बैगा जनजाति में तीज-त्यौहार, उत्सव | Baiga JanJati Tyohar | Baiga Janjati

आज हम आपके लिए baiga janjati से सम्बंधित जानकारी लाये है इनके तीज-त्यौहार एवं उत्सव के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। जनजातीय समाज की विशेष पहचान उसकी लोक संस्कृति और संस्कृतियों की पहचान उसके पर्व-त्यौहारों से अभिव्यक्त होती है। जनजातियों में धार्मिक जीवन, तीज-त्यौहार का मुख्य आधार उससे जुड़ी आस्था से है जो उन्हें एक धर्म से जोड़ती है। किसी समुदाय विशेष में किसी अध्यात्मिक शक्ति के अनुरूप क्रिया-कलाप व कर्मकाण्डो का अनुशरण करना एक धर्म कहलाता है ।

जनजातीय समुदायों में विभिन्न देवी-देवताएं, कुल-देवता, पूर्वज- देव, गोत्र देव, ग्राम देव, वन देवी-देवताएं होती हैं। जनजातीय समाजों में मान्यता पायी जाती है कि इनके प्रसन्न होने सुख एवं नाराज होने से दुख की प्राप्ति होती है। अतः इन शक्तियों, देवी-देवताओं के रूष्ठ होने के भय से इनको प्रसन्न रखने के उद्देश्य से विभिन्न अवसरों पर पूजा-अनुष्ठान किया जाता है। जनजातीय समाज तिथियों, अवसरों के अनुरूप विभिन्न पर्व एवं उत्सवों का आयोजन कर इन सर्व शक्तियों के प्रति श्रद्धाभाव अर्पित कर अपनी मंगल कामना के लिए प्रार्थना करते हैं।

इसी प्रकार की अवधारणा बैगा जनजाति में उनकी आस्था के लिए है। बैगा जनजाति में उनके द्वारा मनाये जाने वाले तीज-त्यौहार उनके आर्थिक जीवन से संबंध होता है। आर्थिक क्रियाओं के प्रारंभ एवं अंत को उनके द्वारा पर्व या त्यौहारों के रूप में धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम पूर्ण किया जाता है। इन धार्मिक अनुष्ठानों में वे अपने ईष्ट देवों, आजा – दाता (पितर) व पूर्वजों की उपासना उनके जीवन से जुड़े विभिन्न क्रियाकलापों में किसी प्रकार की विघ्न-बाधा से सुरक्षित करने के उद्देश्य से की जाती हैं।

बैगा जनजाति में उनके देवी-देवता के वास्तविक या काल्पनिक रूप, निवास या वास, अलौकिक शक्ति, अनुष्ठान लोकाचार के रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। इन देवी-देवताओं की पूजा / अनुष्ठान की तिथियां, सामग्री, स्थान व कर्मकाण्ड की पद्धति निश्चित होती है।

Baiga JanJati Tyohar

प्रमुख तीज त्यौहार :

जवारा (नवरात्र) –

Baiga JanJati Tyohar - jawara

  • चैत्र माह के नवरात्रि के प्रारंभ से बैगा जनजाति द्वारा ग्राम के मेडो (ग्राम सीमा पर) महामाई के स्थान पर एक अस्थाई कुरिया (घर) बनाया जाता है।
  • घर निर्माण के लिए कुम्हार के घर की जली हुई मिट्टी लाई जाती है।
  • गेंहूं के बीज को बांस की दो टोकरियों में मिट्टी डलकर रखा जाता है और आवश्कतानुसार समय पर पानी डाला जाता है।
  • बनाये गये घर में एक मिट्टी का दिया जलाया जाता है। जिसे ज्योत जलाना कहा जाता है।
  • देवी की स्तुति व पूजा बैगा सदस्य द्वारा ही की जाती है जिसे पण्डा (पूजारी) कहा जाता है।
  • पण्डा प्रति दिन दीप जलाकर व नारियल अर्पित कर देवी की पूजा करता है। ज्योत पूरे नौ दिन तक जलाये रखना होता है।
  • पंचमी एवं अठवाही (पांचवे व आठवें दिन) के दिन विशेष पूजा आराधना की जाती है । महामाई में 03 या 05 वर्ष में बकरे की बलि दी जाती है।
  • महामाई की सेवा (आराधना) मांदर बजाते हुए माई जसगीत गाकर की जाती है ।
  • जसगीत की ध्वनि सुनकर कई महिला एवं पुरुषों पर देवी चड़ती है। और वह मांदर की थाप पर झूपने लगते है। जिसे पण्डा हूम (नारियल, अगरबत्ती, धूप) देकर देवी को शांत करता है ।
  • नौवें दिन ज्वारा विसर्जन किया जाता है। इसके लिए 03 कुंवारी कन्याओं के द्वारा श्वेद वस्त्र धारण कर बांस की टोकरी में उगाई गई गेंहूं व ज्योत को सिर में रखकर नदी के पास जाते है।
  • पण्डा भी इस दिन श्वेत वस्त्र धारण करता है और कन्याओं के साथ चलता है। अन्य सदस्य मांदर बजाते व महामाई की जसगीत गाते सेवा भाव से नदी पर जाते है जहां पुनः पण्डा के द्वारा पूजा अर्चना करता है ।
  • उपस्थित सदस्य एक दूसरे के कान में ज्वारा खोंचते है और लाये गये सामग्रियों को ग्राम की सुख-समृद्धि की कामना के साथ जल में विसर्जित कर दिया जाता है।

अक्ती –

Baiga JanJati Tyohar - akti

  • इस दिन को भांचा दान भी कहा जाता है।
  • बैगा जनजाति में अपने बहन के पुत्र (भांजा) को अपनी इच्छा अनुसार वस्तु, पैसा, वस्त्र, धन-धान्य आदि का दान दिया जाता है।
  • बैशाख माह की अक्ती के दिन बैगा जनजाति में वर्षा के पूर्वानुमान लगाने हेतु हाण्डी देखने की एक प्रक्रिया की जाती है। इस दिन बैगा जनजाति के लोगों के द्वारा ग्राम अथवा घर में एक स्थान पर सुखी मिट्टी के 04 ढेले को खुर या आधार के रूप में रखते है जो क्रमशः आषाढ़, सावन, भादो एवं कुंवार माह को इंगित करता है।
  • इसके ऊपर पानी से भरा एक मिट्टी की हाण्डी रखी जाती है। जिसे 09 दिनों तक अवलोकन किया जाता है। जिस माह को इंगित किया गया ढेला अधिक गीला होगा, उस माह में वर्षा अधिक होने का अनुमान लगा लिया जाता है और इसी आधार पर फसल की बोआई की तैयारी की जाती है।

बिदरी –

Baiga JanJati Tyohar - bidari

  • बैसाख माह में अक्ती के दिन धरती पूजा करते है।
  • वर्ष भर के लिए हूम-गरास देते है। इस दिन ग्राम बैगा ठाकुर देव की विशेष पूजा करता है।
  • इसी दिन कोदो, कुटकी आदि अनाज को फसल बुआई के पूर्व बैगा के द्वारा विशेष पूजा की जाती है। जिसे बीज बनाना कहा जाता है।
  • पूजा के बाद बीज को सभी कृषक परिवारों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दे दिया जाता है।
  • परिवार उस बीज को अपने बोआई के लिए रखे गये बिजहा में मिलाकर फसल बोआई करते है।
  • इस दिन बीज बनाने के लिए बैगा द्वारा पडरा मुर्गा, नारियल, एक बोतल मंद, हूम के लिए सरई का लासा, अगरबत्ती आदि का उपयोग किया जाता है।
  • यह पूजा अच्छे फसल उत्पाद एवं ग्राम की खुशहाली के लिए की जाती है।

हरेली –

Baiga JanJati Tyohar - hareli

  • यह त्यौहार सावन माह की अष्टमी के दिन को हरेली त्यौहार मनाया जाता है।
  • बैगा जनजाति इस दिन द्वारा गाय को नमक खिलाया जाता है। इसके लिए चिंटी या कीडों के भोड़ / भिम्भोरा (टीला) के ऊपर रख कर गाय को खाने दिया जाता है, जिससे गाय नमक के साथ थोड़ी मिट्टी भी खा लेती है।
  • बैगा जनजाति में गाय के द्वारा नमक खाने को शुद्धि के रूप में माना जाता है।
  • इस दिन घरों के दरवाजों, खेतों, पशुघर, बाड़ी में विभिन्न औषधीय वृक्षों के डालिया यथा भेलवा डारा, बांस डारा, साल्हे डारा के साथ हसिया ढापुर व जोगी लट्ठी का लटकाया जाता है।
  • इस दिन ही बच्चों के लिए बांस की गेड़ी बनायी जाती है जिसके ऊपर चढकर बच्चे मनोरंजन करते है बनाई गई गेड़ी को नवाखाई के दिन विसर्जित कर दिया जाता है।

देवली-

  • बैगा जनजाति में खेतों में उगे हुए फसल को देवली कहा जाता है।
  • बैगा ग्राम में विभिन्न कृषकों के खेत खलिहानों में नारियल व काले या भूरे मुर्गी की पूजेई देता है और खेतों की फसल उखाड़ता है। जिसे लेजाकर वह ग्राम ठाकुर देव को अर्पित कर अच्छे फसल की कामना के साथ पूजा-अर्चना करता है।
  • पूजा के पश्चात लाये गये फसल को पुनः खेतों में लगाता है। यह त्यौहार हरेली त्यौहार के बाद मनाया जाता है।

पंचमी नवाखाई –

  • भादो माह की पंचमी के दिन (पांच दिन के चंदा में) तथा नवाखाई के 04 दिन पूर्व पंचमी तिहार मनाया जाता है।
  • इस दिन नये आनाज के बने भोजन को अपने ईष्ट देव को भोग लगाया जाता है।
  • यह त्यौहार ग्राम पटेल के घर सार्वजनिक रूप से मनाया जाता है। साथ ही यह त्यौहार केवल उन्ही ग्रामों में मनाया जाता है जहां का बैगा नाग-सांप को मनाने या भगाने या सर्प दंश के पश्चात जहर निकालना जानता हो तथा वह बैगा उस ग्राम में निवासरत हो।
  • उसी ग्राम में पंचमी त्यौहार मनाया जाता है। पंचमी त्यौहार के दिन जंगल से कलिहारी / नाग फूल नामक फूल को लाया जाता है। यह फूल कभी भी घर में नही लाया जाता है और न ही खाया जाता है।
  • ग्रामवासियों द्वारा नाग बम्भोर (भिम्भोरा) में नाग सांप के नाम से नारियल, दूध और लाये गये कलिहारी फूल को चढ़ाया जाता है। पूर्व में ग्रामवासियों द्वारा यह त्यौहार धूम-धाम से मनाया जाता था।
  • वर्तमान में केवल बुजुगों द्वारा पंचमी त्यौहार सांकेतिक रूप से नेंग पुरा किया जाता है।

जनजातीय आधारित प्रश्नोत्तरी जरूर देखें – छत्तीसगढ़ की जनजातीय प्रश्नोत्तरी

नवाखाई –

  • बैगा जनजाति में नवाखाई का त्यौहार पंचमी त्यौहार के 04 दिनों के बाद भादो माह की नवमी के चंदा पर (भाद्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन) मनाया जाता है।
  • नवाखाई के त्यौहार के लिए नयी फसल का थोड़ा-थोड़ा भाग मोहलाइन पत्ते में रखकर अपने ईष्ट देवों को अर्पित किया जाता है।
  • इसके लिए नया फसल, नारियल, धूप, मोहलाईन पत्ता, उड़द की दाल, नया चांवल, सांवा, मक्का, खीरा आदि को अपने ईष्ट देव, पूर्वज देव को पूजा अर्चना कर अपर्ण किया जाता है।
  • इसे चेरवा छिंटकाना या भोग लगाना कहा जाता है। पूर्वज को चेरवा का भोग केवल परिवार का पुरुष मुखिया द्वारा लगाया जाता है, अन्य सदस्य को भोग लगाने की अनुमति नही होती है।
  • इस चेरवा को किसी अन्य परिवार के सदस्य को किसी भी स्थिति में नही दिया जाता है। वरन् चेरवा का भाग स्वयं की विवाहिता पुत्री को देना भी निषेध है।

देवारी –

  • यह त्यौहार कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
  • बैगा जनजाति में देवारी त्यौहार को गोवर्धन पूजा के रूप मे मनाया जाता है।
  • इस दिन घर के मवेशियों विशेषकर गाय-बैल के लिए पृथक से चांवल का भात बनाया जाता है। गोट (डांग-कांदा), उड़द के पत्ते, कुम्हड़ा, खांस (झुरगा) को एक साथ मिलाकर सब्जी के रूम में बनाया जाता है।
  • उक्त सामग्री तैयार हो जाने के बाद इसे सर्वप्रथम बांस के नये सूपा या कांसे की थाली में निकालते है और इसे केले के पत्ते में परोसा जाता है।
  • भोज परोसेने के पूर्व घर के एक स्थान पर गोबर से लिपाई कर चांवल आटे से रंगोली के समान चौक पूरते है और उसके पास चांवल आटे का दीपक भी जलाते है।
  • इसके बाद भोज को पशुओं के लिए परोसा जाता है। जहां पशुओं (गाय-बैल) को लाकर उसकी पूजा की जाती है भोज उन्हें खाने के लिए दिया जाता है।
  • इस प्रकार पशुओं के खाने के बाद शेष बचे भाग (जुठन) को सह परिवार प्रसाद स्वरुप ग्रहण किया जाता है। जिसे खिचड़ी या रौंदा भात कहा जाता है।
  • इस त्यौहार के पीछे मान्यता है कि, इससे घर में लक्ष्मी (पशुधन) स्वस्थ व निरोगी रहते है तथा परिवार को समृद्धि प्रदान करते है ।

मोहती नवाखाई –

  • बैगा जनजाति में मोहती नवाखाई का विशेष महत्व क्योंकि यह त्यौहार 09 वर्ष के अंतराल में एक बार मनाया जाता है।
  • कार्तिक पूर्णिमा के दिन मोहती नवाखाई का त्यौहार मनाया जाता है।
  • बैगा जनजाति के अनुसार यह त्यौहार कार्तिक और 9 वर्षाकाल के बीत जाने के बाद ही मनाया जाता है।
  • यह त्यौहार ग्राम सीमा के बाहर जंगल में मनाया जाता है। मोहती नवाखाई का त्यौहार केवल बैगा पुरुषों द्वारा मनाया जाता है।
  • इस त्यौहार के लिए बैगा सदस्यों के द्वारा ग्राम के बाहर जंगल में स्थान पर मोहलाईन वृक्ष की डाल से एक अस्थायी झोपड़ी का निर्माण किया जाता है।
  • इसी झोपड़ी में मोहती वृक्ष के पेड़ के पत्ते, कुटकी (जो बिना जुताई वाली भूमि पर उपजा हो), प्राकृतिक रूप से प्राप्त शहद का उपयोग किया जाता उक्त सामग्रियों को मोटे बांस का दो गांठों का भाग लेकर उसके एक गांठ के भाग को अलग कर एक पात्र के रूप में तैयार किया जाता है जिसे ठोड़हा कहा जाता है, में कुटकी, शहद को डालकर उसे मोहलाईन पत्ते से बंद कर दिया जाता है तथा इसे आग में पकाया जाता है। ठोड़हा की संख्या उपस्थित सदस्यों की संख्या के अनुसार 10, 20 अथवा अधिक हो सकती है।
  • आग में तपकर बांस के रंग में परिवर्तन को देखकर भीतर में की सामग्री के पक जाने का अनुमान लगा लिया जाता है। इसके बाद बांस को तोड़कर पके भोज को मोहलाईन के पत्ते में निकाल लिया जाता है।
  • जमीन पर मोहलाईन डाल का आभासी नौ घर बनाया जाता है जिसके अंतिम घर में बहेरवास, नगबधेसूर को सांकेतिक रूप से स्थापित किया जाता है। सर्वप्रथम बहेरवास, गधेसूर आदि देवों को छिटका देते है या अर्पण करते है। देवों को अर्पण करने बाद है । बचे भोग को सभी सदस्य बांटकर वहीं खाते है।
  • बैगाओं में यह त्यौहार वन में निवास करने वाले वन्य जीवों से सदस्यों व परिवार की रक्षा के लिए जंगल देवता को प्रसन्न रखने के उद्देश्य से मनाया जाता है।
  • बैगा जनजाति में यह मान्यता है कि, 09 वर्ष में मोहती रस खाते है। 10 वें वर्ष को बिजोर साल कहा जाता है जिसमें इस वर्ष बहुत अधिक शादियां होती है तथा 11 वें वर्ष को रंडौर साल कहा जाता है इस वर्ष शादी विवाह प्रतिबंधित रहता है तथापि यदि कोई युगल विवाह कर लेता है तो या तो उसकी कोई संतान नही होती है। या इनकी मृत्यु होने की संभावना रहती है, ऐसी मान्यता है।

छेरता –

  • यह त्यौहार पुष माह के अंतिम दिन मनाया जाता है।
  • यह त्यौहार विशेष रूप से बच्चों के द्वारा मनाया जाता है। इस दिन बालकों का एक समूह ग्राम के घर-घर जाकर चांवल या धान मांगते है।
  • जिसे ग्राम के एक स्थान पर बालक-बालिकाओं द्वारा महीन कुटकर आटा बना लिया जाता है।
  • इसके बाद बालिकाएं उस आटे से रोटियां बनाती है और चुल्हें मे पकाती है। रोटी बन जाने के बाद कन्याएं रोटी को एक स्थान पर कपड़ा बिछाकर रख देती है। इस प्रकार रखे रोटी को बालक चुराने का प्रयास करते है। जिस पर कन्याएं उन्हें जलती लकड़ी या लकड़ी से डराकर दूर भगाने का प्रयास करती है।
  • बालको के द्वारा रोटी चुरा पर वह रोटी उनकी हो जाती है ।
  • इसके बाद सभी बच्चे मिलकर उन रोटियों को उस स्थान पर ही खाते है और नृत्य करते है ।

इस प्रश्नोत्तरी को भी अवश्य देखें – छत्तीसगढ़ जनजाति प्रश्नोत्तरी

बैगा जनजती द्वारा मनाये जाने वाले प्रमुख तीज-त्यौहार

क्र.तीज-त्यौहारउपलक्षमाह (स्थानीय)अंग्रेजी माह
1जवारा (नवरात्र)निरोगी हेतुचैत्रअप्रैल-मई
2अक्तीबारिश का अनुमानबैशाखमई-जून
3बिदरीफसल बोआईबैशाख एवं जेठ माह मे अक्ती के बादमई-जून-जुलाई
4हरेलीपशु, घर एवं ग्राम सुरक्षासवानअगस्त
5देवलीफसलों को निरोगी रखने हेतुसावनअगस्त
6पंचमी नवाखाईकृषि उपजभादोंसितंबर
7नवाखाईकृषि उपजभादोंसितंबर-अक्टूबर
8देवरी (गोवर्धन पुजा)फसल की कटाईकार्तिक माहअक्टूबर-नवंबर
9मोहती-नवाखाईजंगली जानवर एवं जहरीले जंतुओं से सुरक्षा के लिए08 कार्तिक माह एवं 09 वर्षाकाल के बीत जाने पर अर्थात लगभग 09 वर्ष में एक बारअक्टूबर-नवंबर
10छेरताफसल की कटाईपुष माह नवंबर
11दशेला नाचाकृषि उपजकुंवार से पुषअक्टूबर से फरवरी
12मड़ईउत्सवफरवरी-मार्च
13फाग नाचावनोपाज़ संकलन से प्रारम्भफागुन माहफरवरी-मार्च

Baiga JanJati पर आधारित इस विशेष जानकारी आपको कैसी लगी कमेंट जरूर कीजिये। इस विशेष जानकारी का स्रोत योजना चक्र मैगज़ीन ।

कमेंट करे अगर आपके पास भी रोचक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी हो तो हमसे जरूर शेयर करें। परीक्षा की तैयारी करते रहे सफलता तो मिल के रहेगी। फिर मिलते है एक नए टॉपिक के साथ

जय जोहर।

CGPSC, CGvyapam, MPPSC एवं अन्य सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी सामान्य ज्ञान की जानकारी प्रदान की जाती है।

Leave a Comment