छत्तीसगढ़ी कहावत अर्थ सहित | हाना | Chhattisgarh Ki Kahawat PDF

आज के पोस्ट में हम Chhattisgarh ki kahawat pdf के बारे में जानेंगे इससे सम्बंधित पहले भी एक पोस्ट आ चुकी है आपने पढ़ी होगी उसी शृंखला को जारी करते हुए छत्तीसगढ़ी कहावत (हाना ) का यह दूसरा भाग है. कहावते काफी मजेदार और रोचक होती है बड़े बुजुर्गो से अपने जरूर सुना होगा, यहाँ दिए गए कहावतों का हिंदी रूपांतरण, प्रयोग और अर्थ बताया गया है तो चलिए शुरू करते है आज का ज्ञान।

छत्तीसगढ़ी कहावत अर्थ सहित

chhattisgarhi hana

हाना : एक दौरी माँ हाँकत है।

  • वाक्यानुवाद : एक दौरी में हाँकता है।
  • व्याख्या : फसल की मिंजाई करने के लिए बैलों को रस्सी से एक साथ जोड़कर गोल घुमाते हुए मिंजाई करते हैं।इसमें प्रयुक्त बैलों में कमजोर और शक्तिशाली बैलों का महत्व बराबर होता है।
  • प्रयोग : जब कभी अच्छे-बुरे लोगों को बराबर महत्व दिया जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।

हाना : करिया आखर भैंस बरोबर ।

  • वाक्यानुवाद : काला अक्षर भैंस बराबर ।
  • व्याख्या : निरक्षर होना ।
  • प्रयोग : इस कहावत का प्रयोग अशिक्षित व्यक्तियों के लिए होता है, जो भैंस की परख कर उसे समझ सकते हैं, किंतु अक्षरों को समझ नहीं पाते।

हाना : कनखजूर के एक गोड़ टूट जाये, तभो खोरवा नइ होय ।

  • वाक्यानुवाद : एक पैर टूट जाने पर भी कनखजूरे लँगड़ा नहीं होता ।
  • व्याख्या : यदि बड़े आदमी का थोड़ा-बहुत नुकसान हो जाए, तो वह उसे नहीं अखरता ।
  • प्रयोग : इस कहावत का प्रयोग ऐसे बड़े लोगों के लिए होता है, जिनका थोड़ा-मोड़ा नुकसान कुछ अर्थ नहीं रखता।

हाना : करथस रिस त, सील लोढ़ा ल पिस ।

  • वाक्यानुवाद : क्रोध करते हो, तो सिल-लोढ़े को घिसो ।
  • व्याख्या : क्रोध करने वाले व्यक्ति के लिए क्रोध-शमन करने के लिए सिल-लोढ़े
    को घिसने के लिए कहा गया है।
  • प्रयोग : क्रोध करने से स्वयं की हानि होती है। सिल लोढ़े को घिसने
    से हाथ थकने पर क्रोध शांत हो जाएगा तथा बुद्धि ठिकाने आ जाएगी। ऐसे परिपेक्ष्य
    में यह कहावत कही जाती है।

हाना : एक हाँत माँ रोटी नइ पोवाय।

  • वाक्यानुवाद : एक हाथ से रोटी नहीं बनती।
  • व्याख्या : जिस प्रकार एक हाथ से रोटी नहीं बन सकती, उसी प्रकार दो पक्षों
    के बिना झगड़ा नहीं सकता ।
  • प्रयोग अनुकूलता : झगड़ा दोनों ओर से होता है, ऐसी ही परिपेक्ष्य में यह कहावत
    कही जाती है।

हाना : कुँआ के मेंचका, कुँवे के हाल ला जानही ।

  • वाक्यानुवाद : कुएँ का मेंढक कुएँ की ही बातों को जानेगा।
  • व्याख्या : कुएँ में रहने वाला मेंढक बाहर की बातों को नहीं जानता ।
  • प्रयोग : सीमित ज्ञान वाला व्यक्ति अपनी सीमा से अधिक कुछ नहीं
    जानता। ऐसे व्यक्तियों के लिए “कूप मंडूक” के अर्थ में यह कहावत कही जाती है।

हाना : चार दिन के राम-राम चेंदुए।

  • वाक्यानुवाद : चार दिनों के लिए दूसरों से आदर पाना।
  • व्याख्या : जब कोई व्यक्ति कुछ ही दिनों के लिए कोई पद पा जाता है, जिससे उसकी प्रतिष्ठा बढ़ जाती है, तब वह पद के लिए अभिमान में अमर्यादित कार्य करने लगता है।
  • प्रयोग : किसी व्यक्ति को कोई पद मिल जाए और वह उसका गलत उपयोग करने लगे, तो उसके लिए यह कहावत कही जाती है।

हाना : चार पैसा के परइ गिस, कुकुर के जात पहिचाने गिस ।

  • वाक्यानुवाद : चार पैसे का हंडी का ढक्कन गया, परंतु कुत्ते की जाति पहचानी गई।
  • व्याख्या : जिस व्यक्ति के स्वभाव का पता थोड़ी हानि से ही हो जाता है उसके लिए ये कहावत है ।
  • प्रयोग : कोई लालची व्यक्ति जब छोटे-मोटे लाभ के लिए अपना ईमान खो देता है और अन्यों को उसकी असलियत का पता चल जाता है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।

हाना : खाये बर करछूल नहिं, हेर मारे तलवार ।

  • वाक्यानुवाद : खाना बनाने के लिए करछी तक नहीं है और तलवार निकाल कर मारता है।
  • व्याख्या : वह व्यक्ति जो लोहे के नाम पर घर में करछी तक नहीं, परंतु बात करता है, तलवार निकाल कर मारने की।
  • प्रयोग : अपनी वास्तविक स्थिति को छिपाकर डींग मारने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।

हाना : खोरवा कनवा बड़ा उपाई।

  • वाक्यानुवाद : लँगड़े तथा काने बड़े उपद्रवी होते हैं।
  • व्याख्या : लँगड़े तथा काने व्यक्ति का मन विध्वंसात्मक कार्यों में अधिक लगता है । उनका अंग-भंग होने के कारण उनकी शक्ति संभवतः अन्यों को अपने जैसा बनाने के मनोविज्ञान के कारण तोड़-फोड़ वाले कामों में खर्च होती है।
  • प्रयोग : यह कहावत गलत कार्यों में मन लगाने वाले व्यक्ति को ताना देते हुए कही जाती है।

हाना : जत के ओढ़ना, तत के जाड़ ।

  • वाक्यानुवाद : जितना वस्त्र, उतनी ठंड ।
  • व्याख्या : अधिक वस्त्र पहनने वाला व्यक्ति ठंड खाने से अभ्यस्त न होने के कारणठंड महसूस करता है, परंतु जिनके पास वस्त्र नहीं होते, वे ठंड सहने के अभयस्त हो जाते हैं, वे ठंड से परेशान नहीं होते।
  • प्रयोग: गरीब लोगों के पास कपड़े न होने पर भी ठंड में अपना काम
    करते हैं और अमीर गरम कपड़ों से लदे होकर भी ठंड का अनुभव करते हैं।

हाना : जतके गुर, ततके मीठ ।

  • वाक्यानुवाद : जितना गुड़, उतना मीठा ।
  • व्याख्या : जितना गुड़ डाला जाएगा, वस्तु उतनी ही मीठी होगी। इसी प्रकार जो जितना मेहनत करेगा उसे उतना ही फल मिलेगा ।
  • प्रयोग : लोगों के परिश्रम के अनुसार उन्हें परिणाम मिलने पर इस
    कहावत का प्रयोग होता है।

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इस तरह आपने हाना का भाग २ को पढ़ा आपको यह संकलन कैसा लगा कमेंट करके जरूर बताइये, और ऐसे जानकारी के लिए cgbigul को जरूर फॉलो करें।

फिर मिलते है एक नई जानकारी के साथ अपनी तैयारी मजबूत रखें सफलता तो मिलनी तय है।

जय हिन्द !

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