आज का विषय है Chhattisgarh Ke Pramukh Chitrakar Evam Shilpkar छत्तीगढ़ के प्रमुख चित्रकार एवं शिल्पकार से सम्बंधित संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करेंगे , प्रतियोगी परीक्षाओं में एक सवाल इनमे से भी आता है।
Chhattisgarh Ke Pramukh Chitrakar Evam Shilpkar
गोविंदराम झारा
- इनका जन्म-1950, एकताल (रायगढ़) में हुआ।
- व्यवसाय पारम्परिक धातु शिल्प
- जीवन यात्रा-रायगढ़ क्षेत्र के धातु शिल्प के पारम्परिक निर्माता, प्रदर्शनी वगैरह के
- माध्यम से अपनी कला का प्रदर्शन व बिक्री।
- उपलब्धियां – भारत भवन की रूपंकर आर्ट गैलेरी में इनके धातु शिल्पों का संग्रह व प्रदर्शन।
- 1985 में मध्य प्रदेश राजकीय शिखर सम्मान ।
- इनके शिल्पों का संग्रह पुरखौतिन मुक्तांगन (रायपुर) में रखा गया है।
जयदेव बघेल
- बस्तर की प्राचीन और परम्परागत शिल्प कला को उन्नत करने का श्रेय इन्हीं को है।
- इनकी कलाकृतियाँ देश-विदेश के विभिन्न संग्रहालयों में संग्रहित हैं।
- इन्हें शिखर सम्मान तथा मास्टर क्राफ्ट्समैन नेशनल अवार्ड समेत कई अन्य सम्मान भी मिल चुके हैं।
रामलाल झारा
- एकताल ग्राम (रायगढ़) के निवासी है ।
- बेलमेटल के निपुर्ण कलाकार है जो बेलमेटल से मूर्तियां निर्मित करते हैं।
- रायगढ़ जिले में कला संस्कृति की समृद्ध परम्परा रही है।
- शिल्पकला के लिए पुसौर विकासखण्ड का ग्राम एकताल विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
- यहाँ शिल्पियों के लगभग 1520 परिवार परम्परागत रूप से बेल मेटल की मूर्तियों का निर्माण करते आ रहे हैं।
गेंदराम सागर
- श्री सागर का जन्म 6 मई, 1943 के सक्ती (जांजगीर जिला) के समीप ग्राम भदरीपाली टेमर में हुआ था।
- इन्हें कला विरासत में मिली हैं। अनेक पीढ़ियों से बेजान पत्थरों को तराशकर इसे जीवंत बनाने का कार्य इनके पूर्वज करते रहे हैं।
- ये उत्कृष्ट शिल्पकार होने के साथ उच्च कोटि के चित्रकार भी हैं तथा गम्भीर साहित्य सर्जक भी हैं।
- इनकी शिल्प कृतियों में धार्मिकता का पुट है एवं ये धर्म प्रधान रचनाएँ प्रधानता से करते हैं।
- मंदिर की मूर्तियों, दीवारों पर खुदाई एवं चित्रकारी द्वारा अलंकृत कथा कहते समूह, मूर्ति स्थापत्य, प्लास्टर ऑफ पेरिस एवं सीमेंट, छड़, गारे के उपयोग से विभिन्न रूपाकारों का सृजन इनकी विशेषता है।
- लेखन में श्री सागर छत्तीसगढ़ी और हिन्दी दोनों में रचनाएँ करते हैं।
- आपकी काव्य रचनाओं में ‘धरती मोर परान’, ‘तुलसी सालिग्राम महात्म्य’, ‘नर्मदा सोनभद्र मिलन’ एवं “प्रहरी तथा गद्य में तुलसी गंगाजल (कहानी संग्रह), मोर जनम भुईयाँ (छत्तीसगढ़ी निबंध संकलन) एवं पंचामृत (छत्तीसगढ़ी नाटक) प्रमुख हैं।
नर्मदा सोनसाय
- छत्तीसगढ़ के रायपुर क्षेत्र के कला प्रहरी नर्मदा सोनसाय जनजातीय जीवन के परंपरागत जीवन को अपनी कल्पनाशीलता में प्रवाहित कर चित्रों को जीवंत कर देते थे।
- प्रकृति के असीम रंगो को अपनी रेखाओं में बांधना नर्मदा सोनसाय के चित्रों की खासियत रही है।
देवेंद्र सिंह ठाकुर
- छत्तीसगढ़ के दुर्गम्य में वनांचल बीजापुर के पहाड़ी ग्राम में जन्मे देवेन्द्र सिंह ठाकुर राज्य के प्रतिष्ठित चित्रकार हैं।
- वे बस्तर की मनोरम प्रकृति को अपनी कला साधना में पिरोकर नित नए निर्माण के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।
- श्री ठाकुर दृश्य चित्र बनाने में अत्यंत ही प्रतिभाशाली रहे हैं।
बेलगूर मंडावी
- बेलगूर मंडावी का जन्म गड़बंगाल, नारायणपुर, बस्तर में हुआ।
- ये बस्तर की मुरिया जनजाति के श्रेष्ठ कलाकारों में एक हैं।
- श्री बेलगूर ने बस्तर की इस कला को अपनी कल्पनाशीलता से नया रंग तथा बोध दिया।
- भारत भवन, भोपाल के उद्घाटन के अवसर पर श्री बेलगूर ने अनेक कला मर्मज्ञों से सराहना प्राप्त की ।
- इन्हे शिखर सम्मान से भी अलंकृत किया गया है।
वृंदावन
- छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के नगरनार में जन्मे माटीपुत्र राज्य के प्रमुख मिट्टी शिल्पकार हैं।
- इन्होंने मृतिका शिल्प को नवीन आकार व नवीन सौंदर्य प्रदान किया है।
- शिल्पकार वृंदावन की शिल्पकला से देश-विदेश के कला प्रेमी अत्यंत प्रभावित रहे हैं।
श्रीनिवास विश्वकर्मा
- जन्मजात कला प्रतिभाशाली श्रीनिवास विश्वकर्मा छत्तीसगढ़ के बस्तर के माटी हैं।
- दृश्य चित्र उनका प्रिय विषय था।
- अंतर्राष्ट्रीय चित्रकार एच. एच. रजा के संपर्क में रहकर श्रीनिवास विश्वकर्मा ने अपने अध्ययनकाल में ही अपनी प्रतिभा से सबको सम्मोहित कर दिया था।
बंशीलाल विश्वकर्मा
- बस्तर की पवित्र माटी में जन्मे बंशीलाल विश्वकर्मा न केवल छत्तीसगढ़ के ख्यातिलब्ध चित्रकार हैं, बल्कि मूर्ति कला, काष्ठ कला, बेल मेटल एवं पाषाण
- प्रतिमाओं के भी अनोखे सर्जक हैं।
- 1953 व 1954 के वर्षों में राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद एवं प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बस्तर आगमन के समय शासन की ओर से उन्हें जो चांदी का कास्केट सम्मान स्वरूप भेंट किया गया था, उसकी परिकल्पना व निर्माण में बंशीलाल विश्वकर्मा व छन्नु सुनार की प्रमुख भूमिका थी।
- बस्तर की अनुकरणीय कला संस्था आकृति की स्थापना कर श्री विश्वकर्मा बस्तर में परंपरागत कला-सौंदर्य की परंपरा को निरंतर जीवित रखे हुए हैं।
- इस संस्था के माध्यम से नई पीढ़ी के शिल्पकार अपनी परंपरागत कला के सृजन में संलग्र है।
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देवनाथ
- मृत्तिका शिल्पकार देवनाथ छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के परंपरागत ग्राम एड़का के निवासी हैं।
- मृत्तिका शिल्प में देवनाथ जी का लोहा माना जाता है।
- अलंकृत हाथी बनाने में देवनाथ की विशेष प्रसिद्धि है।
आनन्द सिंह श्याम
- आनन्द सिंह श्याम तथा उनकी पत्नी श्रीमती कलावती गोंड चित्रकला के श्रेष्ठ पारम्परिक चित्रकार हैं।
- श्री आनन्द सिंह श्याम गोंडी अलंकरण परम्परा के रूपांकारों को अपने चित्रों का विषय बनाते हैं।
- सरल रेखाओं से विभिन्न पशु-पक्षी, जीव जन्तु, पेड़-पौधे, मनुष्य की आकृति उकेर कर उन्हें गहरे रंगों, आड़ी-खड़ी रेखाओं से घेर देना श्री आनन्द सिंह श्याम के चित्रों की प्रमुख विशेषता है।
जगनण सिंह श्याम
- गोंडी चित्रकारी के पहले कलाकार जनगण सिंह श्याम हैं.
- इन्होने अपनी पारम्परिक चित्रकला के आदिम रूपाकारों तथा रंगों का केनवास पर कल्पनाशील प्रयोग किया है।
- 12 जून, 1960 ई. को जन्मे श्री जनगण सिंह श्याम के चित्रों की देश-विदेश में एकल तथा सामूहिक प्रदर्शनियाँ हुई हैं।
- सन् 1985 में मध्य बनाए प्रदेश शासन, संस्कृति विभाग ने आपको शिखर सम्मान से विभूषित किया है।
क्षितरूराम
- छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग निवासी क्षितरूराम राज्य के मृत्तिका शिल्पकार हैं।
- इनके मृत्तिका शिल्पों में कालजयी भावनाओं का प्रस्फुटन हुआ है।
- इनकी कला शिल्प का प्रदर्शन देश-देशांतरों में सफलतापूर्वक हुआ है।
नर्मदा सोनसाय
- रायपुर के प्रसिद्ध चित्रकार श्री सोनसाय आदिवासी क्षेत्र में बनाए जाने वाले परम्परागत चित्रों के एक श्रेष्ठ कलाकार हैं।
- ये रंगों का सधा हुआ अत्यंत कल्पनाशील प्रयोग करते हैं।
- रंगों का आदिम विस्तार, गतिमान प्रवाह और रेखाओं में स्वाभाविक लय के साथ जटिलता का अंकन इनके रंगकारी की प्रमुख विशेषता है।
- जंगल तथा पशु-पक्षियों की आकृति में एक प्रकार के सरल मूर्त अंकन के साथ अत्यंत जटिल अमूर्त प्रयोग भी एक साथ उपस्थित करना इनकी विशेषता है।
- खेमदास वैष्णव का जन्म सन् 1958 में दंतेवाड़ा में हुआ है।
- बस्तर के पारंपरिक चित्रकला की अस्मिता को व्यापक रूप से राष्ट्र स्तर पर उजागर करने का कार्य खेमदास वैष्णव की तूलिका ने किया है।
- उनकी कलाकृतियों का प्रदर्शन विश्व के प्रतिष्ठित आर्ट गैलरियों में होते रहता है।
सुभाष श्रीवास्तव
- जगदलपुर में जन्मे सुभाष श्रीवास्तव कला की विभिन्न विधाओं के प्रतिभाशाली कलाकार हैं।
- प्रकृति को अपनी भावनाओं में समेटे श्रीवास्तव का कलात्मक जीवन प्रकृति के प्रत्येक रंग पर समर्पित है।
शंभू
- मृत्तिका शिल्पकार शंभू नारायणपुर जिले के कलारत्न हैं।
- मृत्तिका शिल्प को विशेष आयाम देने में शिल्पकार शंभू का महत्वपूर्ण स्थान है।
- शिल्पकार शंभू की पहचान राष्ट्र स्तर के अत्यंत ही प्रतिभाशाली मृत्तिका शिल्पकारों के रूप में होती है।
चंदन सिंह
- मृत्तिका शिल्प के प्रमुख चितेरे चंदन सिंह छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के माटी पुत्र हैं।
- इनका पैतृक ग्राम नगरनार मृत्तिका शिल्प का प्रमुख केंद्र भी माना जाता है।
- चंदन सिंह की पहचान राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख शिल्पकार के रूप में होती है।
मानिक घड़वा
- जनजातीय जीवन को परंपरागत शिल्प दिलाने का कार्य करने वाले शिल्पकार मानिक घड़वा छत्तीसगढ़ के अनमोल रत्न हैं ।
- मानिक घड़वा छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के ऐसे कला पुत्र हैं, जिनके शिल्प का जादुई आकर्षण कला प्रेमियों को अचंभित कर देता है।
- पीतल, कांसा व मोम से बने घड़वा कला की तकनीकें प्राचीनतम एवं परंपरागत है।
- घड़वा शिल्प बस्तर के आदिम भावनाओं का कलात्मक बिंब है, जिसे मानिक घड़वा ने अपनी प्रतिभा से असीम आयाम दिया है।
सुरेश विश्वकर्मा
- छत्तीसगढ़ के जगदलपुर निवासी सुरेश विश्वकर्मा एक प्रतिभाशाली चित्रशिल्पी हैं।
- श्री विश्वकर्मा की कला धर्मिता बहुमुखी है।
- वे चित्र शिल्प के अलावा काष्ठ कला एवं मूर्ति कला के भी सिद्धहस्त कलाकार हैं।
बनमाली राम नेताम
- छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के ग्राम बनसागर, अलमोड़ा के निवासी बनमाली राम नेताम राज्य के प्रमुख चित्रकारों में एक हैं।
- प्रकृति के समीप रहते हुए श्री नेताम की कला चेतना प्रकृति का असीम अनुरागी है।
अजय मंडावी
- छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के निवासी अजय मंडावी वर्तमान पीढ़ी के लोकप्रिय शिल्पकार माने जाते हैं।
- श्री मंडावी का कला सौंदर्य नवीन आयामों को स्पर्श करता है।
छत्तीसगढ़ के आधुनिक चित्रकार
कल्याण प्रसाद शर्मा
- छत्तीसगढ़ के बहुमुखी चित्रकार कल्याण प्रसाद शर्मा छत्तीसगढ़ में आधुनिक चित्रकला कला प्रवृत्तियों के संयोजक थे।
- राज्य में चित्रकला की यह नवीन प्रवृत्ति अपने संपूर्ण रंग के साथ जब अलंकृत हुई, उस समय कल्याण प्रसाद शर्मा ने इस धारा का प्रतिनिधित्व किया।
निरंजन महावर
- छत्तीसगढ़ में आधुनिक चित्रकला के प्रति समर्पण भाव से रंगों का व्यापक विस्तार निरंजन महावर की तुलिका ने किया।
- श्री महावर ने लोककला के प्रतीकों के संग्रह में विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त की है।
- श्री महावर का कला संसार लोक जीवन की गहराईयों को स्पर्श करता है।
- चित्रकला के अतिरिक्त निरंजन महावर मूर्तिकला एवं काव्य रचना के भी प्रतिभाशाली कलाकार हैं।
डॉ. प्रवीण शर्मा
- छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध चित्रकार डॉ. प्रवीण शर्मा को कला विरासत में मिली।
- इनके पिता कल्याण प्रसाद शर्मा राज्य के मूर्धन्य कला स्तंभ थे।
- वर्तमान में डॉ. शर्मा महाकौशल कला वीथिका के संचालक भी हैं।
- डॉ. प्रवीण शर्मा ने राष्ट्रीय स्तर पर अनेक कला प्रदर्शनियों में अपने कलात्मक जगत का सौंदर्य बिखेरा है।
जीतेश अमरोहित
- छत्तीसगढ़ के नई पीढ़ी के चित्रकारों में जीतेश अमरोहित का नाम प्रमुख है।
- छत्तीसगढ़ के लोक जीवन को और छत्तीसगढ़ की प्रकृति की सुंदरता को अपनी तूलिका के सहारे कलात्मक सौंदर्य प्रदान करने वाले जीतेश अमरोहित का चित्र रचना संसार वृहद है।
- उनकी बनायी पेंटिंग को देश के नामी चित्रकारों ने सराहा है।
गणेशराम मिश्र
- ये छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध चित्रकार थे।
- उनके बनाए चित्र माधुरी तथा शारदा जैसी पत्रिकाओं में छपते रहे।
लक्ष्मी नारायण पचौरी
- 1955 में शांति निकेतन से चित्रकला की शिक्षा प्राप्त की।
- ये आचार्य नंदलाल बसु की शैली पर चित्रांकन करने वाले प्रमुख चित्रकार।
- इनका निवास स्थान धमतरी था।
आज हमने संक्षिप्त में महत्वपूर्ण छत्तीसगढ़ के प्रमुख चित्रकार एवं शिल्पकार के बारे में जानकारी प्राप्त की कल हम फिर एक नए विषय के साथ मिलेंगे। तैयारी में कोई कमी मत करना मेहनत करते रहो सफलता ज्यादा दूर नहीं है।
जय हिंद !