Bastar Dussehara | बस्तर दशहरा: एक सांस्कृतिक उत्सव की गहन यात्रा

Bastar Dussehara, छत्तीसगढ़ के हृदय में मनाया जाने वाला एक भव्य त्योहार, आदिवासी परंपराओं, आध्यात्मिकता और सामुदायिक एकता का अनूठा संगम है। भारत में मनाए जाने वाले पारंपरिक दशहरे से अलग, बस्तर दशहरा 75 दिनों तक चलने वाला विश्व का सबसे लंबा त्योहार है, जो क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी माँ दंतेश्वरी को समर्पित है। यह त्योहार बस्तर की आदिवासी संस्कृति की समृद्ध विरासत को दर्शाता है, जिसमें विभिन्न समुदायों की एकता और भक्ति झलकती है। नीचे बस्तर दशहरा का विस्तृत विवरण बिंदुवार और पढ़ने में आसान रूप में प्रस्तुत किया गया है, साथ ही सामान्य प्रश्नों (FAQs) के जवाब दिए गए हैं ताकि इसे पूर्ण रूप से समझा जा सके।

बस्तर का प्रसिद्ध दशहरा

बस्तर का प्रसिद्ध दशहरा. (फाइल फोटो साभार: छत्तीसगढ़ टूरिज्म)

बस्तर दशहरा का परिचय

  • ऐतिहासिक महत्व: बस्तर दशहरा 500 वर्षों से अधिक पुराना है और इसकी शुरुआत 15वीं शताब्दी में काकतीय वंश के शासनकाल में हुई थी। पारंपरिक दशहरे के विपरीत, जो भगवान राम की रावण पर विजय का उत्सव मनाता है, यह त्योहार माँ दंतेश्वरी की पूजा पर केंद्रित है और इसमें रावण के पुतले का दहन नहीं होता।
  • अवधि और भव्यता: लगभग 75 दिनों तक चलने वाला यह त्योहार एक भव्य आयोजन है, जो स्थानीय लोगों, पर्यटकों और शोधकर्ताओं को आकर्षित करता है। यह आदिवासी संस्कृति का जीवंत प्रदर्शन है, जिसमें मुरिया, हल्बा और भट्टरा जैसे विभिन्न आदिवासी समुदाय भाग लेते हैं।
  • सांस्कृतिक विशिष्टता: यह त्योहार आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदायों के बीच सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को दर्शाता है, जो माँ दंतेश्वरी के प्रति सामूहिक भक्ति को प्रदर्शित करता है। यह प्राचीन परंपराओं और आधुनिक तत्वों का मिश्रण है, जो इसे एक अनूठा सांस्कृतिक आयोजन बनाता है।
  • पर्यटकों का आकर्षण: बस्तर दशहरा देश-विदेश से पर्यटकों को आकर्षित करता है, जो इस क्षेत्र की समृद्ध विरासत, अनुष्ठानों और जीवंत उत्सवों को देखने के लिए आते हैं।

प्रमुख अनुष्ठान और समारोह

  • पाट जात्रा (लकड़ी के खंभों की पूजा): त्योहार की शुरुआत 9-10 फीट ऊँचे लकड़ी के खंभों को समारोहपूर्वक गड्ढों में स्थापित करने से होती है, जो उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है। इन खंभों पर हल्दी, कुमकुम और चंदन का लेप लगाया जाता है और पवित्र कपड़े बांधे जाते हैं, जिसके साथ स्थानीय पुजारी अनुष्ठान करते हैं।
  • देश गड़ाई पूजा: इस अनुष्ठान में स्थानीय देवी-देवताओं को भेंट चढ़ाकर त्योहार की सफलता के लिए आशीर्वाद मांगा जाता है। यह समुदाय को आगामी उत्सवों के लिए तैयार करने का महत्वपूर्ण कदम है।
  • कालिन गाई: यह अनुष्ठान कालिन देवी की पूजा को समर्पित है, जो बस्तर की लोक परंपराओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह 4-5 दिनों तक चलता है और इसमें विशेष पूजा-विधान शामिल हैं।
  • कालिन जात्रा पूजा: कालिन देवी के सम्मान में आयोजित यह पूजा सामुदायिक एकता को दर्शाती है, जिसमें विभिन्न जनजातियाँ भाग लेती हैं।
  • रेला पूजा: यह अनुष्ठान स्थानीय परंपराओं और विश्वासों के अनुसार आयोजित किया जाता है, जिसमें देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा की जाती है।
  • कलश स्थापना पूजा: नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो पवित्रता और शक्ति का प्रतीक है।
  • जोगी बिठाई विधान: यह अनुष्ठान आध्यात्मिक साधकों (जोगी) के लिए आयोजित किया जाता है, जो त्योहार के दौरान विशेष भूमिका निभाते हैं।
  • सिरहासार भवन का नामकरण: यह समारोह त्योहार के लिए निर्मित अस्थायी संरचनाओं के नामकरण से संबंधित है, जो स्थानीय परंपराओं का हिस्सा है।
  • वेल पूजा और माँ दंतेश्वरी को न्योता: इस अनुष्ठान में माँ दंतेश्वरी को त्योहार में शामिल होने का निमंत्रण दिया जाता है, जो समुदाय की भक्ति को दर्शाता है।
  • मावली माता का आमंत्रण: मावली माता (माँ दंतेश्वरी) को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है, और उनकी पूजा भव्य रूप से की जाती है।
  • मावली परधाव पूजा: यह पूजा मावली माता के स्वागत के लिए आयोजित की जाती है, जिसमें भारी भीड़ उमड़ती है।
  • नवरात्र पूजा और रथ परिक्रमा: नवरात्रि के दौरान माँ दंतेश्वरी की पूजा और रथ यात्रा का आयोजन होता है, जो त्योहार का मुख्य आकर्षण है।
  • महा अष्टमी दुर्गा पूजा: महा अष्टमी के दिन माँ दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है, जिसमें बलि प्रथा का भी उपयोग होता है।
  • निशा जात्रा पूजा: यह रात्रिकालीन पूजा अनुष्ठान है, जिसमें माँ दंतेश्वरी और अन्य देवी-देवताओं की पूजा की जाती है।
  • कुंवारी पूजा: यह पूजा कुंवारी कन्याओं को समर्पित होती है, जो शक्ति और पवित्रता का प्रतीक हैं।
  • जोगी उठाई पूजा: जोगियों की वापसी और उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए यह अनुष्ठान आयोजित किया जाता है।
  • भीतर रैनी और बाहर रैनी: ये अनुष्ठान मंदिर के भीतर और बाहर आयोजित किए जाते हैं, जो सामुदायिक भागीदारी को दर्शाते हैं। ये अनुष्ठान मंदिर के भीतर और बाहर आयोजित किए जाते हैं, जो सामुदायिक भागीदारी को दर्शाते हैं।
  • मुरिया दरबार: यह एक सामुदायिक सभा है, जिसमें मुरिया जनजाति के लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • कुंभस्न जात्रा पूजा: यह अनुष्ठान त्योहार के अंतिम चरणों में आयोजित होता है, जिसमें सामुदायिक एकता का प्रदर्शन होता है।
  • माँ दंतेश्वरी की बिदाई पूजा: त्योहार का समापन माँ दंतेश्वरी की बिदाई के साथ होता है, जिसमें भक्तों की भीड़ उनकी झेली (प्रतीकात्मक मूर्ति) को विदाई देती है। इस दौरान पुलिस द्वारा सलामी दी जाती है, और भक्त फूल बरसाते हैं।

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रथ निर्माण और सजावट

  • रथ निर्माण: बस्तर दशहरा में दो रथों का निर्माण किया जाता है – आठ पहियों वाला ‘विजय रथ’ और चार पहियों वाला ‘फूल रथ’। इनका निर्माण माँझी, अन्य समुदाय के सदस्य और जल संसाधन/वन विभाग के कर्मचारी मिलकर करते हैं। रथ निर्माण में लगभग 150 मजदूर हिस्सा लेते हैं।
  • रथ की सजावट: मोगरापाल की ‘यतरा’ जाति के लोग रथों की सजावट में योगदान देते हैं। विजय रथ को नीले और गुलाबी कपड़ों से सजाया जाता है, जबकि फूल रथ को गेंदे के फूलों की मालाओं से आकर्षक बनाया जाता है। बिजली की रोशनी और जनरेटर का उपयोग रथों को और भव्य बनाता है।
  • विजय रथ की विशेषता: विजय रथ में चार घोड़े बंधे होते हैं, और चार व्यक्ति ‘बकूला उड़ाना’ (कपड़े को लहराना) जैसी परंपरा निभाते हैं, जो दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

फूल व्यवस्था और मुंडा बाजा

  • फूल व्यवस्था: त्योहार में फूलों की मालाओं और सजावट के लिए ‘लक्ष्मी नारायण पुष्प वाटिका’ नामक स्व-सहायता समूह कार्य करता है, जिसमें सूली और भट्टरा समुदाय के 10 सदस्य शामिल हैं। यह समूह आश्विन शुक्ल द्वितीया से माँ दंतेश्वरी की बिदाई तक 4500-5000 फूलों की मालाएँ तैयार करता है।
  • मुंडा बाजा: बस्तर का लोक जीवन पारंपरिक वाद्य यंत्रों से जीवंत हो उठता है। मुंडा बाजा, जिसमें ढोल, नगाड़ा और अन्य वाद्य यंत्र शामिल हैं, त्योहार की शोभा बढ़ाते हैं। यह स्थानीय लोगों के उत्साह को दोगुना करता है।

सामुदायिक सहयोग

  • कार्य विभाजन: बस्तर दशहरा का संचालन पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही जिम्मेदारियों के आधार पर होता है। माँझी, वालकी, नाई और अन्य समुदाय के लोग विभिन्न कार्यों में योगदान देते हैं।
  • भोजन व्यवस्था: त्योहार में शामिल लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था की जाती है। पहले ‘बिसाहा पैसा’ के रूप में सामग्री जमा की जाती थी, लेकिन अब आधुनिकता के प्रभाव से यह प्रथा कम हो रही है।

निष्कर्ष

  • लोकप्रियता और चुनौतियाँ: बस्तर दशहरा अपनी अनूठी परंपराओं और सामुदायिक भागीदारी के कारण विश्व प्रसिद्ध है। हालांकि, आधुनिकता के प्रभाव से कुछ परंपराएँ औपचारिकता तक सीमित हो रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले लोग कई चुनौतियों का सामना करते हैं, लेकिन माँ दंतेश्वरी के प्रति उनकी भक्ति उन्हें यहाँ खींच लाती है।
  • सांस्कृतिक महत्व: यह त्योहार बस्तर के लोगों और उनकी रियासत को एक सूत्र में बाँधता है। यह सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक एकता का प्रतीक है, जो आज भी प्रासंगिक है।

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सामान्य प्रश्न (FAQs)

बस्तर दशहरा क्या है?

बस्तर दशहरा छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मनाया जाने वाला 75 दिनों का त्योहार है, जो माँ दंतेश्वरी को समर्पित है। यह आदिवासी संस्कृति और सामुदायिक एकता का प्रतीक है।

यह पारंपरिक दशहरे से कैसे अलग है?

पारंपरिक दशहरा रावण वध पर केंद्रित होता है, जबकि बस्तर दशहरा माँ दंतेश्वरी की पूजा और रथ यात्रा पर आधारित है, जिसमें रावण दहन नहीं होता।

बस्तर दशहरा की अवधि कितनी है?

यह लगभग 75 दिनों तक चलता है, जो इसे विश्व का सबसे लंबा त्योहार बनाता है।

इस त्योहार में कौन-कौन भाग लेता है?

मुरिया, हल्बा, भट्टरा जैसे आदिवासी समुदायों के साथ-साथ गैर-आदिवासी समुदाय, स्थानीय पुजारी, और माँझी जैसे लोग इसमें शामिल होते हैं।

त्योहार का समापन कैसे होता है?

त्योहार का समापन माँ दंतेश्वरी की बिदाई पूजा के साथ होता है, जिसमें भक्त उनकी झेली को विदाई देते हैं।

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