ी बाईस वर्षों (1842 से 1863 ई.) तक के लिये दंतेवाड़ा के मन्दिर में नियुक्त की ताकि नरबलि को रोका जाये।
  • माड़िया जनजाति ने इसे अपनी परम्पराओं पर बाहरी आक्रमण समझा और विद्रोह कर दिया।
  • अंग्रेजों ने दंतेवाड़ा मंदिर में प्रचलित नरबलि प्रथा को दबाने के लिए दलगंजन सिंह को हटाकर वामनराव को बस्तर का दीवान नियुक्त किया।
  • दीवान वामनराव के सुझाव पर रायपुर के तहसीलदार शेर खां को नरबलि पर नियंत्रण रखने के लिए नियुक्त किया गया।
  • आदिवासियों का पुनः विद्रोह की ज्वाला भड़क उठा उन्होंने हिडमा मांझी के नेतृत्व में आदिवासियों ने माँग की कि दंतेवाड़ा से सैनिक हटा लिए जाएं।
  • दीवान वामनराव के आदेश पर शेर खां और इसके साथियों ने आदिवासियों पर भयंकर जुल्म किए।
  • अंग्रेजों ने आदिवासियों के घरों को जला दिया और उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार किया।
  • अंग्रेज मेरिया विद्रोह को दबाने में सफल रहे, किन्तु इस विद्रोह के कारण हमेशा के लिए आदिवासियों और अंग्रेज के मध्य शत्रुता रही।
  • इस विद्रोह का अंत 1863 ई. में हुआ और इस विद्रोह के जांचकर्ता मैकफर्सन थे।

तारापुर विद्रोह

tarapur vidroh - cgbigul
Tarapur Vidroh – Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh
  • तारापुर विद्रोह का कारण – ब्रिटिश व मराठाओं द्वारा तारापुर परगने में कर वृद्धि करना।
  • उन दिनों भूपालदेव बस्तर के राजा थे। राजा भूपालदेव का भाई दलगंजन सिंह तारापुर परगने का प्रशासक था।
  • बस्तर के राजा ने नागपुर सरकार के आदेश पर तारापुर परगने के कर को बढ़ा दिया था।
  • तारापुर के लोग पूर्व से ही मराठों की रसद पूर्ति में सहायक बंजारों से नाराज थे, क्योंकि उन्होंने उनकी जीवन शैली को भंग कर दिया था।
  • नए कर से आदिवासी बड़े परेशान थे।
  • दलगंजन सिंह और आदिवासी नए लगान के कारण उत्तेजित हो उठे, उन्होंने दीवान जगबंधु को पद से हटाने और कर को वापस लेने के लिए विद्रोह किया।
  • तारापुर के आदिवासियों ने एक दिन दीवान जगबंधु को कैद कर लिया।
  • राजा भूपालदेव के कहने पर दलगंजन सिंह ने दीवान को मुक्त कर दिया।
  • दीवान की मुक्ति से आदिवासी नाराज हो उठे।
  • दीवान ने नागपुर की सेना के सहयोग से आदिवासियों को परास्त किया और दलगंजन सिंह को गिरफ्तार कर नागपुर जेल भेजा गया।
  • नागपुर जेल में दलगंजन सिंह को छः माह तक रखा गया।
  • विद्रोह का परिणाम – नागपुर के रेजीडेंट मेजर विलयम्स ने तारापुर के आदिवासियों के असन्तोष को दूर करने जगबंधु को दीवान के पद से हटा दिया और नए कर को वापस ले लिया।

लिंगागिरी विद्रोह

lingagiri vidroh - cgbigul
Lingagiri Vidroh – Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh
  • इस विद्रोह को बस्तर का महान मुक्ति संग्राम कहा जाता है।
  • धुरवाराव माड़िया को बस्तर के दूसरे शहीद के रूप में जाना जाता है।
  • इस विद्रोह का मुख्य कारण – बस्तर का अंग्रेजी साम्राज्य में विलय था
  • अंग्रेज अधिकारियों की शोषण व दमन नीति से तंग होकर भोपालपट्टनम् जमींदारी के अन्तर्गत आने वाले लिंगागिरि तालुके के तालुकेदार धुरवाराव ने अंग्रेजों के विरूद्ध सशस्त्र विद्रोह किया ।
  • इलियट ने लिखा है कि दोर्ला आदिवासियों ने गांवों को लूटा और माल से लदी बैलगाड़ियों पर कब्जा किया।
  • 3 मार्च 1856 ई. को चिन्तलवार में अंग्रेजों और धुर्वाराम के सैनिकों के मध्य प्रातः आठ बजे से अपराह्न साढ़े तीन बजे तक युद्ध हुआ।
  • युद्ध में अंग्रेजों की ओर से लड़ते हुए भोपालपट्टनम् का जमींदार घायल हो गया।
  • अन्त में धुरवाराव अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिया गया।
  • अंग्रेजों ने 5 मार्च 1856 ई. को धुर्वाराव को फांसी दे दी और उसका तालुका भोपालपट्टनम् के जमींदार को दे दिया।

कोई विद्रोह

koi vidroh - cgbigul
Koi Vidroh – Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh
  • छत्तीसगढ़ में वनों और पहाड़ो में रहने वाली आदिवासी प्रजा को कोई कहा जाता है।
  • यह विद्रोह छत्तीसगढ़ का चिपको आन्दोलन के नाम से भी जाना जाता है।
  • बस्तर में अंग्रेजों की शोषण व गलत वन नीति से आदिवासी काफी असन्तुष्ट थे।
  • इस विद्रोह का उद्देश्य साल वृक्षों की कटाई को रोकना
  • इस विद्रोह में भोपालपट्नम के जमींदार रामभाई तथा भेज्जी के जमींदार जग्गा राजू ने नागुल दोरला का सहयोग किया अंग्रेजों द्वारा साल वृक्षों के काटे जाने के खिलाफ 1859 ई. में विद्रोह कर दिया।
  • जमीदारों और आदिवासी जनता ने मिलकर ये निर्णय लिया कि अब बस्तर के एक भी साल वृक्ष को काटने नहीं दिया जाएगा।
  • ब्रिटिश सरकार ने वृक्षों की कटाई करने वाले मजदूरों की रक्षा करने के लिए बन्दूकधारी सिपाही भेजे, दक्षिण बस्तर के आदिवासियों को जब यह खबर लगी, तो उन्होंने जलती हुई मशालों को लेकर अंग्रेजों के लकड़ी के टालों को जला दिया और आरा चलाने वालों का सिर काट डाला।
  • इस विद्रोह का नारा था ‘एक साल वृक्ष के पीछे एक व्यक्ति का सिर’
  • इस जन आन्दोलन से हैदराबाद का निजाम और अंग्रेज घबरा उठे, कैप्टन सी. ग्लासफर्ड जो कि सिंरोचा का डिप्टी कमिश्नर था, ने विद्रोहियों की भयानकता को देखते हार मान ली और बस्तर में उसने लकड़ी ठेकेदारों की प्रथा को समाप्त कर दिया।

मुरिया विद्रोह

muriya vidroh- cgbigul
Muriya Vidroh – Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh
  • इस विद्रोह को बस्तर का स्वाधीनता संग्राम कहा जाता है।
  • इस विद्रोह का कारण – अंग्रेजो की निरंकुश नीतियाँ एवं गोपीनाथ कपड़दार का दीवान बनना
  • अंग्रेजों ने आदिवासियों की वाणिज्यिक फसलों पर अधिकार कर अपना शोषण चक्र प्रारम्भ किया।
  • 1864 ई. में अंग्रेजों ने पुनः भूमि विषयक नियम लागू किए।
  • इन सब कारणों से आदिवासी जनता ब्रिटिश शासन से नाराज थी।
  • 1867 ई. में गोपीनाथ कपड़दार बस्तर का दीवान बना उसके द्वारा जारी की गई ठेकेदारी व्यवस्था से मुरिया आदिवासी उनसे असन्तुष्ट हो गए।
  • जनवरी 1876 ई. में विद्रोह प्रारम्भ हुआ। जगदलपुर से 6 मील की दूरी पर मारेंगा नामक स्थान पर मुरिया आदिवासियों ने राजा भैरमदेव को प्रिन्स ऑफ वेल्स को सलामी देने के लिए बम्बई जाने से रोका।
  • यह कार्य उन्होंने इसलिए किया, क्योंकि उन्हें डर था कि राजा की अनुपस्थिति में दीवान कपड़दार उन पर जुल्म करेगा, इस स्थिति से निपटने के लिए दीवान ने अपने सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया। गोली से कुछ आदिवासी मारे गए।
  • झाड़ा सिरहा को आदिवासियों ने अपना नेता बनाया और उसके नेतृत्व में संघर्ष जारी रखा।
  • युद्ध में परास्त होने के बाद भी विद्रोहियों के नेता झाड़ा सिरहा ने राजा, दीवान और अंग्रेजों से निपटने के लिए विद्रोहियों को पुनः एकत्रित किया।
  • विद्रोह का प्रतिक चिन्ह – आम वृक्ष की टहनी के रूप में भेजकर क्रान्तिकारियों को विप्लव में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित किया गया।
  • अन्त में तीन से पाँच हजार विद्रोही मुरिया इकट्ठा हो 2 मार्च 1876 ई. को जिसे ‘काला दिवस’ भी कहा जाता है।
  • विद्रोहियों ने जगदलपुर महल को चारों तरफ से घेरने, संवाद माध्यमों को रोकने और जाने वाली रसद सामग्री और जल पर नियन्त्रण रखा।
  • महल में मुंशी, राजा और दीवान घबड़ा गए तथा आत्मसमर्पण करने की तैयारी करने लगे।
  • दीवान गोपीनाथ कपड़दार ने एक महरा महिला के माध्यम से सिरोंचा स्थित ब्रिटिश अधिकारियों को एक पत्र भेजा कि पिछले चार महीनों से राजधानी जगदलपुर विद्रोहियों से घिरी है। शीघ्र ही सेना भेज दी जाए।
  • यह पत्र मोम में लपेटकर महरा महिला की पेज की हांडी में छिपा कर भेजा गया था।
  • मई 1876 ई. में सिरोंचा कि डिप्टी कमिश्नर मैक जॉर्ज ने रायपुर, जैपुर और विशाखापटनम की सेना के सहयोग से विद्रोहियों का दमन किया।
  • ब्रिटिश सरकार ने राजा से लेकर छोटे कर्मचारी तक को इस विद्रोह के लिए जिम्मेदार ठहराया, सारे कायस्थ कर्मचारी बस्तर के बाहर कर दिए गए।
  • मैक जॉर्ज ने मुरिया आदिवासियों के असन्तोष को दूर करके 8 मार्च 1876 ई. को जगदलपुर में पहली बार मुरिया दरबार का आयोजन किया।
  • इस विद्रोह के दमन के बाद अंग्रेजों ने बस्तर में अनेक प्रशासनिक सुधार किए।

रानी चोरिस का विद्रोह

rani choris ka vidroh - cgbigul
Rani Choris ka Vidroh – Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh
  • यह छत्तीसगढ़ की प्रथम विद्रोहिणी है।
  • पटरानी जुगराज कुंअर ने 1878 ई. में अपने पति राजा भैरमदेव के विरूद्ध सशक्त विरोध प्रारंभ किया।
  • इस विद्रोह से बस्तर के आदिवासी दो खेमों में बंट गए।
  • यह विद्रोह 8 वर्षों तक चला, यह विद्रोह आदिवासियों से संबद्ध नहीं था।
  • यह एक सफल विद्रोह या और विद्रोहिणी महिला अंत में विजयिनी होकर उभरी।

इस पोस्ट को भी अवश्य पढ़े – छत्तीसगढ़ का इतिहास – प्रागैतिहासिक काल

भूमकाल विद्रोह

bhumkal vidroh - cgbigul
Bhumkal Vidroh – Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh
  • 1910 ई. का आदिवासी संग्राम बस्तर को अंग्रेजों की दासता से मुक्त महासंग्राम था।
  • इस आन्दोलन के द्वारा आदिवासी बस्तर में मुरिया राज स्थापित करना चाहते थे।
  • 1910 ई. के विद्रोह के अनेक कारण थे।
    • अंग्रेजों द्वारा राजा प्रतापदेव के हाथों सत्ता न सौंपना।
    • राजवंश से दीवान न बनाना ।
    • स्थानीय प्रशासन की बुराइयाँ ।
    • राजा लाल कलेन्द्र सिंह और राजमाता सुवर्णकुंवर देवी की उपेक्षा ।
    • वनोपज का सही मूल्य न देना।
    • लगान में बढ़ोत्तरी करना एवं ठेकेदारी प्रथा को जारी रखना।
    • घरेलू मदिरा पर पाबंदी
    • आदिवासियों को कम मजदूरी देना।
    • नई शिक्षा नीति ।
    • बस्तर में बाहरी लोगों का आगमन एवं आदिवासियों का शोषण करना।
    • बेगारी प्रथा ।
    • पुलिस कर्मचारियों के अत्याचार |
  • अक्टूबर 1909 के दशहरे के दिन राजमाता स्वर्ण कुंवर ने लाल कालेन्द्र सिंह की उपस्थिति में लाड़ोकी में आदिवासियों को अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र क्रान्ति के लिए प्रेरित किया।
  • लाड़ोकी की सभा में लाल कालेन्द्र सिंह ने आदिवासियों में से नेतानार ग्राम के क्रान्तिकारी वीर गुंडाधूर को 1910 ई. की क्रान्ति का नेता बनाया ।
  • प्रत्येक परगने से एक-एक बहादुर व्यक्ति को विद्रोह का संचालन करने के लिए नेता मनोनीत किया।
  • लाल कालेन्द्र सिंह के मार्गदर्शन में अंग्रेजों के विरूद्ध क्रान्ति करने के लिए एक गुप्त योजना बनाई गई।
  • जनवरी 1910 ई. में ताड़ोकी में पुनः गुप्त सम्मेलन हुआ, जिसमें लाल कलेन्द्र सिंह के समक्ष क्रान्तिकारियों ने कसम खाई कि वे बस्तर की अस्मिता के लिए जीवन व धन कुर्बान कर देंगे।
  • 1 फरवरी 1910 को समूचे वस्तर के क्रान्तिकारियों ने क्रान्ति की शुरूआत की।
  • इस विद्रोह का प्रतिक चिन्ह – लाल मिर्च, मिट्टी के ढेले, धनुष-बाण, भाले तथा आम की डालियां थी।
  • 1फरवरी 1910 ई. को समूचे बस्तर में विप्लव की शुरूआत हुई।
  • विद्रोहियों ने 2 फरवरी 1910 ई. को पूसपाल बाजार में लूट मचायी थी।
  • 4 फरवरी को कुकानार के बाजार में बुंटू और सोमनाथ नामक दो विद्रोहियों ने एक व्यापारी की हत्या की 5 फरवरी को करंजी बाजार को लूटा गया।
  • 7 फरवरी 1910 को विद्रोहियों ने गीदम में गुप्त सभा आयोजित कर मुरिया राज की घोषणा की थी।
  • इसके बाद विद्रोहियों ने बारसूर कोन्टा, कुटरू, कुआकोण्डा, गदेड़, भोपालपट्टनम्, जगरगुण्डा, उसूर, छोटे डोंगर, कुलुल और बहीगांव पर आक्रमण किए। 16 फरवरी 1910 ई. को अंग्रेजों और विद्रोहियों के मध्य इन्द्रावती नदी के खड़गघाट पर भीषण संघर्ष हुआ।
  • इस संघर्ष में विद्रोही परास्त हुए थे। खड़गघाट युद्ध में हुंगा मांझी ने अपनी वीरता का परिचय दिया था।
  • वीर गुंडाधूर के नेतृत्व में 25 फरवरी 1910 ई. को डाफनगर में विद्रोहियों ने अंग्रेजों के साथ संघर्ष किया।
  • सुप्रीम कमाण्डर ‘गेयर’ ने पंजाबी सेना के बल पर विद्रोहियों का दमन किया था।
  • अंग्रेजों ने 6 मार्च 1910 ई. से विद्रोहियों का बुरी तरह से दमन करना शुरू किया। लाल कालेन्द्र सिंह और राजमाता स्वर्ण कुंवर देवी को अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया।
  • 1910 ई. का विद्रोह बस्तर में 1 फरवरी से 29 मार्च 1910 ई. तक चलता रहा।
  • 1910 ई. का भूमकाल बस्तर के आदिवासियों के स्वाधीनता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने बस्तर में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दिया।
  • ब्रिटिश शासन ने विद्रोह की समाप्ति के बाद बस्तर में दीवान बैजनाथ पंडा के स्थान पर जेम्स को दीवान बनाया।
  • अंग्रेजों ने इस विद्रोह की समाप्ति के बाद आदिवासी संस्थाओं को सम्मान देते हुए आदिवासियों से जुड़ने का प्रयास किया।
  • बस्तर में 1910 का विप्लव सफल होता अगर राजा रूद्रप्रताप देव और कांकेर के राजा कोमल देव क्रांतिकारियों का साथ देते तो अंग्रेजों को बस्तर छोड़ना पड़ता ।

किसान उराँव विद्रोह

kisan urav vidroh - cgbigul
Kisan Urav Vidroh – Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh
  • इस विद्रोह का प्रमुख केंद्र – वर्त्तमान झारखण्ड राज्य के सीमावर्ती जिले पलामू की सीमा पर गोपाल ग्राम
  • यह विद्रोह उरावं आदिवासियों का विद्रोह था।
  • सरगुजा छत्तीसगढ़ प्रभाग की एक प्रमुख रियासत थी।
  • 1918 ई. में रामानुज शरण सिंह देव इस रियासत की गद्दी पर आसीन हुए।
  • इसी वर्ष एक महत्त्वपूर्ण घटना घटित हुई, जिसे किसान उराँव आंदोलन (बगावत ) कहा जाता है अप्रैल 1919 ई. में किसान उरांव आंदोलन में एकाएक सारहरी और पाट पुलिस स्टेशन के 14 गांव लूट लिए और 51 व्यक्तियों की निर्मम हत्या कर दी, ये सभी मृत व्यक्ति शासकीय कर्मचारी थे।
  • किसान उरांव आंदोलन की सूचना जब रायपुर स्थित पॉलिटिकल एजेन्ट को मिली तो उसने तत्काल आंदोलन दमन के लिए कई पुलिस कर्मचारी व सैन्य अधिकारी गोरखा सेना के साथ वहां भेजे।
  • महाराजा रामानुज शरण सिंह देव ने अपने राज्य के इलाकेदार भैया बहादुर इन्द्रप्रताप सिंह, लाल जगदीश बहादुर सिंह देव सशस्त्र सैनिकों के साथ आंदोलन दमन के लिए पहुंचे।
  • किसान उरांव विद्रोह का गढ़ गोपालग्राम जो पलामू जिले की सीमा पर स्थित था, पर आक्रमण किया गया।
  • आंदोलनकारियों ने मार्ग में इलाकेदार व उसकी सेना को घेर लिया। धनुष व बाण, भाले आदि से आक्रमण किया गया। इस आक्रमण में अनेक व्यक्ति हताहत हुए।
  • शाही और ब्रिटिश सेना ने विद्रोहियों पर गोलियां चलाई, जिससे आंदोलनकारियों को काफी क्षति हुई।
  • आंदोलनकारियों के केन्द्र गोपाल ग्राम पर आक्रमण किया गया, अनेक घरों में आग लगा दी गई, जो भी आंदोलनकारी सामने आया उसे जान से मार डाला गया।
  • महाराजा रामानुजशरण सिंह देव की सहायता के लिए नेल्सन के नेतृत्व में सशस्त्र पुलिस भी समय पर आ पहुंची ।
  • आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। अनेक आंदोलनकारियों मृत्युदण्ड दिया गया।
  • आंदोलन के दमन के पश्चात् यह ज्ञात हुआ कि इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में जर्मन मिशनरियों का हाथ था।
  • उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध के समय वन जातियों को उकसाकर आंदोलन की चिंगारी फैलाई थी।

FAQ

तारापुर विद्रोह के समय बस्तर के राजा कौन थे?

भूपालदेव

बस्तर के राजा द्वारा नागपुर सरकार के आदेश पर कर बढ़ाने के कारण कौन-सा विद्रोह हुआ?

तारापुर विद्रोह

तारापुर विद्रोह के परिणामस्वरूप 1854 ई. में किसने कर वृद्धि के आदेश को वापस ले लिया?

मेजर विलियम्स

हिड़मा माँझी ने किस विद्रोह का नेतृत्व किया था?

मेरिया विद्रोह

दन्तेश्वरी मन्दिर में प्रचलित नरबलि का संस्कार किस विद्रोह का प्रमुख कारण था?

मेरिया

ब्रिटिश अधिकारी कर्नल कैम्पबेल द्वारा किस विद्रोह का दमन किया गया था?

मेरिया/मेड़िया विद्रोह

धुरवाराव का सम्बन्ध निम्नलिखित में से किससे था?

लिंगागिरि विद्रोह

निम्न में से किस विद्रोह को ‘बस्तर के महान मुक्ति संग्राम’ की संज्ञा दी जाती है?

लिंगागिरि विद्रोह

निम्न में से किसे बस्तर (छत्तीसगढ़) के दूसरे शहीद के रूप में जाना जाता है?

धुरवाराव माड़िया

छत्तीसगढ़ में आदिवासी विद्रोह मुख्यतः किस क्षेत्र में हुए थे?

बस्तर

हल्बा विद्रोह का प्रमुख कारण क्या था?

उत्तराधिकार का संघर्ष

हल्बा विद्रोह किस वर्ष शुरू हुआ?

1774 ई.

निम्न में से कौन-सा विद्रोह चालुक्य वंश के पतन के लिए उत्तरदायी था?

हल्बा विद्रोह

दरियावदेव ने 1778 ई. में ‘कोटपाड़ की सन्धि’ कर किसकी अधीनता स्वीकार कर ली?

भोंसले

बस्तर के परलकोट के किस जमींदार ने 1824 ई. में ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध विद्रोह किया था?

गेंदसिंह

1824 ई. में विदेशी शासन के आक्रमण के विरुद्ध अबूझमाड़िया द्वारा इनमें से कौन-सा विद्रोह हुआ था?

परलकोट विद्रोह

कोई विद्रोह किस वर्ष हुआ था ?

1859 ई.

छत्तीसगढ़ से सम्बंधित और रोचक जानकारी के लिए Cgbigul के इंस्टाग्राम को भी चेक करें. और साथ ही रोज के प्रश्नोत्तरी एवं करंट अफेयर्स की जानकारी किए लिए हमारे टेलीग्राम चैनल को भी ज्वाइन करें।

आज के पोस्ट Chhattisgarh Me Adivasi Vidroh में छत्तीसगढ़ में जनजातीय/ आदिवासी विद्रोह के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की, पॉइंट वाइस महत्वपूर्ण जानकारी को प्रस्तुत किया गया है ताकि आपको जल्दी याद हो जाये, अगर आपको इस पोस्ट में कुछ जानकारी जोड़ना हो या कुछ त्रुटि दिख रही हो तो नीचे कमेंट करके जरूर करें।

CGbigul के पेज को फॉलो करेने के लिए पेज में दिख रहे रेड बेल आइकॉन को press करें और allow करें।

CGPSC, CGvyapam, MPPSC एवं अन्य सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी सामान्य ज्ञान की जानकारी प्रदान की जाती है।

Leave a Comment