छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास (1741-1947) ई. | Chhattisgarh Ka Adhunik Itihas

छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास छत्तीसगढ़ में मराठा आक्रामण एवं कल्चुरियों के पतन के साथ शुरू होता है। छत्तीसगढ़ में मराठा शासन 1741 ई. 1854 ई. तक था।

Table of Contents hide

आज के पोस्ट Chhattisgarh Ka Adhunik Itihas में हम जानेंगे छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास 1741 ई. से 1947 ई. तक की सम्पूर्ण जानकारी पॉइंट वाइस जिसे याद रखना आसान होगा और इससे सम्बंधित सवाल आने पर आसानी से आप जवाब दे पाएंगे ।

Chhattisgarh Ka Adhunik Itihas

Chhattisgarh Ka Adhunik Itihas
Chhattisgarh Ka Adhunik Itihas – Maratha Sasan

छत्तीसगढ़ में मराठा शासन

  • मराठों को कल्चुरि राजवंश के विभाजन का लाभ मिला और उन्होंने आक्रमण कर रतनपुर के क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित किया।
  • मराठों के शासक रघुजी ने रतनपुर में अप्रत्यक्ष रूप से शासन किया तथा उनके पुत्र बिम्बाजी भोंसले ने प्रत्यक्ष रूप से शासन का प्रारम्भ किया।
  • अतः छत्तीसगढ़ में मराठा शासन को अप्रत्यक्ष शासन एवं प्रत्यक्ष शासन में विभक्त किया जाता है।

जिसका विवरण निम्न प्रकार से है –

अप्रत्यक्ष मराठा शासन

  • भोंसले शासक रघुजी ने 1741 ई. में नागपुर के दक्षिण भारत अभियान के दौरान इनके सेनापति भास्कर पन्त ने रतनपुर के कल्चुरि शासक रघुनाथ सिंह के क्षेत्र पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के कारण रघुनाथ सिंह ने आत्मसमर्पण कर मराठों की आधीनता स्वीकार कर ली।
  • इस प्रकार से छत्तीसगढ़ में रघुनाथ सिंह को मराठा के शासन का मुख्य प्रतिनिधि घोषित किया गया।
  • कल्चुरियों की रायपुर शाखा के हैहयवंशी शासक अमर सिंह को भी शासन से अलग कर दिया तथा इस क्षेत्र को भोंसला साम्राज्य में मिला लिया।
  • रघुनाथ सिंह के मरणोपरांत मोहन सिंह को शासन का मुख्य प्रतिनिधि नियुक्त किया गया।
  • मराठों का अप्रत्यक्ष शासनकाल छत्तीसगढ़ में वर्ष 1741 से 1758 ई. के मध्य था।

प्रत्यक्ष मराठा शासन

  • मोहन सिंह की मृत्यु के पश्चात् वर्ष 1758 ई. में रघुजी भोंसले के पुत्र बिम्बाजी भोंसले ने अपना प्रत्यक्ष शासन प्रारम्भ किया।
  • मराठों का प्रत्यक्ष शासन काल छत्तीसगढ़ में वर्ष 1758 से 1787 ई. के मध्य था।

प्रत्यक्ष मराठा शासन के अन्तर्गत पाँच प्रमुख मराठा शासक निम्न थे

1 . बिम्बाजी भोंसले (1758 से 1787 ई.)

2 . चिमणा जी भोंसले (1787 से 1788 ई.)

3. व्यंकोजी भोंसले (1788 से 1811 ई.)

4 . पुरुषाजी भोंसले (1811 से 1816 ई.)

5 . अप्पाजी भोंसले (1816 से 1818 ई.)

बिम्बाजी भोंसले (1758 से 1787 ई.)

  • शासनकाल – 1758 से 1787 ई. के मध्य
  • राजधानी – रतनपुर (छत्तीसगढ़ में मराठों की प्रथम राजधानी)
  • बिम्बाजी की रानियाँ – उमाबाई, रमाबाई तथा आनन्दीबाई
  • प्रमुख पदाधिकारी गण – सेनापति (नीलूपन्त), राजपण्डित (कृष्ण भट्ट) तथा सेना प्रमुख (पाण्डुरंग)
  • छत्तीसगढ़ में परगना पद्धति का सूत्रधार – बिम्बाजी भोंसले
  • परगना पद्धति का निर्माणकर्ता – विट्ठलराव दिनकर
  • यूरोपीय यात्री –कोलब्रुक (1787 ई.) का आगमन
  • मृत्यु – दिसम्बर, 1787 ई.
  • इन्होंने नागपुर से सम्बन्ध न रखते हुए प्रत्यक्ष शासन किया।
  • परगना पद्धति के द्वारा गढ़ों की व्यवस्था समाप्त कर सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ को 27 परगनों में बाँटा गया।
  • बिम्बाजी ने राजस्व सम्बन्धी लेखा तैयार करना प्रारम्भ कराया।
  • बिम्बाजी ने रतनपुर में नियमित न्यायालय की स्थापना कर जनता को न्याय सम्बन्धी सुविधाएँ प्रदान कीं तथा विजयादशमी पर्व पर स्वर्ण पत्र देने की प्रथा का प्रारम्भ किया।
  • इनके द्वारा राजनान्दगाँव तथा खुज्जी नामक दो जमींदारियाँ प्रारम्भ की गईं एवं रतनपुर व रायपुर का प्रशासनिक एकीकरण किया गया।
  • रतनपुर के एक पहाड़ी टीले पर भव्य राम मंदिर का निर्माण करवाया जो आज भी विद्यमान है यह रामटेकरी के नाम से प्रसिद्ध है।
  • बिम्बाजी ने मोहम्मद खान तारान को सैन्य वहादुरी के लिए मदनगढ़ किले के क्षेत्र से पाँच स्थानों को पुरस्कार के रूप में दिया।
  • बिम्बाजी भोंसले के धमधा, खैरागढ़, कांकेर एवं कोरवा के जमींदारों से सम्बन्ध अच्छे नहीं थे।
  • बिम्बाजी के शासनकाल में धमधा के जमींदार ने विद्रोह किया तथा कुछ समय बाद जल समाधि द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे।
  • खैरागढ़ क्षेत्र से बिम्बाजी के शासनकाल में सर्वाधिक जमींदारों से टकोली (वार्षिक कर) वसूला जाता था।
  • कांकेर के जमींदार के क्षेत्र से कोई टकोली नहीं देता था।
  • कोरबा के जमींदार ने बिम्बाजी के शासनकाल में विद्रोह किया, जिसके परिणामस्वरूप उसकी जमींदारी जब्त कर ली गई।
  • रायपुर का प्रसिद्ध दूधाधारी मंदिर बिम्बाजी के सहयोग से ही बनवाया गया था।
  • बिम्बाजी ने 1778 ई. में कोटपाड़ की सन्धि की ।
  • बिम्बाजी की मृत्यु से दुःखी होकर इनकी पहली पत्नी उमाबाई 1787 ई. में सती हो गईं, जिसके परिणामस्वरूप रतनपुर में सती चौरा का निर्माण करवाया गया।
  • इनकी दूसरी पत्नी रमाबाई पति वियोग में वन चली गईं
  • बिम्बाजी की तीसरी पत्नी आनन्दीबाई ने 1787-1801 ई. में सत्ता की बागडोर संभाली तथा इनका सूबेदार महिपतराव दिनकर के साथ शासन के लिए संघर्ष हुआ।
  • आनन्दीबाई ने राम टेकरी मन्दिर (रतनपुर) में स्थापित मूर्ति के समक्ष बिम्बाजी की हाथ जोड़ी हुई प्रतिमा का निर्माण करवाया।

Chhattisgarh Ka Adhunik Itihas

चिमणा जी भोंसले (1787 से 1788 ई.)

  • बिम्बाजी की कोई संतान नहीं थी तो उन्होंने ने मरने से पहले अपने भतीजे (भाई मुधोजी के द्वितीय पुत्र ) चिमणाजी को गोद लिया।
  • वर्ष 1787 में बिम्बाजी के मृत्युपरान्त उनके दत्तक पुत्र चिमणाजी, छत्तीसगढ़ के उत्तरधिकारी बने।
  • बिम्बाजी की मृत्यु के बाद 1787-88 ई. तक चिमणाजी भोंसले ने शासन किया।

व्यंकोजी भोंसले (1788 से 1811 ई.)

  • व्यंकोजी भोंसले (1788 से 1811 ई.)
  • शासनकाल – 1788 से 1815 ई. मध्य
  • छत्तीसगढ़ में नवीन पद्धति – सूबेदारी पद्धति
  • मराठा इतिहास में छत्तीसगढ़ का उपनाम – व्यंकोजी की जागीर
  • उपाधि – धुरन्धर
  • यूरोपीय यात्रियों का आगमन – फारेस्टर (रायपुर, 1709 ई.) में मि. जे. टी. ब्लण्ट (13 मार्च, 1795) ने रतनपुर की यात्रा की
  • मृत्यु – बनारस यात्रा के समय
  • छत्तीसगढ़ में व्यंकोजी भोंसले ने प्रत्यक्ष शासन के स्थान पर नागपुर से शासन संचालन का निर्णय किया, जिससे रतनपुर का राजनीतिक वैभव धूमिल होने लगा।
  • इन्होंने छत्तीसगढ़ में सूबेदारी पद्धति अथवा सूबा शासन पद्धति की शुरुआत की थी। इस पद्धति के अनुरूप भोंसले राजा के प्रतिनिधि के रूप में सूबेदार रतनपुर में रहकर छत्तीसगढ़ में शासन करने लगे थे।
  • व्यंकोजी के शासनकाल में (1808 ई.) रामचन्द्र बाघ ने सम्बलपुर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया तथा महिपाल देव के शासनकाल में रामचन्द्र बाघ ने 1809 ई. में बस्तर क्षेत्र पर आक्रमण किया।

पुरुषाजी भोंसले (1811 से 1816 ई.)

  • व्यंकोजी भोंसले की मृत्यु के पश्चात् नागपुर शासक रघुजी भोंसले द्वितीय ने छत्तीसगढ़ का शासन सूबेदारी प्रथा के माध्यम से संचालित किया।
  • 22 मार्च, 1816 को रघुजी की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र पुरुषाजी भोंसले (बालासाहब) सिंहासन पर बैठा।

अप्पाजी भोंसले (1816 से 1818 ई.)

  • व्यंकोजी भोंसले की मृत्यु के पश्चात् अप्पाजी को छत्तीसगढ़ का वायसराय बनाया गया।
  • इन्होंने अंग्रेजों के साथ 1816 ई. में सहायक सन्धि कर ली तथा अंग्रेजों के कहने पर 1817 ई. में पुरुषाजी की हत्या कर दी।
  • अप्पाजी भोंसले नितान्त लोभी एवं स्वार्थी प्रवृत्ति का था, इसने छत्तीसगढ़ के सूबेदार से अत्यधिक धन की माँग की एवं सूबेदार द्वारा धन देने की असमर्थता पर उन्हें पदच्युत कर दिया।
  • अंग्रेजी सेना और अप्पा साहब की सेना के मध्य 1817 ई. में सीताबर्डी की लड़ाई लड़ी गई, जिसमें अप्पा साहब परास्त हो गए।

इतिहास से सम्बंधित इस पोस्ट को भी पढ़े – छत्तीसगढ़ में जनजातीय विद्रोह 1774 ई. से लेकर 1918

Chhattisgarh Ka Adhunik Itihas

ब्रिटिश शासन के अधीन मराठा शासन (1818 से 1830 ई.)

  • 1817 ई. के तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध में मराठे पराजित हुए तथा मराठा के शासक अप्पाजी भोंसले ने सहायक सन्धि स्वीकार कर ली।यह सन्धि रघुजी तृतीय (अप्पाजी भोंसले का पुत्र) के वयस्क होने तक लागू रही।
  • अप्पा साहब की मृत्यु के बाद 26 जून, 1818 को सन्धि के अन्तर्गत रघुजी तृतीय को नागपुर का उत्तराधिकारी बनाया गया, परन्तु रघुजी के अल्पायु होने के कारण अंग्रेजों ने रघुजी के वयस्क होने तक उसे ब्रिटिश संरक्षण प्रदान किया तथा 1818 ई. में पहली बार छत्तीसगढ़ अंग्रेजों के अधीन हो गया।
  • सहायक सन्धि के अन्तर्गत रघुजी के वयस्क होने तक अंग्रेजों ने रघुजी का एजेण्ट बनकर शासन किया तथा नागपुर का प्रथम रेजीडेण्ट जेनकिंस को नियुक्त किया।
  • जेनकिंस ने नागपुर राज्य का शासन अपने हाथों में ले लिया तथा राज्य में व्यवस्था हेतु ब्रिटिश नीति की घोषणा की, जिसके अन्तर्गत नागपुर में कमिश्नर की नियुक्ति तथा इनके अधीन क्षेत्रों में ब्रिटिश अधीक्षकों (सुपरिटेण्डेण्ट) के द्वारा शासन किया जाना निर्धारित हुआ।
  • इस शासन का प्रथम सुपरिटेण्डेण्ट कैप्टन एडमंड था।

छत्तीसगढ़ राज्य में भी ब्रिटिश अधिकारियों की नियुक्ति की गई , जो निम्न प्रकार से है

कैप्टन एडमण्ड

  • छत्तीसगढ़ के प्रथम ब्रिटिश अधीक्षक के रूप में नियुक्ति 1818 ई. में (नागपुर के भोंसला राज्य पर ब्रिटिश संरक्षण के अन्तर्गत)
  • राजधानी – रतनपुर
  • प्रमुख घटना – इनके समय में डोंगरगढ़ के जमींदार ने विद्रोह किया तथा इन्होंने इस विद्रोह पर भली-भाँति नियन्त्रण कर लिया

कैप्टन पी. वान्स एग्न्यू

  • कार्यकाल – 1818-25 ई.
  • प्रमुख कार्य – 27 परगनों को पहले 8 परगनों में सीमित करना तथा कुछ समय पश्चात् 9 परगने (धमतरी, धमधा, नवागढ़, दुर्ग, खरौद, राजहरा (सबसे छोटा परगना), बालोद,रतनपुर, रायपुर (सबसे बड़ा परगना) करना
  • छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी का स्थानान्तरण – रतनपुर से रायपुर (1818 ई. में)
  • प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार –
    • बरारपाण्डे, पोतदार व अमीन कर्मचारियों की नियुक्ति
    • मराठाकालीन पटेल पद की समाप्ति
    • प्रत्येक परगना में अमीन की नियुक्ति
    • 20-30 गाँवों के लिए पाण्ड्या अधिकारी की नियुक्ति
    • छत्तीसगढ़ की प्रशासनिक ब्रांच का गठन किया
  • प्रमुख विद्रोह इनके समय में –
    • नवागढ़ विद्रोह (महारसिया, 1818)
    • गोण्ड विद्रोह (गोण्ड राजा, 1818-1825)
    • सोनाखान विद्रोह (रामसाय, 1819)
    • परलकोट का विद्रोह (गेंदसिंह, 1824-25)
    • सावन्त भारती विद्रोह (सावन्त भारती)

कैप्टन हण्टर

  • आगमन – 1825 ई. (एग्न्यू के उत्तराधिकारी के रूप में)
  • कार्यकाल – 1825 से 1826 ई.

कैप्टन सैण्डिस

  • कार्यकाल – 1825 से 1828 ई. (ब्रिटिश अधिकारी के रूप में)
  • प्रमुख कार्य –
    • ताहूतदारी प्रथा की शुरुआत
    • लोरमी और तरेंगा नामक दो तालुकाओं का निर्माण कराया
    • सरकारी कार्य अंग्रेजी माध्यम में प्रारम्भ कराया
    • छत्तीसगढ़ में डाक-तार व्यवस्था की शुरुआत
    • बस्तर व करौंद जमींदारियों के बीच के विवाद का समझौता
  • सैण्डिस छत्तीसगढ़ के अधीक्षक बनने से पूर्व नागपुर घुड़सवार सेना के सैन्य अधिकारी थे। इन्हें सैनिक तथा असैनिक विषयों पर एग्न्यू से अधिक अधिकार प्राप्त थे।
  • अंग्रेजों तथा रघुजी तृतीय के मध्य समझौता कैप्टन सैण्डिस के समय में ही हुआ था।
  • इन्होंने अपने शासनकाल में अंग्रेजी वर्ष वाले कैलेण्डर को अपनाया था।

कैप्टन विल्किन्सन

  • कार्यकाल – 1828 ई. में (ब्रिटिश अधीक्षक)

कैप्टन क्राफर्ड

  • छत्तीसगढ़ का अन्तिम अधीक्षक
  • कार्यकाल – 1828-30 ई.
  • क्राफर्ड के काल में ब्रिटिश रेजीडेण्ट बिल्डर (नागपुर) और भोंसले शासक रघुजी तृतीय के मध्य 27 दिसम्बर, 1829 को एक नवीन सन्धि हुई थी।
  • इस नवीन सन्धि के अनुसार छत्तीसगढ़ का शासन पुनः भोंसले शासकों को सौंपा जाना था।
  • भोंसलों को सत्ता का हस्तान्तरण 6 जून, 1830 को हुआ तथा ब्रिटिश संरक्षण की समाप्ति हुई।

छत्तीसगढ़ में पुन: भोंसला शासन (1830-54 ई.)

  • 1828 ई. में भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैण्टिंक के कार्यकाल में भारतीय रियासतों के प्रति उदारवादी भावना अपनाते हुए 1829 ई. में भोंसला शासक रघुजी तृतीय को निर्धारित शर्तों के साथ सत्ता सौंप दी गई।
  • रघुजी तृतीय ने कृष्णराव अप्पा को प्रथम जिलेदार नियुक्त किया।
  • जिस क्षेत्र के अन्तर्गत जिलेदारी व्यवस्था लागू होती थी, उसे जिल्हा कहा जाता था।
  • रघुजी तृतीय के शासनकाल में धमधा, बरगढ़, तारापुर व मोरिया विद्रोह हुए।
    • धमधा विद्रोह (1830) – यह विद्रोह धमधा के गोण्ड जमींदारों के द्वारा किया गया था। इस विद्रोह को कृष्णराव अप्पा ने अंग्रेजों के सहयोग से समाप्त किया, क्योंकि जमींदार जिलेदार के शोषणकारी कार्य से असन्तुष्ट थे।
    • बरगढ़ का विद्रोह (1833) – यह विद्रोह अजीत सिंह तथा उनके पुत्र बलराम सिंह द्वारा किया गया था। इस विद्रोह का दमन रायगढ़ रियासत के शासक देवनाथ सिंह ने किया था।
    • तारापुर विद्रोह (1842 ई.) – यह विद्रोह दलगंजन सिंह के नेतृत्व में किया गया था। इस विद्रोह का मुख्य कारण कर वृद्धि था। विद्रोह के परिणामस्वरूप कर वृद्धि का आदेश वापस ले लिया गया।
    • मोरिया विद्रोह (1842) – यह विद्रोह हिड़मा माँझी के नेतृत्व में हुआ। इस विद्रोह का दमन कर्नल कैम्पबेल ने किया था।

इतिहास से सम्बंधित इस पोस्ट को भी पढ़े – छत्तीसगढ़ में कलचुरी राजवंश का इतिहास

भोंसले राज्य का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय

  • नागपुर के अन्तिम शासक रघुजी तृतीय की मृत्यु 11 दिसम्बर, 1853 को लम्बी बीमारी के पश्चात् हो गई और इसके साथ ही नागपुर राज्य का राजनीतिक गौरव समाप्त हो गया।
  • इसके परिणामस्वरूप गवर्नर जनरल डलहौजी ने मार्च, 1854 में हड़प नीति के अनुसार नागपुर राज्य का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर दिया तथा मराठा शासन का अन्त हो गया।
  • इसके बाद नागपुर राज्य का प्रथम कमिश्नर रेजीडेण्ट मि. मेंसल को बनाया गया एवम मि. इलियट ब्रिटिश अधीनता में छत्तीसगढ़ के प्रथम अधीक्षक बनाए गए थे। इस प्रकार मराठा शासन समाप्त हो गया।

Chhattisgarh Ka Adhunik Itihas का वीडियो

आप इस वीडियो से भी समझ सकते है एक बार जरूर देखें

Chhattisgarh Ka Adhunik Itihas

FAQ

मराठों ने छत्तीसगढ़ पर किस वर्ष आक्रमण किया था ?

वर्ष 1741

रतनपुर के किस राजा के कार्यकाल में मराठा सेनापति भास्कर पंथ ने आक्रमण किया था ?

रघुनाथ सिंह

छत्तीसगढ़ मराठा शासक कौन था ?

बिम्बाजी भोंसले

मराठो ने छत्तीसगढ़ में अपनी राजधानी स्थापित की थी ?

रतनपुर में

बिम्बाजी भोंसले को छत्तीसगढ़ में किस पद्धति का सूत्रधार माना जाता है ?

परगना पद्धति

छत्तीसगढ़ राज्य में प्रथम सूबेदार कौन था ?

महीपतराव दिनकर

किस मराठा सूबेदार ने छत्तीसगढ़ राज्य में परगना पद्धति प्रारम्भ की ?

विट्ठलराव दिनकर

केशव गोविन्द ने किसके आक्रमण से छत्तीसगढ़ की रक्षा की थी ?

पिण्डारियों से

अंग्रेजो एवं मराठाओं के मध्य सहायक संधि किस सूबेदार के समय में हुई थी ?

बीकाजी गोपाल


आज आपने Chhattisgarh Ka Adhunik Itihas के बारे में जाना वस्तु विषय को ध्यान में रखकर पॉइंट वाइस जानकारी आपको प्रदान करने की कोशिश की गई है आशा करते है आपके लिए उपयोगी हो, अपना कमेंट जरूर देवें।

जानकारी में कोई त्रुटि हो तो जरूर कमेंट करें। फिंर मिलते है एक नए टॉपिक के साथ…. इस पोस्ट में आपको कोई जानकारी जोड़ना चाहते है तो हमें मेल कीजिये।

जय हिन्द

CGPSC, CGvyapam, MPPSC एवं अन्य सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी सामान्य ज्ञान की जानकारी प्रदान की जाती है।

Leave a Comment