आज का विषय है Chhattisgarh Ki Pramukh Riyasat छत्तीसगढ़ जमींदारी बाहुल्य क्षेत्र रहा है। प्राचीन काल से ही इस अंचल में छोटी-छोटी जमींदारियां स्थापित थीं। ये जमींदारियां कल्चुरि अथवा गोड़ राजाओं की अधिसत्ता को स्वीकार करती थीं। जमींदार इस काल मे अपने अधिपति को किसी भी प्रकार से टकौली, कर या भेंट अदा नहीं करते थे, परंतु आवश्यकतानुसार सैनिक, आर्थिक सहायता पहुंचाते थे।
Chhattisgarh Ki Pramukh Riyasat
(1) सरगुजा रियासत
- विष्णु प्रसाद सिंह सरगुजा रियासत का संस्थापक राजा था।
- यह रियासत 6,055 वर्गमील क्षेत्र पर फैली हुई थी। इसका प्राचीन नाम डान्डोरा माना जाता था।
- जिस राजवंश का सरगुजा रियासत में शासन था, उसे रक्सेल राजपूत राजवंश कहा जाता है।
- ब्रिटिश शासन काल में यह रियासत सरगुजा के नाम से जानी जाती रही है।
- इस रियासत का क्रमबद्ध इतिहास शिवराज सिंह (1758-1888) के समय से प्राप्त होता है।
- राजा शिवराज सिंह के शासनकाल के प्रारंभ में मराठों सरगुजा पर आक्रमण कर अपने प्रभाव की स्थापना की थी।
- राजा शिवराज सिंह ने मराठों की अधीनता स्वीकार कर वार्षिक टकौली देने का वचन दिया था।
(2) उदयपुर रियासत
- इस राज्य के इतिहास का सरगुजा राज्य के इतिहास से घनिष्ठ संबंध रहा है।
- जिस समय रक्सेल राजपूतवंश ने सरगुजा पर प्रभुत्व स्थापित किया उसी समय उदयपुर सरगुजा रियासत की अधीनस्थ जमींदारी बन गया।
- सन् 1818 में अप्पासाहब भोंसले से सरगुजा के साथ ही यह भाग अंग्रेजों को सौंप दिया था।
- उदयपुर रियासत का क्रमबद्ध इतिहास 1818 ई. से प्राप्त होता है।
- जिस समय उदयपुर अंग्रेजोंप्रभाव में आया उस समय कल्याणसिंह जागीर प्रमुख था।
- सन् 1852 में लार्ड डलहौजी ने कल्याणसिंह और उसके दो भाईयों पर नर-वध का आरोप लगाकर जागीर को अधिग्रहित कर लिया।
(3) जशपुर रियासत
- पहले यह राज्य डोम राजाओं द्वारा शासित था। डोम राजा रायभान को सोनपुर के सूर्यवंशीय कुमार सुजान राय ने परास्त कर स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
- सुजानराय ने जब गद्दी प्राप्त की और कब तक शासन किया, इस संबंध में कोई ऐतिहासिक दस्तावेज व प्रमाण प्राप्त नहीं होता है।
- जशपुर रियासत का क्रमबद्ध इतिहास रणजीतसिंह देव (1800-1813) के काल से प्राप्त होता है।
- रणजीत सिंह के शासनकाल में सरगुजा रियासत के लाल संग्राम सिंह ने विद्रोह किया था।
- उस समय उसने इस रियासत के तीन चौथाई भाग पर अधिकार कर लिया था।
- इस संबंध में गवर्नर जनरल के निर्देश के बावजूद रेजीडेन्ट रणजीत सिंह को बचाने में असमर्थ रहा।
- सन् 1813 ई. में लातसंग्राम सिंह ने उसकी हत्या कर दी। रणजीतसिंह की हत्या के बाद उसका पुत्र रामसिंह शासक बना।
- सन् 1899 ई. में वाइसराय लार्ड कर्जन से सनद प्रदान कर उसे सामंतीय शासक का दर्जा दिया तथा जशपुर राज्य को करद राज्य घोषित किया।
- सन् 1911 ई. में वाइसराय हार्डिंग ने सनद जारी कर ‘राजा बहादुर’ की उपाधि से विष्णुप्रसाद सिंह देव को अलंकृत किया।
- सन् 1923 ई. में विष्णु प्रताप सिंह देव पर कुशासन का आरोप लगाकर प्रशासन अपने दायित्व में ले लिया।
- राजा विष्णुप्रसाद सिंह देव की मृत्यु के बाद 3 जनवरी 1924 को उसका पुत्र देवशरण सिंह देव उत्तराधिकारी बना।
- उसे 7 मई 1924 को 32 वर्ष की आयु में शासन का पूर्ण अधिकार सौंपा गया।
- देवशरण सिंह देव केवल 7 वर्ष शासन कर पाए और 26 जनवरी 1931 को उनकी मृत्यु हो गई।
- उनकी मृत्योपरान्त उनका अल्पवयस्क पुत्र विजयभूषण सिंह देव गद्दी पर आसीन हुआ तथा उसके वयस्क होते तक रियासत का प्रशासनिक प्रबंध ब्रिटिश दीवान के हाथ में रहा।
- इस रियासत के भारतीय संघ में विलय होने से पहले, 300 वर्षों से अधिक समय तक जशपुर पर इसी राजवंश का शासन रहा।
- विलय के समय राजा विजय भूषण सिंह देव इसके शासक थें ।
(4) कोरिया रियासत
- यहां पर पहले कोल राजाओं का अधिकार था।
- सन् 1818 ई. में अप्पासाहब ने सरगुजा, उदयपुर, जशपुर के साथ ही यह परगना भी हस्तान्तरित कर दिया था।
- जिस समय अप्पासाहब ने कोरिया परगना अंग्रेजों को प्रदान किया था उस समय गरीब सिंह (1818-1845) यहां का स्वामी था।
- गरीब सिंह की मृत्यु के बाद अमोल सिंह (1848-1876) प्राण सिंह (1876-1897) गद्दी पर आसीन हुये ।
- सन् 1897 मे प्राणसिंह की नि:संतान स्थिति में मृत्यु हो गई। उसके मृत्योपरांत निकट संबंधी शिवमंगल सिंहराज्य का उत्तराधिकारी बनाया गया।
- सन् 1909 ई. में शिवमंगल सिंह की मृत्यु हो गई तत्पश्चात् उसका ज्येष्ठ पुत्र रामानुजप्रतापसिंह देव राज्य का उत्तराधिकारी हुआ।
- राजा रामनुजप्रताप सिंह देव नाबालिग होने की वजह से सन् 1909 से 1924 ई. तक रियासत का प्रशासन अंग्रेज सरकार द्वारा नियुक्त दीवान द्वारा संचालित
- होता रहा।
- राजा रामानुजप्रताप सिंह देव 1931 ई. के गोलमेज सम्मेलन में छोटे राज्यों के प्रतिनिधि बनकर लंदन गये थें। जब पूर्वी रियासतों के संघ का निर्माण हुआ तब वे इस संघ के अध्यक्ष बनाए गए थे।
(5) चांगभखार रियासत
- यह रियासत सन् 1905 ई. तक छोटा नागपुर का अंग थी, इसकी राजधानी भरतपुर थी।
- चांगभखार राज्य के राजवंश का पारिवारिक संबंध कोरिया राजपरिवार से था।
- पहले यह कोरिया राज्य के अंतर्गत एक जमींदारी थी। जिस समय अंग्रेजों ने कोरिया राज्य से भरतपुर रियासत की स्थापना की उस समय जगजीत सिंह जमींदारी का स्वामी था।
- सन् 1848 ई. में उसे ‘भैया’ की उपाधि से अलंकृत किया गया तब से यह उपाधि इस जमींदारी के स्वामियों की राजोपाधि बन गई।
- जगजीत सिंह के पश्चात् बलभद्र सिंह (1857-1896), महावीर सिंह (1896-1932) चांगभखार रियासत के सामन्तीय शासक बने।
- सन् 1899 ई. में वायसराय लार्ड कर्जन ने भैया महावीर सिंह को सामन्तीय प्रमुख घोषित कर तत्संबंधी एक सनद प्रदान की।
- सन् 1932 में भैया महावीर सिंह की मृत्यु हो गई। उसने मरने से पूर्व कृष्णप्रताप सिंह को गोद लिया था।
- सन् 1947 में चांगभखार राज्य का मध्यप्रांत में विलय हो गया।
(6) बस्तर रियासत
- बस्तर छत्तीसगढ़ क्षेत्र की एक प्रमुख रियासत थी। यह सबसे बड़ी रियासत थी, जिसका कुल क्षेत्रफल 13,002 वर्ग कि.मी. था।
- प्राचीन काल में यहां पर नल वंशीय राजाओं का प्रभुत्व था।
- लगभग 400-500 वर्षों तक नल राजाओं ने शासन किया था। नल वंशीय शासन समाप्त होने के बाद नागवंशी राजाओं ने अपने प्रभुत्व की स्थापना की। नागवंशीय राजाओं के पश्चात् काकतीय वंश ने यहां पर अधिकार जमाया।
- ब्रिटिश शासनकाल में बस्तर रियासत में इसी घराने का शासन था।
- इस काकतीय वंश का आदि पुरुष प्रताप रूद्र देव था।
- सन् 1323 में अलाउद्दीन के सेनापति मलिक काफूर ने प्रतापरूद्रदेव को परास्त कर वारंगल राज्य से खदेड़ दिया।
- प्रताप रूद्र देव एक छोटी सी सेना लेकर बस्तर आया और नागवंशीय राजा को परास्त कर बस्तर पर अधिकार कर लिया।
- प्रतापरूद्र देव के पश्चात् अन्नमदेव बस्तर सिंहासन पर बैठा। वह साहसी, महत्वकांक्षी व साम्राज्यवादी शासक था।
- उसने मधोता को राजधानी बनाकर बस्तर पर शासनकिया।
- राजा रूद्रप्रतापसिंह देव का कोई पुत्र नहीं था। उसकी केवल एक पुत्री प्रफुल्ल कुमारीदेवी थी जिसका विवाह उड़ीशा के राजा मयुरचंद्र भंजदेव से हुआ। प्रफुल्ल कुमारी देवी यह छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला शासिका थी। इनकी मृत्यु कुछ बिमारी के कारण ब्रिटेन में हो गई।
- ब्रिटिश सरकार ने उनके ज्येष्ठ पुत्र प्रवीरचन्द्र भंजदेव को राज्य का उत्तराधिकारी स्वीकार किया। परन्तु उत्तराधिकारी के नाबालिग होने के कारण 1929 से 1947 तक रियासत का प्रशासन ब्रिटिश दीवान ने चलाया।
- जुलाई 1947 में वयस्क होने पर प्रवीरचंद्र भंजदेव को शासन का पूर्ण अधिकार सौंप दिया गया, वे कुछ माह की शासन कर पाए। दिसम्बर 1947 में बस्तर
- रियासत का भारतीय संघ में संविलयन हो गया।
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(7) कांकेर रियासत
- इस रियासत का संस्थापक राजा कुन्हर देव को माना जाता है।
- कांकेर रियासत का कुल क्षेत्रफल 1429 वर्गमील था।
- इस रियासत का क्रमिक इतिहास रहिपाल नामक शासक से प्राप्त होता है। रहिपाल के कार्यकाल में कांकेर मराठों के अधीनस्थ हुआ।
- सन् 1854 ई. तक कांकेर रियासत पर मराठा प्रभाव स्थापित रहा। इस रियासत का प्रमुख शासक नरहरदेव था।
- ब्रिटिश भारत के वाइसराय जॉन लारेन्स ने 20 मई 1865 को एक सनद कांकेर के राजा नरहरदेव को प्रदान की जिसमें कांकेर राज्य के शासक को सामन्तीय शासक का ओहदा दिया गया था।
- सन् 1889 में नरहरदेव मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गए। ऐसी स्थिति में रियासत के प्रशासन के ब्रिटिश प्रशासन ने लिए अंग्रेज दीवान की नियुक्ति की गई थी।
- सन् 1910 के बस्तर विद्रोह के समय कोमलदेव ने विद्रोह के दमन में अंग्रेजों की जी जान से सहायता की थी।
- सन् 1911 कोमलदेव को 9 तोपों की सलामी लेने का अधिकार प्रदान किया।
- भानुप्रतापदेव 8 जनवरी 1925 में कांकेर रियासत का शासक बना।
- राजा भानुप्रतापदेव ‘चैम्बर आफ प्रिन्सेस’ के सदस्य थे।
- स्वतंत्रता के बाद भानुप्रताप देव ने कांकेर रियासत का भारत संघ में विलय करा दिया।
(8) रायगढ़ रियासत
- इस रियासत का संस्थापक राजा मदनसिंह को माना जाता है। इसने मांझी की सहायता से रायगढ़ रियासत की स्थापना की थी।
- मदनसिंह के पश्चात् क्रमशः तखतसिंह, बैटसिंह और ट्रिप ने राज्य किया था।
- रायगढ़ रियासत का शासक परिवार राजगोंड राजवंशीय था ।
- इस वंश के पाँचवें राजा जुझार सिंह एक बुद्धिमान और चतुर शासक थे। उसने भोंसले की अधीनता अस्वीकार कर कंपनी का संरक्षण प्राप्त किया था।
- सन् 1819 में जुझारसिंह ने कंपनी की अधीनता में कार्य करना स्वीकार किया।
- जुझार सिंह के देह त्याग के पश्चात् सन् 1832 में उसका पुत्र देवनाथ सिंह रायगढ़ राज्य का अधिपति बना।
- उसने अपने पिता जुझार सिंह की तरह अंग्रेजों के प्रति निष्ठा बनाए रखी।
- सन् 1833 के बरगढ़ विद्रोह व सन् 1857 के संग्राम के समय अंग्रेजों को पूर्णतः सहयोग प्रदान किया। इसके सहयोग से अंग्रेजों ने स्वतंत्रता संग्रामी अजीत सिंह, सुरेन्द्र साय और शिवराज सिंह की क्रांति का दमन किया।
- सन् 1862 में देवनाथ सिंह के मरणोपरान्त घनश्याम सिंह राज्य के शासक बने।
- सन् 1867 में ब्रिटिश सरकार ने एक सनद प्रदान कर सामंत शासक की मान्यता प्रदान की।
- सन् 1885 में कुप्रशासन के कारण राज्य का प्रबंध ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया।
- 31 जनवरी 1890 को घनश्यामसिंह दिवंगत हो गए। भूपदेवसिंह राज्य का उत्तराधिकारी बना।
- 18 जनवरी 1894 को ब्रिटिश सरकार ने भूपदेव सिंह को शासनाधिकार सौंप दिया। राजा भूपदेव सिंह एक योग्य शासक था। उसने अपने
- 22 वर्षीय शासनकाल में व्यापार, सार्वजनिक निर्माण के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ प्राप्त की।
- इसी शासन के समय दक्षिण पूर्वी रेलवे लाइन बिछाई गई।
- राजा भूपदेव सिंह ने प्रथम विश्वयुद्ध के समय सैन्य सामग्री व नगद रूप में ब्रिटिश सरकार को सहयोग किया था।
- इसी कार्य के कारण 12 दिसम्बर 1911 को ‘राजा बहादुर’ की उपाधि से विभूषित किया गया था।
- सन् 1917 से 1924 तक नटवर सिंह रायगढ़ राज्य का शासक रहा।
- 15 फरवरी 1924 को नटवर सिंह की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात् उसके भाई चक्रधर सिंह गद्दी पर आसीन हुए। वे संगीत प्रेमी, साहित्य अनुरागी और प्रजापालक शासक थे।
- 7 अक्टूबर 1947 को अल्पायु में राजा चक्रधर सिंह की मृत्यु हो गई।
- 21 जनवरी 1948 को उसके ज्येष्ठ पुत्र ललित सिंह का राज्याभिषेक होने वाला था,परन्तु इस तिथि से पूर्व ही इस रियासत का भारत संघ में विलय हो गया।
(9) सारंगढ़ रियासत
- इस रियासत का आदिपुरुष व संस्थापक नरेन्द्र साय था उसने लांजी नामक स्थान से आकर सारंगढ़ राज्य स्थापित किया था।
- उसके बाद क्रमशः घर हम्मीर, नार्बर सा, धनजी उदयभान, वीरभान, ऊद्या साय, कल्याण साय (1736-1777) गद्दी पर आसीन हुए।
- कल्याण साय ने मराठों की सहायता की थी। रघुजी भोंसले ने उसे ‘राजा’ की उपाधि से विभूषित किया था।
- कल्याण साय का उत्तराधिकारी विश्वनाथ साय (1778-1808) हुआ।
- विश्वनाथ साय के पश्चात् सुभद्र साय (1827-1828) गजराज सिंह (1828-1839) क्रमशः शासक बने ।
- सन् 1830 में संग्राम सिंह सारंगढ़ रियासत का योग्य व उल्लेखनीय शासक बना।
- राजा संग्राम सिंह ने 1857 की क्रांति के समय ब्रिटिश सरकार को सहयोग व समर्थन दिया था। उसने स्वतंत्रता संग्राम नरेता कमलसिंह को बंदी बनाकर ब्रिटिश सरकार के सुपुर्द किया था। उसके इस कृत्य को स्वतंत्रता संग्रामियों ने देशद्रोह माना था ।
- सन् 1872 में संग्राम सिंह की मृत्यु के बाद सन् 1890 में रघुवर सिंह का पुत्र जवाहर सिंह गद्दी पर बैठा परंतु उसके नाबालिक होने के कारण 1909
- तक राज्य का शासन ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त दीवान द्वारा किया जाता रहा।
- ब्रिटिश सरकार ने उसे 3 जून 1918 को ‘राजा बहादुर’ एवं 3 जून 1934 को सीआईई की उपाधि प्रदान की।
- 11 जनवरी 1946 को राजा जवाहर सिंह का स्वर्गवास हो गया। राजा जवाहर सिंह के निधन के बाद 21 अप्रैल 1946 को राजा नरेश सिंह सारगढ़ की गद्दी पर
- बैठे। वे अधिक समय तक शासन नहीं कर पाए।
- 20 माह बाद सारंगढ़ रियासत भारत संघ में शामिल हो गयी।
(10) सक्ती रियासत
- छत्तीसगढ़ के 14 रियासतों में से यह रियासत सबसे छोटी थी और मात्र 138 वर्गमील क्षेत्र में फैली हुई थी।
- सक्ती रियासत को हरि व गुजन नामक दो भाईयों ने अपनी वीरता और शौर्य से स्थापित किया था ।
- इस रियासत में कलन्दर सिंह, रणजीत सिंह, रूपनारायण सिंह को सनद देकर सामन्तीय शासक के रूप में मान्यता दी थी।
- सन् 1875 में कुप्रशासन के कारण ब्रिटिश सरकार ने रणजीत सिंह को राजकीय कार्यों व अधिकारों सेवंचित कर राज्य का सारा प्रबंध अपने हाथों में ले लिया। रणजीत सिंह को जीवनकाल में अधिकारों की प्राप्ति नहीं हो सकी।
- 26 जुलाई 1892 को उसके उत्तराधिकारी रूपनारायण सिंह को राज-काज का भार सौंपा गया परंतु यह निश्चित कर दिया गया कि वह ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त दीवान की सहायता से प्रशासन संचालित करेगा।
- जुलाई 1914 में रूपनारायणसिंह की मृत्यु हो गई।
- उसने मृत्यु से पूर्व अपने छोटे भाई चित्रभानु सिंह के पुत्र लीलाधर सिंह को गोद लिया था, यही दत्तक पुत्र उसका उत्तराधिकारी बना।
- सक्ती रियासत के सभी सामन्तीय शासकों में यह योग्य, प्रतिभाशाली और महत्वाकांक्षी शासक था।
- उसे ब्रिटिश सरकार ने 3 जून 1929 को ‘राजा बहादुर’ की मानद उपाधि प्रदान की थी।
- राजा लीलाधर सिंह ने 34 वर्षों तक शासन चलाया।
- 1947 में सकती रियासत मध्यप्रांत में शामिल हो गयी।
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(11) राजनांदगांव रियासत
- नांदगांव रियासत का निर्माण पाण्डादाह, मोहगाँव और डोंगरगढ़ परगना को मिलाकर हुआ था।
- यह रियासत छत्तीसगढ़ की एक विकसित रियासत थी।
- 18वीं शताब्दी में प्रहलाद दास नामक वैरागी पंजाब के सोहापुर से गर्म कपड़े बेचने रतनपुर आया था।
- इस वैरागी के शिष्य हरिदास को भोंसले रानियों ने अपना गुरु बनाया और उसे गुरु दक्षिणा स्वरूप 2-2 रुपये प्रतिगांव वसूलने का अधिकार दिया।
- महन्त हरिदास के पास काफी धन एकत्रित हो गया। उसने उस धन से साहूकारी का व्यवसाय प्रारंभ किया।
- सन् 1865 में ब्रिटिश प्रशासन ने महंत घासीदास को सनद प्रदान कर सामन्तीय शासक की मान्यता प्रदान की।
- महंत घासीदास ने ब्रिटिश सरकार के प्रति स्वामी भक्ति का पूर्णरूप से पालन किया।
- 1883 में महंत घासीदास की मृत्यु हो गई। उसका पुत्र बलराम दास राज्य का उत्तराधिकारी बना। वह अल्प वयस्क था ऐसी परिस्थिति में उसके बालिग होने तक राजकाज का संचालन ब्रिटिश दीवान द्वारा चलाया गया।
- सन् 1891 में राज्य का सम्पूर्ण अधिकार बलरामदास को प्राप्त हुआ। उसके कार्यकाल में नांदगांव में छत्तीसगढ़ की प्रथम धागा बुनाई मिल प्रारंभ हुई।
- सन् 1893 में ब्रिटिश सरकार ने व्यक्तिगत योग्यता के कारण उसे ‘राजा बहादुर’ की उपाधि से सम्मानित किया।
- राजा बहादुर बलरामदास के बाद महंत राजेन्द्र दास (1897-1912), महंत सर्वेश्वरदास (1912-1930) और दिग्विजय दास (1938-1947) गद्दी पर बिठाए गए।
(12) खैरागढ़ रियासत
- खैरागढ़ रियासत का आदिपुरुष संस्थापक लक्ष्मीनिधिराय था। उसने अपने शौर्य से मण्डला नरेश संग्राम सिंह को प्रभावित कर खोलवा क्षेत्र 15वीं शताब्दी में पुरस्कार स्वरूप प्राप्त किया।
- यही खोलवा राज्य कालान्तर में खैरागढ़ राज्य कहलाया ।
- खैरागढ़ रियासत का क्षेत्रफल 931 वर्गमील में विस्तारित था।
- इस राज्य की स्थापना एवं राजवंश का विवरण ‘नागवंश’ पुस्तक में दिया गया है।
- इस रियासत के शासक परिवार स्वयं को छोटा नागपुर के नागवंशीय राजपूत राजा सभा सिंह का वंशज मानते थें।
- इस वंश के शासक खड्गराय ने राजधनी खोलवा से हटाकर खैरागढ़ कर दी।
- सन् 1857 की क्रांति के समय लालफतेह सिंह ने अपनी सैनिक सेवा ब्रिटिश सरकार को प्रदान की थी। उसने अपनी सेना रायपुर स्थित डिप्टी कमिश्नर से सुपर्द की थी।
- 20 मई 1865 को वाइसराय जॉन लारेन्स ने लालफतेह सिंह को सनद देकर फिड्यूटरी चीफ स्वीकार किया था।
- लालफतेह सिंह एक कठोर शासक था। सन् 1873 में कुशासन का आरोप लगाकर अधिकार व शक्तियां ब्रिटिश सरकार ने वापस ले ली थी।
- सन् 1874 में लालफतेह सिंह की मृत्यु हो गई।
- इसके बाद के शासकों के कार्यकाल में शासन की बागडोर ब्रिटिश दीवान के हाथों में रही।
- सन् 1918 में वीरेन्द्र बहादुरसिंह गद्दी पर आरूढ़ हुए। गद्दी प्राप्त होने के समय वे अल्पवयस्क थे। अतएव 1918 से 1925 तक ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त दीवान ही प्रशासन चलाता रहा।
- राजा वीरेन्द्र बहादुर खैरागढ़ के अन्य शासकों की तुलना में प्रजापालक व प्रगतिशील शासक थें।
- उन्होंने दिसम्बर 1947 में रियासत भारत संघ को सौंप दी।
(13) छुईखदान रियासत
- छुईखदान रियासत का राजवंशी परिवार वैरागी था। इसे महंत रूपदास ने पोड़ी के जमींदार से उसे दिये गये ऋण के बदले में प्राप्त किया था।
- महन्त रूपदास के पश्चात् ब्रह्मदास, तुलसीदास, लक्ष्मणदास क्रमशः शासक बने।
- 1780 में भोंसले ने तुलसीास को सनद देकर कोंडका का जमींदार स्वीकार किया था।
- सन् 1845 में महंत लक्ष्मणदास उत्तराधिकारी हुए। उनके कार्यकाल में छुईखदान ब्रिटिश साम्राज्य का एक हिस्सा बन गया।
- 20 मई 1863 को जॉन लारेन्स ने सनद प्रदान कर छुईखदान को सामन्तीय राज्य घोषित किया था।
- सन् 1887 में महंत लक्ष्मणदास की मृत्यु के बाद उसका पुत्र श्यामकिशोर दास गद्दी पर आसीन हुआ।
- अप्रैल 1897 में श्यामकिशोर दास का पुत्र बल्लभकिशोर दास (1897-1898) और दिग्विजय किशोरदास (1898-1903) गद्दी पर बैठे।
- सन् 1903 में दिग्विजय किशोर के मृत्योपरान्त भूधरकिशोरदास को गद्दी प्रदान की गई। यह दिग्विजय किशोर दास का छोटा भाई था जिस समय इसे गद्दी पर बिठाया गया उस समय वह 15 वर्ष का था।
- फरवरी 1915 तक राज्य का प्रशासन ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में चलता रहा।
- सन् 1947 में छुईखदान रियासत मध्यप्रांत में शामिल कर लिया गया।
(14) कवर्धा रियासत
- प्राचीनकाल में कवर्धा और उसके आस-पास के क्षेत्रों पर फणीनागवंशीय राजाओं का प्रभुत्व था।
- ब्रिटिश शासनकाल में यहां पर गोंड शासक राज्य कर रहे थें।
- इस रियासत का संस्थापक राजा महाबलिसिंह को माना जाता है। उसने लगभग 50 वर्षों तक शासन संचालन किया।
- महाबलिसिंह के बाद उजियारसिंह, टोकसिंह, बहादुरसिंह, राजपालसिंह, जदूनाथसिंह और धर्मराजसिंह क्रमशः गद्दी पर आसीन हुए।
- कवर्धा और पण्डरिया जमीदारी के बीच पारिवारिक संबंध था। उत्तराधिकारी न होने की स्थिति में पण्डरिया जमींदारी के जमींदार के पुत्र को गोद लेने का रिवाज था।
- राज्य विलय के समय धर्मराज सिंह कवर्धा रियासत के शासक थें ।
- सन् 1948 में कवर्धा मध्यप्रांत में शामिल हो गया। रियासत के भारत संघ में विलय के बाद विश्वराज सिंह ने राजनीति में सक्रिय भाग लिया, उनका रामराज्य परिषद् से संबंध रहा ।
छत्तीसगढ़ की रियासतों के बारे में कुछ रोचक तथ्य:
- बस्तर रियासत भारत की सबसे बड़ी रियासतों में से एक थी।
- रायगढ़ रियासत अपनी समृद्ध संस्कृति और कला के लिए प्रसिद्ध थी।
- सरगुजा रियासत अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध थी।
- कांकेर रियासत अपनी आदिवासी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध थी।
- कोरिया रियासत अपने खनिज संसाधनों के लिए प्रसिद्ध थी।
- चांगभखार रियासत अपने कृषि उत्पादन के लिए प्रसिद्ध थी।
- उदयपुर रियासत अपने वन संसाधनों के लिए प्रसिद्ध थी।
- जशपुर रियासत अपने पर्यटन स्थलों के लिए प्रसिद्ध थी।
FAQ
छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी रियासत कौन सी थी ?
छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी रियासत बस्तर थी। यह 13,002 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई थी। बस्तर रियासत का इतिहास 13वीं शताब्दी से पहले का है। यह रियासत अपनी प्राकृतिक सुंदरता, हस्तशिल्प और आदिवासी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध थी।
छत्तीसगढ़ की सबसे छोटी रियासत कौन सी थी ?
छत्तीसगढ़ की सबसे छोटी रियासत जसपुर थी। यह 5,939 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई थी। जसपुर रियासत की स्थापना 18वीं शताब्दी में हुई थी। यह रियासत अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आदिवासी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध थी।
इन रियासतों का ब्रिटिश शासन से क्या संबंध था?
1818 में, मराठा पेशवाओं की हार के बाद, इन रियासतों को ब्रिटिश अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। ब्रिटिश सरकार ने इन रियासतों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन उन्हें रक्षा और विदेश नीति के मामलों में ब्रिटिश सरकार के अधीन रहना पड़ा।
इन रियासतों का भारत में विलय कब हुआ?
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, इन रियासतों का भारत में विलय हो गया।
इन रियासतों का आज का छत्तीसगढ़ राज्य से क्या संबंध है?
आज का छत्तीसगढ़ राज्य इन रियासतों के क्षेत्रों से बना है। इन रियासतों के इतिहास और संस्कृति ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति और पहचान को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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