आज हम इस पोस्ट Chhattisgarh Ka Itihas के बारे में जानेंगे , जिस समय मानव सभ्यता था, एवं जिस काल में कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं उसे प्रागैतिहासिक काल कहा जाता है। इस काल में मानव कंद -मूल खोदने और पशुओं के शिकार के लिए पत्थरों को नुकीले औजार के रूप में प्रयोग करता था।
प्रागैतिहासिक काल को पाषाण युग भी कहा जाता है। पाषाण अर्थात पत्थर के प्रयोग के कारण यह युग पाषाण युग के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य में प्रागैतिहासिक काल के साक्ष्यों की सर्वाधिक जानकारी कबरा पहाड़ से प्राप्त हुई है। छत्तीसगढ़ से इस काल के विभिन्न औजार एवं स्मारक भी प्राप्त हुए हैं। इस कालखंड में मानव की आवश्यकताएं न्यूनतम थी। मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति प्रकृति से करता था।
विकास क्रम के आधार पर सम्पूर्ण प्रागैतिहासिक काल को चार भागों में विभाजित किया गया है।
प्रागैतिहासिक काल
- पूर्व पाषाण युग
- मध्य पाषाण युग
- उत्तर पाषाण युग
- नव पाषाण युग
चलिए इसे थोड़ा विस्तार से जाने-
पूर्व पाषाण युग
- इस कल के औजार महानदी घाटी तथा राजगढ़ जिले के सिंघनपुर गुफा , कबरा पहाड़, बोतल्दा , छापामड़ा, भवरखोल, गीधा, सोनबरसा में शैलचित्रों के साथ साथपाषाण युगीन पत्थर के लघु औजार भी प्राप्त हुए हैं।
- 1910 में ई. एंडरसन ने रायगढ़ के सिंघनपुर गुफा की खोज की थी।
- श्री मनोरंजन घोष को सिंघनपुर क्षेत्र से पूर्व पाषाणकालीन 5 कुल्हाड़ियाँ प्राप्त हुई है।
- सिंगनपुर गुफा सबसे प्राचीन गुफा है जो चवरढाल पहाड़ी पर स्थित है।
मध्य पाषाण युग
- चित्रकारी के साक्ष्य कबरा पहाड़ एवं रायगढ़ से छिपकली, घड़ियाल, कुल्हड़ी , साम्भर आदि प्राप्त हुए।
- मध्य युग के अर्ध्य चंद्राकार लघु पाषाण एवं लंबे फलक औजार रायगढ़ के कबरा पहाड़ से प्राप्त हुए।
- मध्य युग में शवों को पाषाण घेरों के अंदर बड़े पत्थरों से ढक कर दफनाया जाता था।
उत्तर पाषाण युग
- मानव आकृतियों का चित्रण एवं औजार की खुदी हुई आकृति बिलासपुर जिले के धनपुर तथा रायगढ़ जिले के सिंघनपुर की गुफाओं से प्राप्त हुई।
- इस युग में चित्रों में चित्रित मानव आकृति कहीं सीधी कहीं डण्डेनुमा और कहीं सीढ़ीनुमा होती थी।
- इसके अलावा लघुकृत पत्थर के औजार ओड़िसा के कालाहाण्डी, बलांगीर व सम्बलपुर के तेल नदी से प्राप्त हुए हैं।
- इस कल में मानव क्रमिक विकास कर चूका था कृषि कर्म, पशु पालन , गृह निर्माण, बर्तनों का निर्माण, ऊन कातना आदि कार्य सीख लिया था।
- इस युग के औजार बालोद जिले के अर्जुनी, राजनांदगाव जिले के चितवा डोंगरी एवं रायगढ़ जिले के टेरम नामक स्थनो से प्राप्त हुए हैं।
- लोहे के उपकरण धमतरी – बालोद मार्ग पर प्राप्त हुए हैं।
- सर्वप्रथम शैलचित्रों की खोज भगवानसिंह बघेल एवं डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र ने राजनांदगाव के चितवाडोंगरी गुफा में किया।
- इस काल में मनुष्य गुफाओं में चित्रकारी करने की कला जानते थे।
- छिद्रित घन औजार की प्राप्ति छत्तीसगढ़ के अर्जुनी (दुर्ग), चितवा डोंगरी (राजनांदगाव) एवं टेमर (रायगढ़) से हुई।
प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्र
छत्तीसगढ़ का इतिहास-प्रागैतिहासिक काल – ओंगना के शैलाश्रय
छत्तीसगढ़ का इतिहास-प्रागैतिहासिक काल- कबरा पहाड़ के शैलाश्रय
छत्तीसगढ़ का इतिहास-प्रागैतिहासिक काल- कबरा पहाड़ के शैलचित्र
छत्तीसगढ़ का इतिहास-प्रागैतिहासिक काल- बसनाझर के शैलचित्र
- छत्तीसगढ़ प्रदेश में प्रागैतिहासिक कालीन शैलचित्रों की भरमार है।
- रायगढ़ जिले के करमागढ़, बसनाझार, ओंगना, लेखाभाड़ा, बेनियार, बोतल्दा आदि से शैलचित्र प्राप्त हुए हैं।
- रायगढ़ जिले के बसनाझार से हाथी, जंगली भैसा और हिरण का शिकार करते हुए मानव का चित्रण प्राप्त हुवा है।
- कबरा पहाड़ में लाल रंग में छपकली, घड़ियाल, सांभर पशुओं तथा पंक्तिबद्ध मानव समूह का चित्रण किया गया है।
- सिंघनपुर ग्राम के समीप चवरढाल पहाड़िया के शैलचित्रों को सर्वप्रथम ई. एंडरसन ने देखा था तथा बाद में रेल्वे इंजीनियर अमरनाथ दत्त ने इन शिलचित्रों का अध्ययन किया।
- रायगढ़ जिले के सिंगारगढ़ से भारत की पहली पेंटिंग सन 1918 में प्राप्त किया गया था जिसे एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के 13 वां अंक में प्रकाशित किए गए थे।
- श्री अमरनाथ दत्त ने 1923 से 1927 तक रायगढ़ और आस-पास के क्षेत्रों में शैल चित्रों का सर्वेक्षण किया।
छत्तीसगढ़ के पाषाण कालीन साक्ष्य
पूर्व पाषाण युग – महानदी घाटी, रायगढ़ जिले के सिंघनपुर, बोतल्दा, कबरा पहाड़, भंवरखोल, छापामारा, सोनबसरा, गीधा।
उत्तर पाषाण युग – महानदी घाटी, बिलासपुर जिले के धनपुर तथा रायगढ़ जिले के सिंघनपुर।
मध्य पाषाण युग – रायगढ़ जिले के कबरा पहाड़ एवं बस्तर जिले के कालीपुर, गढ़चंदेला, घाट लोहांग, भातेवाड़ा, राजपुर, खड़ागघाट।
नव पाषाण काल – बलोदा जिले के अर्जुनी, बोनलटीला, राजनांदगांव जिले के चितवा डोंगरी तथा रायगढ़ जिले के टेरम।
ताम्र लौह युग – बालोद जिले के करहीभदर, चिरचारी और सोरर, करकाभाटा, घनोरा ।
छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध शैलचित्र, शैलाश्रय एवं गुफाएँ
शैलाश्रय से आशय पत्थर के घर या पत्थर के आवास से है। रायगढ़ को शैलाश्रय का घर या शैलाश्रय का जिला कहा जाता है.
सरगुजा – सीता बेंगरा गुफा, जोगीमारा गुफा, दरबार गुफा, बिलदूर गुफा, लक्ष्मण गुफा
रायगढ़ – कबरा पहाड़, सिंघनपुर गुफा (सबसे प्राचीन गुफा), बोतल्दा गुफा (सबसे लम्बी गुफा )ओंगना, भैसगढ़ी, बसनाझार, बेनीपाट, करमागढ़, लेखाभाड़ा, गीधा, खैरपुर, चापामाडा, सोनबरसा, छोटे पंडरमुड़ा, भंवरखोल, भातेवाड़ा, टेरम
गौ पे मरवाही – धनपुर
राजनांदगाव – चितवाडोंगरी
कोण्डागांव – गढधनोरा
बस्तर – कालीपुर, राजपुर, कुटुमसर गुफा, कैलाश गुफा
छत्तीसगढ़ का इतिहास-प्रागैतिहासिक काल – इस पोस्ट में आगे और भी जानकारियां अपडेट की जायेगी, उपरोक्त जानकारियों के संकलन में पर्याप्त सावधानी रखी गयी है फिर भी किसी प्रकार की त्रुटि अथवा संदेह की स्थिति में कमेंट के माध्यम से या हमें ईमेल करके सूचित करें।